बस यूं ही बातों बातों में ,
समा गये हो सांसों में ।
तुम चांद को देखा करते थे,
और हम तुम्हारी आंखों में ,
बस यूं ही कुछ रातों में ,
समा गये हो सांसों में ।
बारिश में जब निकला करते ,
छुपाते हम तुम्हें छतरी छातों में ,
बस यूं ही कुछ बरसातों में ,
समा गये हो सांसों में ।
जिन गलियों से कभी गुजरा करते,
हम गुजरा करते उनमें दिन रातों में ,
बस यूं फिर मिलने की आसों में ,
समा गये हो सांसों में ।
वार गये सब कुछ तुम पर अब ,
रहा न कुछ अपने हाथों में ,
बस यूं आने होश हवासों में,
समा गये है सांसों में ।
बस यूं ही बातों बातों में ,
समा गये हो सांसों में ।
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