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#गर्मी के चेहरे में एक शिकन थी ,
जब #बारिश ने तपन कुछ कम की ,
मिट्टी की भी तासीर जरा नम थी ,
और छलकी #खुशी #ईश्वर के रहम की ।
जगह नहीं बची है थमने,
राह भी रोक ली अतिक्रमण ने,
#बारिश का भी इस धरा में बसेरा है,
जिसे ढूंढ रही है अब हर घर आंगन में ।
#बारिश को न मिले बदनामी का वार ।
इसलिए एक गुजारिश है यार ,
जब पानी ज्यादा हो या हो बाढ़,
न खिलवाड़ करो , न करो पार ।
बरसने दो #बारिश को बिंदास ,
थोड़ी सी असुविधा के कारण ,
बुरा भला न कहो अकारण ,
बुझने दो #धरती मां की #प्यास ।
भरी गर्मी जब तपती है ,
बाद बदली बरसती है ,
प्रकृति कुछ नया रचती है ,
और एक नई दुनिया बसती है ।
बारिश और बाढ़ दोनों का ही ज़िक्र । सार्थक अभव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता मेम, आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
आदरणीय अनीता मेम ,नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(१८-०७ -२०२२ ) को 'सावन की है छटा निराली'(चर्चा अंक -४४९४) पर करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार।
सादर ।
बुरा भला न कहो अकारण ,
जवाब देंहटाएंबुझने दो #धरती मां की #प्यास|
बरसने तो दो! सही कहा है आपने!
--ब्रजेन्द्र नाथ
बरसात की महत्ता बताती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय बृजेन्द्र सर , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
आदरणीय ज्योति मेम एवं कोठारी मेम , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
अच्छी कविता🌈
जवाब देंहटाएंआदरणीय विभा मेम , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
सुंदर सराहनीय संदेशपूर्ण कविता ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जिज्ञासा मेम , आपकी बहुमूल्य और उत्सहवर्धनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।