शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008
आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई के लिए खूब खाते कसमे : वक्त आने पर ख़ुद ही मुंह चुराते .
गुरुवार, 18 दिसंबर 2008
पैरों की जूती की किस्मत भी चमकती है .
बुधवार, 3 दिसंबर 2008
वक़्त आ गया है देश के राजनीतिक ढांचे मैं बदलाव का !
गुरुवार, 27 नवंबर 2008
शोक ! शोक !! शोक !!!
नहीं साथ चाहिये ।
इस चित्र को अपने ब्लॉग
पोस्ट मे डाले और साथ दे ।
सिर्फ़ और सिर्फ़
हिन्दी ब्लॉग पर अपना
सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे !
प्रेरणा और चित्र
सीमा गुप्ता जी और रामपुरिया जी के ब्लॉग से
आभार सहित !
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008
ओवामा की जीत - भारत मैं भी एक युवा नेत्रत्व की आस !
बुधवार, 5 नवंबर 2008
क्रेअटिविटी या वल्गारिटी !
कहते हैं की खाली दिमाग शैतान का घर होता है । अतः खाली बैठने और खाली दिमाग रखने की अपेक्षा इंसान को कुछ सकारात्मक कार्य करते रहना चाहिए , जिससे इंसान का स्वयं का तो हित तो जुडा हुआ है साथ ही समाज का भी हित जुडा है । इंसान के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्य से एक तो इंसान का मन और ध्यान इधर उधर ग़लत कामों की और नही भटकता है जिससे समाज मैं शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है ।
किंतु आज के समय मैं समाज के कुछ लोगों के द्वारा क्रेअटिविटी अर्थात सृजनात्मकता के नाम पर जो प्रदर्शन और कार्य किए जा रहे हैं , क्रेअटिविटी और रचनात्मकता के नाम पर आज समाज के सामने जो परोसा जा रहा है , कला और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर जो अभिव्यक्ति हो रही है उसे क्रेअटिविटी कहें या वल्गारिटी ।
कोई कला प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और विवादस्पद चित्र बनाकर लोगों की भावना और आस्था से खिलवाड़ कर अपने को महान चित्रकार कहलवाने की कोशिश कर रहा है । कोई लोगों के मनोरंजन और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर फूहड़ और भद्दा मजाक और कामेडी कर रहा है । कोई कला और नृत्य प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और भद्दे नृत्यों का प्रदर्शन कर रहा है । यंहा तक की बच्चों से भी बडो जैसी बातें और उनके भद्दे प्रदर्शन की अपेक्षा और आशा की जा रही है और उसे बढ़ाव दिया जा रहा है । सभ्य और जेंटल मेन कहे जाने वाले लोग भी ऐसे प्रदर्शन मैं पीछे नही है । फिल्मों मैं मनोरंजन और कला प्रदर्शन के नाम पर तो वल्गारिटी और अश्लीलता का प्रदर्शन चरम पर है । अब इसी का प्रभाव यह हो रहा है की सामजिक आयोजनों मैं भी इस तरह से वल्गर और फूहड़ प्रदर्शन होने लगे हैं । स्कूल और कॉलेज के उत्सव समारोह मैं भी मूल और मौलिक कला अभिव्यक्ति के स्थान पर फिल्मो और टीवी से प्रेरित फूहड़ और वल्गर प्रदर्शन हो रहें है ।
अब यह तो कहना मुश्किल है की क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी के प्रदर्शन का यह सिलसिला कान्हा आकर रुकेगा । किंतु यह अत्यन्त चिंता का विषय है । अतः ऐसे प्रदर्शन जिसमे क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी और फूहड़ प्रदर्शन हो रहा है जिसमे की मौलिकता और स्वाभाविक अभिव्यक्ति का अभाव होता है और समाज के लोग खासकर नई पीढी का शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होने की बजाय भटकाव , अशांत मन और नकारात्मक सोच की और प्रेरित हो रही है को हतोस्साहित किया जाना चाहिए है ।
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
शासकीय संस्थाओं की उपेक्षा करते जनप्रतिनिधि !
सोमवार, 3 नवंबर 2008
कहाँ गए महिला हितों के हिमायती संगठन .
शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008
ब्यूटीफुल और हेंडसम की चाहत !
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008
उत्तर भारतियों बंधुओं को अपने क्षेत्र से क्यों पलायन हेतु मजबूर होना पड़ता है .
बुधवार, 22 अक्टूबर 2008
देश के कदम चंद्रमा पर - कुछ खुशी कुछ गम !
सोमवार, 20 अक्टूबर 2008
क्या चुने हुए जनप्रतिनिधि / सरकार सभी जनता / देश का प्रतिनिधित्व करती है !
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008
वादा और वचन की तबियत बिगाड़ रखी है राजनेताओं ने .
