#दुष्टों की छाती पर चढ़,
टूट पड़ बनकर कहर ,
अब #सहन ना कर ,
कोई तो रूप धर ।
उठा हाथ में खप्पर ,
मां #दुर्गा बनकर ,
ऐसा चला अपना त्रिशूल,
दुष्टों की छाती पर जाये उतर।
#अहिल्या बाई होलकर ,
या #झांसी की रानी बनकर,
उठा हाथ में तलवार ,
दुश्मन का कर प्रतिकार ।
#आत्मरक्षा के गुण से संवार ,
अस्त्र शस्त्र से कर श्रृंगार ,
#वीरांगना का ऐसा रूप धर ,
कि दुष्ट कांपे थर थर ।
#दुष्टों की छाती पर चढ़,
टूट पड़ बनकर कहर ,
अब सहन ना कर ,
कोई तो रूप धर ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (29-12-2022) को "वाणी का संधान" (चर्चा अंक-4630) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय मयंक सर ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (29-12-2022) को "वाणी का संधान" (चर्चा अंक-4630) पर शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद ।
सादर ।
आदरणीय ओमकार सर, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
प्रेरणात्मक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसब उस शक्ति का ही स्वरुप है , अभिनन्दन है , सराहनीय अभिव्यक्ति / प्रार्थना के लिए !
जवाब देंहटाएंजय माता दी !
आदरणीय अनिता मेम एवम तरुण सर, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
आत्मरक्षा के गुण से संवार ,
जवाब देंहटाएंअस्त्र शस्त्र से कर श्रृंगार ,
#वीरांगना का ऐसा रूप धर ,
कि दुष्ट कांपे थर थर ।
.. सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती सुंदर रचना।
आदरणीय जिज्ञासा मेम , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर ।