फ़ॉलोअर

रविवार, 17 जुलाई 2022

#बारिश की कुछ #बूंदें !

इमेज गूगल साभार


#गर्मी के चेहरे में एक शिकन थी ,

जब #बारिश ने तपन कुछ कम की ,

मिट्टी की भी तासीर जरा नम थी ,

और छलकी #खुशी #ईश्वर के  रहम की ।


जगह नहीं बची है थमने,

राह भी रोक ली अतिक्रमण ने,

#बारिश का भी इस धरा में बसेरा है,

जिसे ढूंढ रही है अब हर घर आंगन में ।


#बारिश को न मिले बदनामी का वार ।

इसलिए एक गुजारिश है  यार ,

जब पानी ज्यादा हो या हो बाढ़,

न खिलवाड़ करो , न करो पार ।


बरसने दो #बारिश को बिंदास ,

थोड़ी सी असुविधा के कारण ,

बुरा भला न कहो अकारण ,

बुझने दो #धरती मां की #प्यास ।


भरी गर्मी जब तपती है ,

बाद  बदली बरसती है ,

प्रकृति कुछ नया रचती है ,

और  एक नई दुनिया बसती है ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बारिश और बाढ़ दोनों का ही ज़िक्र । सार्थक अभव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय संगीता मेम, आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय अनीता मेम ,नमस्ते ,
    मेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(१८-०७ -२०२२ ) को 'सावन की है छटा निराली'(चर्चा अंक -४४९४) पर करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार।

    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बुरा भला न कहो अकारण ,
    बुझने दो #धरती मां की #प्यास|
    बरसने तो दो! सही कहा है आपने!
    --ब्रजेन्द्र नाथ

    जवाब देंहटाएं
  5. बरसात की महत्ता बताती सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय बृजेन्द्र सर , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय ज्योति मेम एवं कोठारी मेम , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  8. डॉ विभा नायक (शेफालिका उवाच)19 जुलाई 2022 को 10:23 am बजे

    अच्छी कविता🌈

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय विभा मेम , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर सराहनीय संदेशपूर्ण कविता ।

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीय जिज्ञासा मेम , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं

Clickhere to comment in hindi

#फुर्सत मिली न मुझे !

# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...