जी हाँ वादा , वचन या आश्वाशन और इंग्लिश मैं कन्हे तो प्रोमिस । अब जीवन मैं इन शब्दों का उपयोग बेमानी सा लगने लगा है । अब लोग किए गया वादा , वचन और आश्वाशन पर विशवास नही कर रहे है । क्योंकि इन राजनेताओं ने इन शब्दों के साथ खेलकर और अपने राजनैतिक हितार्थ इनका मन माफिक प्रयोग कर इनकी तबियत ख़राब कर रखी है । वैसे ही जैसे भगवान् राम के नाम को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना , रंगों एवं प्रतीकों को किसी अन्य पार्टी से जोड़कर देखना वैसे ही अब इन शब्दों को राजनेताओं की भाषा से जोड़कर देखा जाना लगा है । अब वो दिने गए जब वादा और वचन का बड़ा महत्व होता था । दिया गया वादा और कही गई बात पत्थर की लकीर होती थी । भगवान् राम के युग मैं तो प्राण जाए पर वचन ना जाए के धर्मं का पालन किया जाता था । प्रेमी भी वादा और आश्वाषणों जैसे शब्दों का प्रयोग करने से कतराने लगे है । अब वे प्रेमी अथवा प्रेमिका द्वारा किए गए वादों विशवास करने मैं संकोच करने लगे हैं । अब कसमों और वादों पर बने हुए गाने भी बेमानी लगने लगे है , जैसे वादा रहा सनम होंगे न जुदा सनम , जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा , वादा करले साजना तेरे बिन मैं न रहू मेरे बिन तू न रहे इत्यादि इत्यादि ॥ वही कुछ दूरदर्शी गीतकार ने यह भांप लिए था की वादा और वचन शब्द का क्या हश्र होना है तो उन्होंने ने कुछ ऐसे गीत लिख डाले जैसे कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या , क्या हुआ तेरा वादा , मिलने की कोशिश करना वादा कभी न करना वादा तो टूट जाता है आदि आदि । इसी कारण आजकल की फिल्मों मैं तो प्रेमी और प्रेमिका के वादा और अश्वाशानो वाले द्रश्य भी कम ही देखने को मिलते हैं । इसी का ही प्रभाव है की आजकल की युवा पीढी बंधन और जीवन भर साथ निभाने वाली शादी और विवाह जैसे संस्था से परहेज करने लगे हैं और लाइव इन रिलेशन शिप को अपनाने को महत्त्व दे रहें है ।
इन शब्दों से विश्वास इतना उठ गया है की अब हर कही गई बात का लिखित प्रमाण मांगने लगे हैं । क्योंकि इन राजनेताओं के रोज बदलते बयानों और वादों ने इतनी छबि ख़राब कर रखी है । इनके चुनाव के समय किए वादों और आशावाशानो को पूरा होने की रास्ता देखते देखते लोगों की नजरें सूख जाती है और अगले पाँच साल बाद फिर नया वादों और अश्वशानो के साथ खड़े हो जाते है और उनसे यह भी नही पूछ पाते है की क्या हुआ तेरा वादा । जो ज्यादा पूछता है तो उसे कोई उपहार और सुख सुबिधायें दे दी जाती है ।
तो देश मैं अब चुनाव का समय आ गया है । और नए वादों और वचनों के साथ फिर हाज़िर है हमारे देश के कर्णधार और राजनेता । अब देखें जनता किसके वादों पर कितना विश्वाश करती है और अपना अमूल्य मत देती है ।
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008
आर्थिक मंदी - दोषी सरकार या जनता !
बुधवार, 15 अक्टूबर 2008
क्या संसकारों और मर्यादाओं को लांघना ही आधुनिकता का परिचायक है .
मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008
चुनाव के दो दृश्य - सकारात्मक और नकारात्मक !
सोमवार, 13 अक्टूबर 2008
जेंटल मेन गेम के खिलाडी ग्लेमर की चकाचोंध मैं धर्म को भूले !
क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल कहलाता है । किंतु इस सभ्य खेल के सभ्य खिलाडी ग्लेमर की चकाचोंध से अपने आप को नही बचा सके । फिल्मों और टीवी और फैशन के ग्लेमर की चमक के सामने क्रिकेट के ग्लेमर की चमक फीकी पड़ गई , और सभ्य खिलाडी इस ग्लेमर की चमक मैं फंस गए । आज के क्रिकेट खिलाडी ग्लेमर की अंधी दौड़ मैं शामिल होकर ख़ुद को और अधिक धन और शोहरत कमाने की हसरत से ख़ुद को रोक नही पाये , यंहा तक की अपने मूल खेल की जिम्मेदारी को भुलाकर । और इसमे इस खेल की प्रमुख संस्था बी सी सी आई भी अपने आप को दूर रख नही पायी । चाहे वह किसी उत्पाद के प्रमोशन हेतु विज्ञापन की बात हो । चाहे वह फैशन जगत मैं रैंप मैं चलने की बात हो , फिल्मों और टीवी धारावाहिकों मैं काम करने की बात हो या फिर अब कलर टीवी के एक खिलाडी एक हसीना के प्रोग्राम मैं टीवी अदाकारों के साथ नृत्य करने की बात हो ।
खिलाड़ियों द्वारा अपने मूल खेल को छोड़कर इस तरह ग्लेमर जगत की चकाचोंध वाली गतिविधियों मैं शामिल होने पर छुटपुट विवाद बनते और उठते रहे । किंतु कलर टीवी के एक खिलाडी एक हसीना प्रोग्राम मैं हरभजन का रावण का और उनकी सहभागी मोना सिंह का सीता का रूप धरकर विवादित नृत्य कर धार्मिक भावनाओं को आहात करने वाली घटना ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है । इस पर सिख संगठन और हिंदू संगठन ने आपति उठायी है , और ख़बरों के अनुसार उनके ख़िलाफ़ हिंदू देवी देवताओं का मजाक उडाकर धार्मिक भावनाओं को आहात करने पर कोर्ट मैं इसके ख़िलाफ़ केस भी दायर किया गया है ।
पहले भी मनोरंजन , कला प्रदर्शन और अभिव्यक्ति के नाम पर विवादस्पद होकर प्रसद्धि पाने के कुत्सित प्रयासों के चलते धार्मिक देवी देवताओं के सम्बन्ध मैं विवादस्पद बातों को अंजाम दिया गया है । क्या किसी धर्मं के आस्था और श्रद्धा के प्रतीक को निशाना बनाकर और उनका मजाक बनाकर सस्ती शोहरत हासिल किया जाना सही है । क्या ऐसी सस्ती लोकप्रियता की उमर लम्बी हो सकती है ? यदि इस प्रकार के विवादस्पद कार्यों जिसमे धार्मिक भावनाएं आहत हो के कारण यदि कोई देश और प्रदेश मैं अशांति का माहोल पैदा होता है तो क्या विवादों को जन्म देने वाले लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे ? हड़ताल , आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं होती है और उस पर जन और धन की कोई हानि होती है तो क्या ऐसे लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे ? यदि नही तो फिर बार इस तरह विवादास्पदों बातों को अंजाम देने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी करवाई क्यों नही की जाती , क्यों ऐसे लोगों को समाज मैं घूमने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है ?
