हमारे न होने का
#अहसास वो करते हैं
किसी #महफिल का
जब वो #आगाज करते हैं ।
छोड़ देते है एक जगह
मेरे नाम के पैमाने की
पूछते हैं बार बार वजह
यूं महफिल में मेरे न आने की
फिर मिलकर मेहमानों से
मुस्कराने का यूं ही रिवाज करते हैं ।
ढूंढती हैं नजरें उनकी हर पता
हमारे होने के उस ठिकाने की
मांगते हैं मन्नतें बार बार रब से
उस जगह महफिलें सजाने की
सोचकर ऐसे ही वो हर बार
फिर एक महफिल का आगाज करते हैं ।
हमारे न होने का
अहसास वो करते हैं
किसी महफिल का
जब वो आगाज करते हैं ।
** दीपक कुमार भानरे **
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 फरवरी 2025 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 फरवरी 2025 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत ही अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएं