शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई के लिए खूब खाते कसमे : वक्त आने पर ख़ुद ही मुंह चुराते .

देश मैं हाल ही मैं घटी दो घटना तो यही बयां कराती है । एक घटना जिसमे सरकार के एक मंत्री अंतुले राजनीतिक महत्व्कांचा के चलते ऐ टी अस प्रमुख की शहादत पर विवादस्पद बयानबाजी कर रहें है और सरकार और ख़ुद की आतंकवाद के प्रति लड़ने की मंशा पर प्रश्नचिंह लगा कर इस लड़ाई को कमजोर कर रहें हैं । वन्ही दूसरी घटना जिसमे देश के व्ही आई पी खिलाडी जहीर चेन्नई मैं स्वयम सुरक्षा के लिए की गई सुरक्षा जाँच को धता बता कर जांच एजेन्सी और जवानों के मनोबल को गिरा रहें हैं । यह तो रही देश के व्ही आई पी और ख्यातनाम जिम्मेदार लोगों की बात । लगभग यही हाल देश के अधिकाँश लोगों का भी है । टीवी स्क्रीन पर , समाचार पत्रों और विभिन्न मंचो पर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई की कसमे खाते नही अघाते हैं किंतु जब सहयोग और कुछ करने की बारी आती है तो बगल झाँकने लगते हैं और जरा असुबिधा और जांच अपमानजनक और परेशानी वाली लगती है । आमजन भी सड़कों पर मोमबत्ती जलाकर तो कही हस्ताक्षर अभियान चलाकर तो कंही मानव श्रृंख्ला बनाकर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने की प्रतिज्ञा करते हैं किंतु जिम्मेदारी निभाने का वक़्त आने पर अधिकाँश लोग बचने की कोशिश करते नजर आते हैं ।
ऐसे मैं आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ने की बात सिर्फ़ मुह्जवानी , प्रदर्शन और सरकार और प्रशासन की फाइलों तक सीमित और सिमट कर रह जाने से इनकार नही किया जा सकता है । फिर कौन लडेगा आतंकवाद की लड़ाई । क्या हम नही हमारे पड़ोस वाला , या फिर कोई और । क्या कोई मसीहा , या फिर कोई दिव्यशक्ति या फिर कोई अवतार । शायद सभी लोग इसी बात का इंतज़ार और आशा कर रहे हैं की काश कोई आता और देश को और हमें हमारी परेशानियों और मुसीबतों से निजात और छुटकारा दिलाता ।
क्या तू चल मैं आया वाली तर्ज़ पर आतंकवाद के विरुद्ध सही और सकारात्मक लड़ाई लड़ी जा सकती है । कहा जाता है की हिम्मते मर्दा मदद ऐ खुदा । अतः जरूरत है की इस आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई मैं सभी अपनी क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार अपनी जिम्मेदारी निभाने का और व्यवस्थाओं मैं सहयोग करने का प्रयास करें । तभी हम आतंकवाद के विरुद्ध एक सही लड़ाई को अंजाम दे सकेंगे ।

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

पैरों की जूती की किस्मत भी चमकती है .

अब यह बात बेमानी हो गई है की पैरों के जूतों की किस्मत और कीमत भी बदलती है । अब पैरों मैं पहने जाने वाली जूती या जूतों के दिन फिर सकते है बस जरूरत होती है उसे एक अदद सहारे अथवा ऐसे माध्यम की जो उसे पैरों से उठाकर सर मैं बिठाने मैं मदद करे । अब देखों न उस पत्रकार बंधू के जूतों की किस्मत जिसने कभी सोचा भी नही होगा की आज उसकी इतनी कीमत बढेगी और इतनी प्रसद्धि मिलेगी । नही तो उसे कौन जानता उसे , सभी साधारण जूतों की तरह वह भी एक गुमनाम जिन्दगी जीकर अपने को ख़त्म कर लेता , किंतु भला हो उस पत्रकार बंधू का जिस के अदम्य साहस और आक्रोश का जिसने आज उस जूते की जिन्दगी बदल दी । आज उसकी कीमत करोड़ों और अरबों मैं हो गई है । पूरे विश्व मैं आज उन जूतों के दीवानों और कदरदानों की भारी तादाद बढ़ गई है ।
जूतों को अपने आक्रोश व्यक्त करने और नाराजगी व्यक्त करने के हथियार के रूप मैं कब से प्रयोग शुरू हुआ यह शोध का विषय हो सकता है । किंतु यह कहा जा सकता है की हमारे देश मैं इसका आक्रोश व्यक्त करने के हथियार के रूप मैं प्रयोग लंबे समय से चला आ रहा है । छोटे छोटे लड़ाई झगडे और गली मोहल्ले के लड़ाई झगडे मैं इसका प्रमुखता से घातक हथियार के रूप मैं प्रयोग किया जाता रहा है । अब तो इसका प्रयोग बड़े बड़े और ख्यातनाम लोग करने लगे है । अब तो इसका प्रयोग हमारे देश के ख्यातनाम राजनेता भी करने से नही कतरा रहे हैं ।
इन सब घटनाओं के परिप्रेक्ष्य मैं देखे तो जूता अब एक घातक हथियार के रूप मैं सामने आया है । शारीरिक रूप से तो कम हानि पहुचाता है किंतु सम्मान और प्रतिष्ठा को भारी हानि पहुचाते है । समाज और लोगों के सामने इज्जत की भारी किरकिरी करवाते हैं । कई लोगों को तो जात निकाला और समाज मैं हुक्का पानी भी बंद करवा देता है यह जूता । फिर समाज मैं पुनः शामिल होने और शुद्ध होने के लिए भारी भोज भी कराया जात है । वैसे बुश साहब को तो जूता लगा नही , वो उनकी शारीरिक और मानसिक चपलता का परिणाम है की उन्होंने जल्दी जूते के आक्रमण को भांप लिया और उसकी मार से अपने आप को बचा लिया । फिर भी जाते जाते पूरे विश्व मैं भारी किरकिरी तो हो गई ।
एक महाशक्ति देश के शक्तिशाली व्यक्ति के सर चढ़ने का नतीजा यह हुआ की जूते का अपना रुतबा और प्रतिष्ठा और प्रसद्धि तो बढ़ गई किंतु इस जूते को मकाम तक पहुचाने वाले क्या हश्र होगा यह तो खुदा जाने । फिर भी अपने को मुसीबत मैं डालकर जूते की किस्मत को चमका तो गया और बता गया की पैरों की जूती की किस्मत भी चमकती है ।

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

वक़्त आ गया है देश के राजनीतिक ढांचे मैं बदलाव का !

हाल ही मैं हुए मुंबई की बम धमाके से लोगों का राजनीतिक नेत्रत्व के प्रति बढ़ते आक्रोश से राजनेता के प्रति गिरते विश्वाश और धूमिल होती साख से देश की वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था से भरोसा उठ गया है । इस घटना के बाद जिस तरह से राजनेताओं द्वारा असम्वेदन शीलता और गंभीर हीनता का परिचय दिया जा रहा है वह लोगों के जख्मो मैं मरहम लगाने की बजाय दर्द को और बढ़ा रहे हैं । उनके द्वारा दिए जा रहे असयंत बयान और क्रियाकलाप असम्वेदन शीलता और गंभीर हीनता का प्रदर्शन कर रहे हैं । और देश के लोगों की सुरक्षा और सामाजिक और आर्थिक विकास की जिम्मेदारी और जवावदेही के प्रति अकर्मण्यता ने उनके आ कुशलता और असफलता को जग जाहिर किया है ।