अतः ऐसे लोग चाहे वे किसी खेल के राष्ट्रीय टीम के खिलाडी हो या फिर देश के व्ही आई पी ही क्यों न हो , के विरुद्ध कड़ी कारर्वाई की जानी चाहिए , ताकि दुबारा लोग इस तरह की विवादस्पद बातों को अंजाम देने से परहेज करें । और देश और प्रदेश मैं शान्ति और भाईचारे के वातावरण को दूषित और नुक्सान न पंहुचा सके । साथ ही खिलाड़ियों को भी अपनी वरिष्ट नागरिक की छबि और जिम्मेदारी को ध्यान मैं रखते हुए ऐसे विवादस्पद बातों को अंजाम देने से बचना चाहिए , क्योंकि इससे उनके लाखों प्रशसंकों और धर्मं से जुड़े करोरों लोगों की देवी देवताओं के प्रति आस्था और विशवास की भावना भी आहत नही होगी और सभ्य खेल की छबि भी बरकरार रहेगी .
बुधवार, 8 अक्टूबर 2008
ब्लॉग मैं धर्मं के प्रति उठे सवाल और संसय को सकारात्मक रूप मैं प्रस्तुत किया जाना चाहिए !
देश मैं चारों और धर्मं और भक्तिमय वातावरण बना हुआ है । नवरात्र और ईद के पवित्र अवसर पर सारा वातावरण आस्था और श्रद्धा के भक्तिमय वातावरण से सराबोर हैं । ऐसे अवसरों पर हिन्दी ब्लॉग जगत मैं भी इसका असर दिख रहा है । इन खुशी और आस्था के अवसर पर शुभकामनाएं और मंगल कामनाये दी जा रही है और इश्वर , परमात्मा , खुदा के इबादत और पूजा अर्चना की बात की जा रही है ।
किंतु वही इसके इतर ब्लॉग जगत मैं धर्मं और इश्वर , परमात्मा मैं खामियां और कमियां ढूंढकर उनपर उँगलियाँ उठायी जा रही है । हो सकता है की धर्मं और परमात्मा , इश्वर एवं धर्मं के पथ प्रदर्शक द्वारा बतायी गई बातें और मानव हित एवं कल्याण मैं उनके द्वारा किए कार्य की कुछ बातें आज के इस बदलते दौर मैं प्रासंगिक नही रही हो । हो सकता है धर्मं ग्रंथों मैं लिखी गई कुछ बातों मैं मत भिन्नता हो ,या फिर कुछ बातों को लेकर संसय और सवाल हो , किंतु कुछ बातों के संसय को लेकर पूरी बात की हकीकत को जाने बगैर , पूरे धर्मं और धर्मं के पथ प्रदर्शकों और उनके द्वारा दी गई सीखों पर उँगलियाँ उठाई नही जाना चाहिए । सदियों से ये धर्मं और उनके आदर्शों को इतनी श्रद्धा और आस्था और विश्वाश के साथ अपनाया जाना , निराधार और बेबुनियाद नही हो सकता है । धर्मं और इश्वर , परमात्मा एवं पथ प्रदर्शक के आदर्श और सीखें ही है जो इंसान को इंसानियत और मानवता की सीख देता है भाई का भाई के प्रति एवं भाई का बहन के प्रति , पुत्र / पुत्रियों का माता पिता के प्रति एवं माता पिता का अपने बच्चों के प्रति कर्तव्यों और जिम्मेदारियों , संबंधों की मर्यादा एवं समाज मैं नैतिक आचरण का निर्धारण कर पारिवारिक मूल्यों को कायम रख जीने की सीख देता है । आज देश को यही चीज जोड़े हुई है । ये बात अलग है की कुछ लोगों द्वारा इसकी आड़ मैं ग़लत आचरण और ग़लत रास्ते अपनाए जा रहे हैं । किंतु इससे पूरे धर्मं और उनके आदर्शों को दोष देना उचित नही है ।
यह देखने मैं आता है की ऐसे धर्मों मैं खामियां निकालकर उस आधार पर धर्मं को ग़लत कहने को कोशिश की जाती है जिनके अनुयायी कठोर रुख नही अख्तियार नही करते हैं । जो हमेशा ऐसी बातों से विचलित हुए बिना विवादों को नजरअंदाज कर अपनी आस्था और विश्वाश मैं अडिग रहते हैं ।
ऐसे अवसरों पर धर्मं और उनके पथ प्रदर्शकों के चरित्र और परमात्मा एवं इश्वर द्वारा बताये गए रास्तों और आदर्शों मैं खामियां निकालकर उसे विवादस्पद बनाकर एवं नकारात्मक रूप मैं अपने ब्लॉग मैं प्रस्तुत करना क्या अपने ब्लॉग को प्रसद्धि दिलाने का प्रयास नही लगता है । यदि धर्मं की किसी बात को लेकर कोई संसय और सवाल है तो उसे सकारात्मक रूप देते हुए उसका समाधान और हल ढूँढने का प्रयास नही किया जाना चाहिए । एक से अधिक धर्मं पुरुषों द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन कर संसय को दूर करने या फिर धर्मं के ज्ञाता और विद्धवान से इस बात का समाधान प्राप्त करने का प्रयास नही किया जा सकता है । बजाय अधूरे ज्ञान और अधूरे अध्ययन के और बिना किसी समुचित प्रमाण के उँगलियाँ उठाने के ।
