कहते रहे उन लोगों को बुरे,
जो सत्ता पर आसीन रहे,
जब मिले खुद को मौके ,
तो हाथ साफ करने से न चुके ।
जब मिले रंगे हाथ ,
तो बताने खुद को पाकसाफ,
तुलना में दूसरों के ,
गिनाते रहे कामकाज ।
जहां है जैसा राज ,
अपराधी का वहां वैसा इलाज,
कहीं बाहर हो रहे सजाबाज,
तो कहीं मिट्टी में माफियाराज।
दुविधा में आम जन आज ,
कालनेमी के भेष में कौन है दगाबाज,
दिलाकर स्वर्णमृग सा अहसास ,
हर रहे हैं छल से विश्वास ।
सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज सर,
हटाएंआपकी सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
सादर ।