लाऊं कहां से ऐसी #गली,
#गुजरे जिस पर तू अच्छी #भली ।
चाहे न हो #रात ढली ,
या है कोई #सुनसान गली ,
मना न हो जहां जाना पगली ,
मिले न जहां #भेड़ियों की #बिरादरी ।
लाऊं कहां से ऐसी #कार्यस्थली,
ले सके थक कर जहां तू एक #झपकी ।
एकांत में भी जहां मिले #बेहतरी,
जहां #भरोसे को न लगे #हथकड़ी,
मिले न कोई वहां #वहशी #जंगली ,
#बेरहमी से न जाये कभी #मसली ।
लाऊं कहां से मन में #तसल्ली ,
सामने नजरों के जब तक न मिली ।
घर से तू जब बाहर निकली ,
रहती मन में एक #बैचेनी
रहती बहती #आशंका की #नदी,
लौट न आये जब तक भली भली ।
बताऊं तुझे मैं बात एक ही ,
अपनी #लड़ाई लड़ना है खुद ही ।
#हुंकार भर गर #कमर #कसली,
#ज्वाला बन, बनी #अगनी,
#काली बन तू बनी #मर्दनी ,
कि #हिम्मत न हो किसी की कभी ।