अब लोगों को इस बात के लिए तैयार नही होंगे की अपने देश और प्रदेश की बागडोर अब इस प्रकार असम्वेदन शील , गंभीर हीन और अकर्मण्य , अयोग्य और शारीरिक रूप से शिथिल हो चुके राजनेताओं को सोपें । अतः अब समय आ गया है की देश के राजनीतिक ढांचे मैं भारी बदलाव किया जाए । देश के राजनेताओं जिन्हें की ११० करोड़ लोगों के देश और प्रदेश को चलाने की जिम्मेदारी और लोगों की सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौपी जानी होती है के लिए भी अब योग्यता के विभिन्न मापदंड तय किए जाने चाहिए ॥ जन्हा देश मैं एक चपरासी हेतु भी योग्यता के विभिन्न मापदंड तय किए जाते हैं तो इनके लिए क्यों नही ? मेरे विचार से देश के राजनीतिक ढाँचे मैं कुछ इस प्रकार बदलाव तो किए जाने चाहिए ।

१. सांसद और विधायकों के उम्मीदवारी की योग्यता परिक्षण हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए ।

शारीरिक और मानसिक रूप से बुढाते राजनेताओं की उम्र सीमाँ भी निर्धारित की जाए ।

३ सांसद और विधायकों हेतु उम्मेदवारी की शैक्षणिक , शारीरिक और मानसिक योग्यता का निर्धारण हो । चरित्र सत्यापन भी अनिवार्य किया जाए ।

४ मंत्री मंडल मैं पदों हेतु भी विभाग से सम्बंधित क्षेत्र मैं अनुभव और निर्धारित योग्यता का निर्धारण होना चाहिए ।

५ सांसद और विधायकों की दावेदारी हेतु उसके ग्रह जिला अथवा क्षेत्र मैं सामाजिक और जनसेवा के कार्यों का लगभग १० वर्ष का अनुभव अनिवार्य हो ।

६ देश चलाने का एजेंडा राजनीतिक पार्टी की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर गठित समिति द्वारा तय किया जाए । राष्ट्रीय समिती मैं विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों को शामिल किया जाये ।

७ तय एजेंडा पर सरकार के कार्य का आकलन हर ६ माह मैं किया जाए । यदि परफॉर्मेंस ६० प्रतिशत से कम हो तो सरकार को बदला जाए ।

८ इसी तरह सरकार के सभी मंत्रियों और सांसदों और प्रदेश स्तर के विधायकों के कार्यों का भी आकलन किया जाए । यदि परफॉर्मेंस ६० प्रतिशत से कम हो तो उन्हें बदल दिया जाए ।

९ मंत्रियों और सांसदों और प्रदेश स्तर के विधायकों द्वारा अपने कार्य मैं असफल रहने एवं गलती होने पर सजा का प्रावधान हो ।

१० अपने क्षेत्र मैं चुनाव मैं हारे उम्मीदवार को किसी भी स्थिति मैं सरकार मैं स्थान ना दिया जाए ।

११ चुनाव मैं उम्मीदवार के चयन मैं कोई नही का विकल्प अथवा नो वोट का विकल्प दिया जाए ।

१२ लोकसभा एवं विधानसभा , केन्द्र एवं राज्य स्तर की सरकार एवं प्रशासनिक व्यवस्था की मूलभूत जानकारी से आम जनता को परिचित कराया जाए । प्रायः देखने मैं यह आता है की चुनाव किस स्तर की सरकार के लिए हो रहा है ।

१३ मतदाताओं की भी शैक्षणिक योग्यता का भी निर्धारण किया जाना चाहिए । कम से कम प्राथमिक स्तर की शिक्षा का मापदंड तो तय किया जाना चाहिए ।

१४ प्रतिवर्ष सांसदों और विधायकों की स्थाई और अस्थाई संपत्ति का व्योरा प्रस्तुत करना अनिवार्य किया जाए ।

१५ प्रतिवर्ष सांसदों और विधायकों का शारीरिक और मानसिक स्वस्थता का परिक्षण अनिवार्य किया जाए ।