अतः जरूरी है की ब्लॉग के माध्यम से यदि धर्मं की किसी बातों के बारे मैं संसय है तो उसे सकारात्मक रूप और शालीन तरीके से उठाया जाना चाहिए , बजाय उसे विवादस्पद और नकारात्मक रूप मैं प्रस्तुत करने के । इससे एक तो धर्मं के लोगों की आस्था और विश्वाश को ठेस नही पहुचेगी और हिन्दी ब्लॉग जगत की सादगी भी बनी रहेगी ।
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008
जवानों का मनोबल गिराकर, राजनेता स्वयम की सुरक्षा को दाव पर लगा रहे हैं !
सोमवार, 6 अक्टूबर 2008
लोग उग्र और हिंसक क्यों होते जा रहें हैं !
शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2008
अब हर फिक्र को धुँए मैं कैसे उडायेंगे .
ये सरकार ने भी क्या कर डाला । अब लोग अपनी फिक्र को धुँए मैं कैसे उड़ा पायेंगे । अब तो वो गाना भी बेमानी हो जायेगा की " मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया , हर फिक्र को धुएँ मैं उडाता चला गया " । तो अब जिन्दगी का साथ निभाने के लिए जो चिंता और फिक्र है उसको अब धुँए मैं नही उडाया जा सकेगा । ये सरकार भी जो हैं न , जिसे की जनता के सहूलियत को ख़याल रखना चाहिए , उसी को परेशान करने मैं लगी है । अरे जिस धुएँ के सहारे लोग बड़ी से बड़ी चिंता और फिक्र को दूर करते थे , बड़ी से बड़ी परेशानी का हल ढूँढ निकालते थे , ज्यादा नही तो कम से कम धुएँ के सहारे कुछ समय के लिए ही सही चिंता और फिक्र से राहत पाते थे । अब उनका यही राहत देने वाला साधन ही छीन लिया गया है । सरकार ने तो बड़ी मुश्किल कर दी है । सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर रोक लगाकर । यंहा तक तो ठीक था , बार और मैखाना तक मैं भी धुएँ उडाने पर पाबंदी लगा दी गई है । लगता है अब गाना बदलना पड़ेगा और अब फिक्र को धुएँ उडाने की बजाय , मैखाने मैं शराब और मदिरा मैं बहा कर काम चलाना पड़ेगा ।
धुएँ उडाने वालों की बड़ी परेशानी बन गई है घर वाले भी आजकल घरों मैं धुआं उडाने से मना करते हैं जिसके कारण घर के बाहर धुआं उडाया करते थे , किंतु अब वह भी बंद कर दिया गया है ।
सरकार को आम जनता का धुएँ उडाना ही नजर आ रहा है , दूसरों का धुएँ उडाना नजर नही आ रहा है । वो रेलवे वाले इतना धुआं उडा रहा है उन्हें कोई नही बोल रहा है । बड़ी बड़ी कंपनी वाले धुएँ उड़ा कर पर्यावरण को ख़राब कर रहें है , उन पर पाबंदी लगाने की कोई फिक्र नही है । दिन रात सरकार की मंत्री और अफसर गाड़ी दौड़ा दौड़ा कर धुआं उडा रहे हैं जनता के पैसे को बेफिक्र होकर उड़ा रहें है वो सरकार को नजर नही आ रहा है ।
वैसे चुनाव का समय आ रहा है यदि धुआं उडाने वाले चाहते हैं की उनका यह प्रतिबन्ध सरकार वापस ले ले , तो जल्द से जल्द अपना एक धुआं उडाने वाला संघटन बनाए , और सरकार को संगठन की वोट बैंक की शक्ति को दिखाएँ , जगह जगह धरना , प्रदर्शन और जुलुश निकाले तब सरकार निश्चित रूप से यह पाबंदी हटा सकती है क्योंकि इतने सारे वोट जो उससे दूर चले जायेंगे । तो धुआं उडाने वालों देर किस बात की , शुरू हो जाओ और अपने धुएँ उडाने के अधिकार को मौलिक अधिकार मैं जुड़वाँ लो यही अच्छा समय है । और फिर से अपनी फिक्र को धुएँ मैं उड़ा कर मस्त और खुश रहो ।
यह तो रही धुएँ उडाने वालों की बात , जनता की बात करें तो सरकार लोगों के धुएँ उडाने को रोकना चाह रही है किंतु वह ख़ुद देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार जैसे जनहित मुद्दे को की फिक्र को धुएँ मैं उडाकर मस्त हैं ।
अजी हम तो चाहते हैं की जिस तरह से सरकार जनता का धुआं उडाना बंद कर पीने वालों और नही पीने वालों के स्वास्थय का की फिक्र कर रही है ठीक उसी तरह देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार एवं देश हित और जनहित की अन्य समस्यायों की फिक्र को यूँ ही धुएँ मैं न उडाये , वरन उनको भी इसी तरह रोकने की इक्छा शक्ति दिखाएँ ।
बुधवार, 1 अक्टूबर 2008
जोधपुर की दुखद घटना - कब समझेंगे सब .
अतः इस ईद और नवरात्र के पवित्र मौके पर ऐसी मंगल कामना की जानी चाहिए की धार्मिक उत्सवों और आयोजन के शुभ अवसरों पर ऐसी दुखद और हिरदय विदारक घटना की पुनरावृत्ति नही होगी . हमारी वी आई पी भी भगवान् के दरबार मैं भी अपने को श्रेष्ट साबित करने से बचेंगे । मन्दिर प्रशासन और सरकार भी ऐसे धार्मिक शुभ अवसरों पर समुचित व्यवस्था करेंगी . साथ ही भक्त और श्रद्धालु भी भगवान् के दरबार मैं शान्ति और धैर्य के साथ शुभाशीष प्राप्त करने हेतु पहुचेंगे .
सोमवार, 29 सितंबर 2008
महिलाओं की सुन्दरता और बाजारवाद का प्रभाव !
शनिवार, 27 सितंबर 2008
आतंकवाद की आग मैं घी डालने का काम कर रही है देश की राजनीति !
गुरुवार, 25 सितंबर 2008
ना कोई सीमा ना कोई बंधन - बस एक ब्लॉग और खुलकर कहो बात !
मंगलवार, 23 सितंबर 2008
उम्मीद करें की जांबाज सिपाही शर्मा जी का बलिदान जाया नही जायेगा !
गुरुवार, 18 सितंबर 2008
आतंकवाद से भी बडा आतंकवाद !
बुधवार, 17 सितंबर 2008
अजी ये कैसे चयन कर्ता है !
अजी हाँ मैं कोई क्रिकेट , हांकी या किसी खेल की टीम के चयन कर्ता या फिर किसी रोमांचक और साहसिक कार्य के लिए चुने वाले दलों के चयन कर्ताओं की बात नही कर रहा हूँ , जिन्हें की उनके क्षेत्रों के भरपूर ज्ञान और अनुभव रहता है , उनकी एक निर्धारित योग्यता रहती है । उन्हें चयन किए गए या चुने गए उम्मीदवारों को चयन करने के साथ बापस हटाने या बुलाने का अधिकार भी रहता है ।
किंतु यहाँ चयन कर्ता को न कोई योग्यता की जरूरत होती है और न कोई अनुभव की । और तो और उन्हें यह तक नही पता होता है की हम जिस उम्मीदवार का चयन करने जा रहे है उसकी योग्यता क्या है ? उसे हम किस दल और किस टीम और किस कार्य के लिए चुन रहे है यह भी पता नही रहता है । चयन कर्ता इतने कमजोर और इक्छा शक्ति मैं कमी वाले होते हैं की उन्हें साम , दाम और दंड भेद से किसी भी दिशा मैं बहकाया जा सकता है । और यदि वे किसी उम्मीदवार का चयन भी कर लेते हैं तो उसे हटाने या बापस बुलाने का अधिकार भी नही रहता है ।
जी हाँ हमारे लोकतंत्र के मुख्य आधार स्तम्भ है , अर्थात वोटर या मतदाता । न तो उन्हें कोई योग्यता की जरूरत होती है , और न कोई अनुभव की , और न कोई उनके पारिवारिक इतिहास की । बस उन्हें देश का नागरिक होने के साथ उनकी उम्र १८ वर्ष होनी चाहिए । फिर चाहे वह अनपढ़ हो , अपराधी हो या फिर कुछ और । और उनके कन्धों पर उन उम्मीदवारों को चुनने की जिम्मेदारी होती है जो उसके क्षेत्र , जिला , प्रदेश और देश की लाखों करोरों लोगों की भावनाओं और विचारों का प्रतिनिधितव करते है , लोगों की समस्याओं और क्षेत्र के विकास के लिए जिन्हें अथक प्रयास और मेहनत करना होता है ।
इन सब कमियों के चलते ही ताओ आज देश के राजनेता मनमानी करने पर तुले हुए हैं , क्योंकि एक बार चुनने के बाद ताओ कोई हटा नही सकता है . और दूसरी बात यह भी है की उनकी इन कारगुजारियों को आम अनपढ़ और नासमझ मतदाता कितना समाज पायेगा , उन्हें पता है की चुनाव के नजदीक समय पर साम दाम और दंड भेद से इन मतदाताओं को बरगलाया जा सकता है . इस लोकतान्त्रिक देश मैं इन राजनेताओ द्वारा देश का कैसा मजाक बनाया जा रहा है की पढ़ा लिखा और समझदार बुद्धिजीवी वर्ग अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है और मन मसोस कर रह जाता है .
अतः प्रदेश और देश को चलाने वाली टीम का चयन करने वाले चयन कर्ताओं हेतु कुछ तो योग्यता का निर्धारण होना चाहिए । ताकि वह स्व विवेक से अपने वोट के महत्व और चयन किए जाने वाले उम्मीदवार की साख , उसके सामाजिक कार्यों और उसकी योग्यता को देखते हुए फ़ैसला कर अपना अमूल्य वोट दे सकें , और उसे पाँच साल तक किम कर्तव्य बिमूढ़ होकर हाथ मलते रह जाना न पड़े ।
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
आतंकी घटना पर गृह मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण बैठक .
गुरुवार, 11 सितंबर 2008
Give and Take पर निर्भर है ब्लॉगर की दुनिया !
मंगलवार, 9 सितंबर 2008
परमाणु करार पर इतनी उदारता क्यों ?
शनिवार, 6 सितंबर 2008
कुर्सी प्रेम छोड़कर - कुछ ऐसे भी जन सेवा करके देखे !
शुक्रवार, 5 सितंबर 2008
त्राश्दियों मैं हताहतों की मदद का विकृत रूप ?
विश्व या देश के किसी भी कोने मैं प्राक्रत्रिक आपदाओं जैसे बाढ़ , भूकंप , तूफ़ान अथवा सूखा अथवा मानव चूक से पैदा होने वाली कृत्रिम आपदाएं हो , इस प्रकार की घटित होने वाली भयंकर आपदाओं मैं देश विदेश से मदद के लिए कई हाथ आगे आते हैं । व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से लोग मदद के लिए सामने आते हैं । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज मैं सामूहिक रूप मैं साथ रहकर , एक दूसरे के सुख दुःख मैं काम आकर अपने जीवन का निर्वहन करता है । इसी स्वाभाविक वृत्ति के कारण मनुष्य अपने आसपास के लोगों की अपने सामर्थ्य के अनुसार दुखित और किसी घटना मैं पीड़ित लोगों की मदद करता है । सामान्तया दवाएं , भोजन , कपड़े एवं जीवन हेतु आवश्यक वस्तुओं अथवा आर्थिक सहायता के रूप मैं हताहतों की मदद की जाती है ।
कई बार ऐसी मदद तो निःस्वार्थ भाव से अंतरात्मा की आवाज पर स्वतः स्फूर्त होकर की जाती है । किंतु कई बार ये मदद दिखावा अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा के मद्देनजर मजबूरी बस की जाती है , जिसमे इसका खूब प्रचार प्रसार किया जाता है । इसी प्रकार कई बार यह देखने मैं आता है की मदद स्वरुप पहुचाई जाने वाली आवश्यक सामग्री अथवा आर्थिक राशि पीडितों तक पहुच ही नही पाती है । सरकार अथवा प्रशासन द्वारा प्रदान की जाने वाली लाखों करोरों रूपये की मदद प्रशासन मैं बैठे बीच के लोगों द्वारा ही पचा ली जाती है जिससे हताहतों और पीडितों को इन मददों के आभाव मैं भारी दुःख एवं कठिनाई झेलनी पड़ती है । यह देखने मैं भी आता है कई लोग मदद के नाम पर हताहतों और पीडितों के बीच कीमती सामानों के लालच मैं जाते हैं । लोग शहर और बस्तियों मैं निकलकर हताहतों के नाम पर चंदा एवं आर्थिक सहायता मांगते हैं , जिसका कोई हिसाब नही रहता है की वे कितना पैसा पीडितों तक पंहुचा रही हैं , अथवा पंहुचा भी रहे हैं या नही । एक चीज और गौर करने वाली है की मदद के नाम पर कई परिवार , घर के मैले कुचेले और फटे कपड़े एवं घर के अनावश्यक समान रुपी कूड़ा करकट को देते हैं , जो की मजबूरी बस दी गई मदद को दर्शाता है और मजबूर और हालात के मारे हुए लोगों के माखोल उडाने के सामान है।
इन सबके बीच ऐसे लोग अथवा संस्था है जो खामोशी के साथ निःस्वार्थ भावना से मदद हेतु आगे आते हैं । ऐसे लोगों की कमी नही है जो जान जोखिम मैं डालकर लोगों की मदद करते हैं । अतः मददों के इन अच्छे पहलु के इतर मददों के विकृत स्वरुप मैं सुधार होना जरूरी है । मदद ऐसी की जाए जो आडम्बर रहित हो , जिसमे कोई मजबूरी न हो । सामर्थ्य के अनुसार ऐसी मदद की जाए की सम्मान के साथ एवं आवश्यकता के अनुरूप , मदद पाने वाले लोगों तक यह मदद पहुचे । उनको भी लगे की इस दुःख और परेशानी की घड़ी मैं हमारे अपने साथ हैं ।
शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
कोसी के कहर जैसे त्रासदी के कसूरबार
मंगलवार, 26 अगस्त 2008
कलाकार की नैसर्गिक प्रतिभा का दम न घुटे !
गुरुवार, 21 अगस्त 2008
हर बार पदकों के लाले क्यों ?
एक एक कर ओलंपिक मैं ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने की सभी आशाएं धूमिल होती जा रही है । लगता है हमें मातृ दो तीन पदक से ही संतोष करना पड़ेगा । आख़िर ऐसा क्यों ? इस १०२ करोड़ लोगों के देश मैं जिसकी आबादी पड़ोसी देश चीन से थोडी ही कम है , ओलंपिक मैं पदकों के लाले पड़े हैं । वही चीन पदकों की तालिका मैं प्रथम स्थान बनाकर बढ़त बनाए हुए हैं । क्या हम इन १०२ लोगों मैं १०० - २०० खिलाडी ऐसे नही ढूंढ सकते , जिनमे खेल मैं सिखर तक पहुचने का जज्बा , माद्दा , योग्यता और काबिलियत हो । क्या देश मैं ऐसे दृढ इक्छा शक्ति वाले कुछ अच्छा कर गुजरने की लालसा रखने वाले लोगों की कमी है ।
मेरे से विचार से तो ऐसा नही है । हमारे यंहा ऐसे लोगों की कमी नही है । बस कमी है तो ऐसे लोगों को बिना किसे पूर्वाग्रह के तलाश कर तराशने और उचित अवसर प्रदान करने की । किंतु अभी तक ऐसा नही हो पा रहा है । राजनीती की काली छाया ने खेल की भावना और पवित्रता को धूमिल कर भाई भातीजबाद को बढ़ावा दे योग्यता और काबिलियत को दरकिनार कर दिया है । इसी का ही परिणाम है की हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हर खेल मोर्चे मैं असफल हो जाता है । और देश के खाते मैं पदकों मैं के लाले पड़ जाते है ।
आख़िर क्यों न एक निष्पक्ष खेल नीति बनायी जाए जिसमे बिना किसी आग्रह विग्रह के योग्य और क्षमतावान खेल प्रतिभाओं को अवसर दिया जाए । हर जिला स्तर मैं एवं स्कूल और कॉलेज के माध्यम से खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देकर तराशा जाए । स्कूल और कॉलेज मैं खेल के पाठ्यक्रम मैं अनिवार्य रूप से खेल को एक विषय के रूप मैं शामिल कर उसके प्रायोगिक और व्यवहारिक रूप मैं अपनाया जाना चाहिए । खेल को बढ़ावा देने हेतु इसके लिए आवश्यक इन्फ्रा स्ट्रक्चर और समुचित खेल वातावरण को निर्मित किया जाना चाहिए । खेल प्रतिभाओं हेतु आवश्यक आर्थिक सहायता और छात्रवृत्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए । साथ ही इस बात की व्यवस्था रखा जाना चाहिए की जो खिलाडी खेल मैं अपने जीवन का स्वर्णिम समय अर्पित करता है उनके जीवन के संध्याकाल हेतु अथवा खेल के दौरान होने वाले शारीरिक नुक्सान से भरपाई हेतु जीवनोपयोगी सभी आवश्यक सुख सुविधायों की व्यवस्था की जाना चाना चाहिए । इससे निसंदेह हर खिलाडी जी जान से अपना सारा समय सिर्फ़ खेल और सिर्फ़ खेल हेतु बिताएगा और इससे निश्चित रूप से आशाजनक परिणाम सामने आयेंगे और देश को फिर किसी भी अन्तराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता मैं पदकों के लाले नही पड़ेंगे ।
शुक्रवार, 15 अगस्त 2008
एक लड़ाई नकारात्मक सोच के अपने ही लोगों से !
आजादी की 61 वी वर्षगाँठ मना रहे हैं . न जाने कितने ही लोगों ने अपने सुखों , पारिवारिक हितों और अपनी जान की परवाह किए बगैर बाहरी लोगों से लड़कर आजादी को दिलाने हेतु अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया होगा और इस मंगल कामना के साथ इस देश को आगामी पीढी के हवाले कर इस जन्हा से रुखसत हुए होंगे की , देश के लोग और देश भय , भूख , भ्रष्टाचार और अराजकता जैसी समस्याओं से मुक्त होकर निरंतर सुख , समृद्धि और विकास के नित नए आयाम और सिखर को छुयेगा . किंतु इन सब से इतर देश मैं अपने ही लोगों द्वारा बनायी जा रही भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों मैं जकड़ते जा रहा हैं .
आजादी से लेकर अब तक हर क्षेत्र मैं हुए विकास को नकारा नही जा सकता है . किंतु लगता है की देश ने जन्हा स्रजनात्मक द्रष्टि वाले कड़ी म्हणत और दृढ इक्छा वाले लोगों के योगदान से विकास किया है वन्ही नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों द्वारा पैदा की जा रही नित नई समस्याएं जो लोगों का जीना मुहाल कर रही है और देश मैं अशांति और भय का वातावरण निर्मित कर देश के अब तक हुए विकास को धता बता रही .
देश मैं धधकती कश्मीर की आग जो वोट बैंक और दृढ इक्छा शक्ति के अभाव मैं उन्सुल्झी रहकर सारे देश को झुलसाने को तैयार है , कमर तोड़ मंहगाई जो हर प्रयासों के बाद भी दिनों दिन सुरसा की तरह मुंह फाड़ रही है और आम आदमी के लिए संतुलित भोजन को दूर की कौडी साबित कर पेट भरने के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाने मैं भी उलझाने पैदा कर रही है , आतंकवाद की समस्या जो इतनी सम्रद्धि होने के वाद भी लोगों को असुरक्षा और भय के माहोल मैं जीने को मजबूर कर रही है , देश मैं उत्पन्न राजनीति अराजकता की स्थिति जिसमे नैतिकता , सैधांतिक वैचारिकता और संवेदनशीलता शुन्य हो गई है , जन्हा देश हित और जन हित गौण होकर सत्ता सुख , व्यक्तिगत और राजनैतिक हित महत्वपूर्ण हो गए है , जन प्रतिनिधियों के खरीद फरोख्त से लेकर हर छोटे छोटे कार्यों मैं रुपयों की बोली लगने लगी है , जिससे ऐसा लगता है की भ्रष्टाचार अब समस्या नही अब जीवन के आम दिनचर्या का हिस्सा है . धर्मं और आध्यात्मिकता को व्यापार और वसाय का रूप देकर और छल कपट की नीति को अपनाकर उसकी आड़ मैं नैतिकता की हदें पार की जा रही है . विरोध प्रदर्शन के नाम पर चक्का जाम , जुलुश और बंद के दौरान लूट , आगजनी , हिंसा और तोड़फोड़ कर राष्ट्रीय संपत्ति को नुक्सान पहुचकर और आम आदमी के जीवन की परवाह न कर मानविय संवेदना को टाक पर रखा जा रहा है .
