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यूं ही दिल
चुराने वाले ,
कभी करते बैचेन हो ,
तो कभी बनते #उम्मीदों के उजाले ।
चाहत किसे
नहीं ,
बन जाये अपना कोई
,
मिल जाये सुकून
दिलों का
और नींद रातों की
चुरा ले ।
जतन पर जतन करते
हैं ,
हर राह उनकी
चुनते हैं ,
की कभी तो हो
जायें,
उनकी नजरों के
हवाले ।
बहुत हुआ अब ,
काश कह दूँ सब अब
,
पर सामने होते है
वे जब,
खुलते नहीं लवों के
ताले ।
चाहत का क्या है ,
हो सकता एक तरफा
है ,
जरूरी नहीं उधर भी यही रजा है ,
फिर भी रखे हैं दामन उम्मीद का संभाले ।
मासूम अदाओं से
अपनी,
यूं ही दिलों को
चुराने वाले ,
कभी करते बैचेन ,
तो कभी बनते उम्मीदों के उजाले ।
आदरणीय मयंक सर,
जवाब देंहटाएंइस रचना की चर्चा आज रविवार (31-07-2022) को "सावन की तीज का त्यौहार" (चर्चा अंक--4507) पर करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
सादर ।
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भावपूर्ण सुंदर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जिज्ञासा मेम एवम वोकल बाबा , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
आदरणीय अनामिका मेम , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
मन में डोलते भावों को सुंदर शब्दों को पिरोती खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजय सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
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