१६ सरकार अथवा सांसदों और विधायकों को अपने दायित्वों को निभाने मैं असफल रहने पर जनता को उन्हें वापिस बुलाने का अधिकार दिया जाए ।

१७ प्रधानमन्त्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री का चुनाव भी प्रत्यक्षा मतदान प्रणाली से किया जाए ।

१८ सांसदों और विधायकों की उम्मीदवारी हेतु खड़े लोगों की व्यक्तिगत जानकारी का ब्यौरा जनता के सामने रखा जाना अनिवार्य हो ।

तभी हम देश मैं एक स्वच्छ और योग्य राजनीतिक नेत्रव की उम्मीद कर सकते हैं जो देश के विकास और जन हितार्थ के कार्यों मैं खरे उतर पायेंगे ।

गुरुवार, 27 नवंबर 2008

शोक ! शोक !! शोक !!!


आज टिपण्णी
नहीं साथ चाहिये ।
इस चित्र को अपने ब्लॉग
पोस्ट मे डाले और साथ दे ।

एक दिन हम सब
सिर्फ़ और सिर्फ़
हिन्दी ब्लॉग पर अपना
सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे !
प्रेरणा और चित्र
सीमा गुप्ता जी और रामपुरिया जी के ब्लॉग से
आभार सहित !

शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

ओवामा की जीत - भारत मैं भी एक युवा नेत्रत्व की आस !

४७ वर्षीया ओवामा की जीत ने हम भारतीया लोगों मैं भी एक तमन्ना और एक विशवास जगा दिया है की आज नही तो कल युवा नेत्रत्व के हाथों मैं भारत की कमान आएगी । इन बुढे और निढाल हो चुके बुजुर्ग नेत्रत्व से देश को जरूर मुक्ति मिलेगी । जिनमे मानसिक रूप से न तो इतना जोश और उर्जा होती है की कोई साहसिक फ़ैसला ले सके और न ही इतना शारीरिक बल होता है की दिन रात एक कर देश की हर छोटी बड़ी समस्या को सुलझा सके । बस होता है तो जीवन का लंबा अनुभव जो की बदलते परिवेश के साथ अपनी प्रासंगिकता खोता जाता । साथ ही उनसे परम्परा से हटकर कुछ नया सोचने की उम्मीद भी नही की जा सकती है । संभवतः यही कारण है की देश मैं आज समस्याओं और परेशानियों का अम्बार लगा हुआ है और जिनका कोई सार्थक और प्रभावकारी हल नही निकल पा रहा है । आज देश मैं समस्यायें ज्यों की त्यों बनी हुई है । और उनमे सुधार होने की बजाय स्थिती दिनों दिन बिगड़ती जा रही है । चाहे मंहगाई की बात करें या आर्थिक मंदी की बात , बाह्य आतंकवाद की बात करें या व्यवस्था के ख़िलाफ़ उभरे असंतोष से उपजे नक्सलवाद की । देश मैं फैली प्रशसनिक अव्यवस्था की बात करें या सामाजिक अव्यवस्था की या फिर अन्य कई समस्यायों की ।
हर मामले मैं अब देश का बुजुर्ग होता नेत्रत्व अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है । देश के सदन की बात करें या फिर किसी महत्वपूर्ण सेमीनार या जन आयोजन की या फिर प्रदेशों के विधानमंडलों की सभाओं की जन्हा देश प्रदेश और जन हित के मुद्दों पर गंभीर चिंतन मनन करना होता है कई जन नायक सोते हुए अथवा लंबे जीवन की थकान से बोझिल होते पाये जाते हैं । शारीरिक अस्वस्थता एवं अक्षमता और ढलती उम्र पूर्ण उर्जा और जोश के साथ लंबे समय तक कार्य करने मैं बाधक बनती है परिणामतः वाँछित और उचित परिणाम समय पर मिल सकने मैं विलंब होता है ।।
अतः देश को भी दरकार है ओवामा जैसे उर्जावान , साहसिक और दृढ संकल्पी प्रवृत्ति के युवा नेत्रत्व की । जो देश के लिए कुछ नया और अच्छा सोचे । जो वोट बैंक और तुष्टिकरण की नीति और राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचे । जो सपना देखे एक नए और युवा , सम्रद्ध और विकसित भारत की और उस सपना को सच करने मैं दृढ शारीरिक और मानसिक क्षमता के साथ देश के युवाओं को साथ लेकर और बुजुर्गों के अनुभव से मार्गदर्शन लेकर दिन रात महनत कर सके ।
अब यह युवा नेत्रत्व का सपना जो देश की उतरोतर प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगा , ओवामा की जीत ने भारत क्या विश्व के लोगों मैं यह उम्मीद और आशा की किरण जगा दी है जो आज नही तो कल जरूर पूरी होगी ।

बुधवार, 5 नवंबर 2008

क्रेअटिविटी या वल्गारिटी !

कहते हैं की खाली दिमाग शैतान का घर होता है । अतः खाली बैठने और खाली दिमाग रखने की अपेक्षा इंसान को कुछ सकारात्मक कार्य करते रहना चाहिए , जिससे इंसान का स्वयं का तो हित तो जुडा हुआ है साथ ही समाज का भी हित जुडा है । इंसान के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्य से एक तो इंसान का मन और ध्यान इधर उधर ग़लत कामों की और नही भटकता है जिससे समाज मैं शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है ।
किंतु आज के समय मैं समाज के कुछ लोगों के द्वारा क्रेअटिविटी अर्थात सृजनात्मकता के नाम पर जो प्रदर्शन और कार्य किए जा रहे हैं , क्रेअटिविटी और रचनात्मकता के नाम पर आज समाज के सामने जो परोसा जा रहा है , कला और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर जो अभिव्यक्ति हो रही है उसे क्रेअटिविटी कहें या वल्गारिटी ।

कोई कला प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और विवादस्पद चित्र बनाकर लोगों की भावना और आस्था से खिलवाड़ कर अपने को महान चित्रकार कहलवाने की कोशिश कर रहा है । कोई लोगों के मनोरंजन और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर फूहड़ और भद्दा मजाक और कामेडी कर रहा है । कोई कला और नृत्य प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और भद्दे नृत्यों का प्रदर्शन कर रहा है । यंहा तक की बच्चों से भी बडो जैसी बातें और उनके भद्दे प्रदर्शन की अपेक्षा और आशा की जा रही है और उसे बढ़ाव दिया जा रहा है । सभ्य और जेंटल मेन कहे जाने वाले लोग भी ऐसे प्रदर्शन मैं पीछे नही है । फिल्मों मैं मनोरंजन और कला प्रदर्शन के नाम पर तो वल्गारिटी और अश्लीलता का प्रदर्शन चरम पर है । अब इसी का प्रभाव यह हो रहा है की सामजिक आयोजनों मैं भी इस तरह से वल्गर और फूहड़ प्रदर्शन होने लगे हैं । स्कूल और कॉलेज के उत्सव समारोह मैं भी मूल और मौलिक कला अभिव्यक्ति के स्थान पर फिल्मो और टीवी से प्रेरित फूहड़ और वल्गर प्रदर्शन हो रहें है ।

अब यह तो कहना मुश्किल है की क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी के प्रदर्शन का यह सिलसिला कान्हा आकर रुकेगा । किंतु यह अत्यन्त चिंता का विषय है । अतः ऐसे प्रदर्शन जिसमे क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी और फूहड़ प्रदर्शन हो रहा है जिसमे की मौलिकता और स्वाभाविक अभिव्यक्ति का अभाव होता है और समाज के लोग खासकर नई पीढी का शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होने की बजाय भटकाव , अशांत मन और नकारात्मक सोच की और प्रेरित हो रही है को हतोस्साहित किया जाना चाहिए है ।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

शासकीय संस्थाओं की उपेक्षा करते जनप्रतिनिधि !