इन समस्यायों के अब तक तो कोई ठोस और सर्वमान्य हल सामने नही आए है . देश की सरकार और प्रशासन की कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता भी नही है इन समस्याओं से देश को मुक्ति मिल सकेगी ।
अतः आवश्यकता है अपने ही बीच के नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों से एक लड़ाई और लड़ने की जो देश को भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों से मुक्ति दिला सके ।
इस आशा और विश्वाश के साथ की यह पर्व देश और देश के सभी लोगों के लिए सुख समृद्दी भरा होगा । सभी को इस राष्ट्रीय पर्व की हार्दिक बधाई ।
शनिवार, 26 जुलाई 2008
बम धमाकों की गूँज दुबारा सुनने को न मिले !
गुरुवार, 24 जुलाई 2008
मजबूर ये हालत - हर कही है !
शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
जिस डाली मैं बैठे है उसे ही काट रहे हैं !
सत्ता हथियाने का कैसा कलुषित खेल देश मैं खेला जा रहा है , सभी राजनेता और राजनैतिक दल अपने अपने नफे नुक्सान के हिसाब से इस खेल मैं अपनी भागीदारी कर रहा है । नियमों और मर्यादायों की सभी सीमाओं को लाँघ कर सत्ता प्राप्ति का और सरकार गिराने का हर सम्भव खेल खेला जा रहा है । इस समय कोई अपराधी , नही कोई विरोधी नही , अपने अपने सहूलियत से एक दूसरे से हाथ मिलाने और गले मिलने को तैयार है । जो कल तक घोर विरोधी था वह दोस्त बन गया है और जो दोस्त था वह दुश्मन हो गया है । एक दूसरे पर ऐसे आरोप भी लगाए जा रहे है की पैसे से या फिर पद के लालच मैं बिकने और खरीदने को तैयार है । देश के ऐसे राजनैतिक परिद्रश्य पर संभवतः २२ जुलाई के बाद ही विराम लग सकेगा । तब तक हमें रेडियो और टीवी के माध्यम से देखने और सुनने को और अखबार के माध्यम से पढने को यह सब मिलता रहेगा । तब तक आम आदमी और उसकी समस्यायें , देश और उसके महत्वपूर्ण मुद्दे और निर्णय हासिये पर जाते रहेंगे ।
देश मैं मचे राजनैतिक घमाशान से जन्हा लोगों की राजनीति से दूरियां बढ़ रही है वन्ही लोकतंत्र के साथ हो रहे इस घिनोने मजाक से लोगों का लोकतंत्र से विश्वाश उठने लगा है । लोकतंत्र के नाम पर पहले भी लोगों की भागीदारी सिर्फ़ वोट डालने तक सीमित थी , किंतु अब लोग अब इस पुनीत कार्य से भी कतराने लगे हैं । बमुश्किल ५० फीसदी से भी कम लोगों की चुनाव मैं भागीदारी रहती थी , किंतु ऐसी स्थिति मैं तो लोगों के रुझान मैं और कमी आएगी । आम जन अपने चुने हुए प्रतिनिधि के वादा खिलाफी और स्वार्थसिद्धि हेतु किए जाने वाले कारनामे से दुखित और निराश हैं ।
अतः राजनेता और राजनैतिक दल अपने हाथ से अपने पैरों मैं ख़ुद कुल्हाडी मारने का काम कर रहे हैं । वे लोकतंत्र रुपी जिस डाली मैं बैठे हैं उसे ही काटने को तुले हैं । जब लोगों का राजनेता और राजनैतिक दलों पर से विश्वाश उठने लगेगा तो लोगों का लोकतंत्र के प्रति रुझान मैं स्वतः ही कमी आने लगेगी । और जब लोग ही चुनाव मैं वोट डालने ही नही जायेंगे फिर लोकतंत्र तो खतरे मैं पड़ेगा ही , और जब लोकतंत्र खतरे मैं होगा तो फिर कान्हा राजनेता और कान्हा राजनैतिक दल सुरक्षित रहेंगे ।
यदि राजनेता और राजनैतिक दलों का ऐसा ही आचरण और आलम रहा तो एक दिन उनका अस्तित्व ही खतरे मैं आ जायेगा । अतः आवश्यकता है लोकतंत्र के प्रति लोगों के घटते विश्वाश को बचाने की , राज नेता और राजनैतिक दलों को अपने आचरण और कार्यों मैं सुधार कर खतरे मैं पड़ते अपने अस्तित्व को बचाने की । तभी देश मैं स्वस्थ्य लोकतंत्र के परचम को फिर से लहराया जा सकेगा ।