देश मैं जन कल्याण कारी योजनाओं के तहत देश के नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं उनके हितों के मद्देनजर विभिन्न शासकीय संस्थाओं की स्थापना की जाती है । इन्ही संस्थाओं के माध्यम से देश का कोई भी नागरिक सेवा और शासकीय सुबिधाओं को पा सकता है । जैसे की यदि देश के नागरिक अर्थात जनता के स्वास्थ्य सुबिधाओं , शिक्षा , आवागमन के साधन की सुबिधा , खाद्यान वितरण की सुबिधा एवं अन्य शासकीय सुबिधाओं हेतु शासकीय संस्थाओं की स्थापना की जाती है ।
आज इन स्थापित संस्थाओं जिनके ऊपर जनता के कल्याण और हितों की जिम्मेदारी है उनकी सेवाओ की गुणवत्ता दिनों दिन गिरती जा रही है और उन संस्थाओं मैं दिनों दिन अव्यवस्थाओं का आलम बढ़ता जा रहा है । पात्र और जरूरत मंद लोगों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और सेवाओ का लाभ पहुच नही पा रहा है । इन सेवाओ को जनता तक पहुचाना का जिम्मा लाल फीताशाही धारी अफसरों और कर्मचारियों के जिम्मे छोड़ दिया जाता है । और जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि जो हर चुनाव मैं ख़ुद को जनता के सेवक कहते नही थकते और उनके हर सुख सुबिधाओं का ख़याल करने का वादा करते हैं वे ही इन संस्थाओं की अव्यवस्थाओं से आँख मूंदे रहते हैं ।
क्या कभी ये जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि स्वयम और स्वयम के परिवार के सदस्यों को इन शासकीय संस्थाओं मैं सेवा लेने हेतु भेजते हैं । क्या वे कभी शासकीय चिकित्सालयों अपना इलाज़ करने हेतु जाते हैं ? क्या अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों मैं शिक्षा ग्रहण करने हेतु भेजते हैं ? क्या वे स्वयं शासकीय खाद्यान वितरण संस्थाओं से खाद्यान प्राप्त करते हैं या फिर कभी जनता के लिए उपलब्ध आवागमन के साधन मैं यात्रा करने की कोशिस करते हैं ? क्या और भी अन्य सुबिधायें अपनी पात्रता अनुसार शासकीय संस्थाओं से प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं । बमुश्किल ही इसका जवाव हाँ मैं होगा । और तो और मातहत अधिकारी भी इन बातों बमुश्किल ही का अनुसरण करते होंगे । ये व्ही व्ही आई पी कहलाने वाले लोग जो ख़ुद को तो जनता का सेवक कहते है स्वयम और परिवार को आम जनता से दूर रखकर ख़ुद को श्रेष्ट साबित करने की चेष्टा करते हैं ।
इन सबकी इतर इन शासकीय संस्थाओं से अपने प्रभाव का प्रयोग कर नाजायज लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते अवश्य ही नजर आयेंगे । स्वयं के बच्चों को बड़े और महेंगे निजी संस्थाओं मैं शिक्षा दिलाएंगे । निजी चिकित्षा संस्थाओं से स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करेंगे । अधिक से अधिक सुबिधाओं को वे महेंगे और निजी संस्थाओं से लेने का प्रयत्न करते हैं ।
जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि एवं सरकारी अधिकारी के इस प्रकार उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के कारण ही शासकीय संस्थाओं की सेवाओ का गुणवत्ता का स्तर गिरते जा रहा है और दिनों दिन अव्यवस्था का आलम बढ़ते जा रहा है । उनके द्वारा खानापूर्ति के नाम पर कभी कभार ही इन संस्थाओं का औचक निरिक्षण किया जाता है ।
अतः यदि जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि एवं सरकारी अधिकारी शासकीय संस्थाओं के प्रति इस प्रकार उपेक्षा पूर्ण व्यवहार को त्याग कर उन्हें अपनाने का प्रयास करेंगे तो जरूर ही इन संस्थाओं की सेवाओ की गुणवत्ता और अव्यवस्थाओं के आलम मैं सुधार आएगा और जनता को उनके हितों और हको का बाजिब लाभ मिल सकेगा ।

सोमवार, 3 नवंबर 2008

कहाँ गए महिला हितों के हिमायती संगठन .

देश मैं जब भी कोई महिला पर अत्याचार या प्रताड़ना की घटना सामने आती है तो देश के कई महिला हितों की हिमायती संघटन उनके समर्थन सामने आते हैं । और जगह जगह विभिन्न प्रकार से महिलाओं की हितों की रक्षा के सन्दर्भ मैं सड़कों पर जुलुश और धरनों के माध्यम और अन्य प्रदर्शनों के माध्यम से सरकार , प्रशासन और देश के लोगों के सामने अपनी बात रखते हैं । किंतु माले गाँव धमाके के सिलसिले मैं महाराष्ट्र की कांग्रेसी सरकार की पुलिस एटीएस द्वारा कथित प्रग्या ठाकुर के मामले अभी तक कोई महिला हितों के तथाकथित हिमायती संघठन सामने नही आए हैं । जबकि उसके ख़िलाफ़ अभी तक कोई ठोस सबूत पुलिस एटीएस को नही मिले हैं । और तो और जो नार्को टैस्ट और ब्रेन मैपिंग कराया गया उसमे भी बम धमाके मैं शामिल होने के कोई ठोस प्रमाण नही मिले हैं । आख़िर क्यों आज एक महिला को देश मैं इस तरह आरोपित होकर प्रताडित और अपमानित होना पड़ रहा है ।
संभवतः इसलिए की उसका सम्बन्ध किसी अल्प संख्यक अथवा नॉन हिंदू वर्ग से नही है । शायद इसलिए की वह एक बहुसंक्यक समुदाय से हैं । प्रायः देखने मैं यह आ रहा है वोट बैंक के लालच मैं राजनीति दल और राजनेता एवं थोथी प्रसद्धि और टी आर पि बढ़ाने की होड़ एवं छदम धर्मं निरपेक्षता की आड़ मैं बहुसंख्यक समुदाय को ही कटघरे मैं खड़ा करने की कोशिश की जाती है । दूसरे समुदाय के दुःख दर्द और किसी दुर्घटना पर तो देश मैं हाय तौबा मचने लगती है किंतु जब बहुसंक्यक समुदाय की बात आती है तो उससे आँख मूंदने और उससे नजरें चुराने की कोशिश की जाती है ।
और ऐसा ही अब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के मामले मैं हो रहा है । जब नार्को टैस्ट और ब्रेन मैपिंग मैं महाराष्ट्र एटीएस को कोई प्रमाण नही मिले तो मीडिया उस पर सम्मोहन विद्या की आड़ के बहाने उसे दोषी साबित करने मैं तुले हुए हैं । मीडिया और देश के तथाकथित अति आधुनिक लोग जो भारतीय पुरातन ज्ञान , योग विज्ञानं और सम्मोहन विद्या जैसे बातों को आधुनिक विज्ञानं के सामने बकबास कहा जाता था आज उसी का सहारा लेकर अपने को सच और अपनी ज्यादती को सही ठहराने की कोशिश की जा रही है । आज वही भारतीय ज्ञान और विज्ञानं की शरण मैं आकर अपनी हर बात को जायज ठहराने की कोशिश हो रही है । एक महिला साध्वी के साथ इतना सब होने के बाद भी आज देश के महिला हितों के हिमायती एक भी संघठन सामने नही आ रहा है । जो की आश्चर्य और बड़े खेद की बात है । आख़िर कहाँ गए महिला हितों के हिमायती संगठन ?

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008

ब्यूटीफुल और हेंडसम की चाहत !

आज की युवा पीढी मैं जन्हा युवक अपने जीवन साथी के रूप मैं एक सुंदर और ब्यूटीफुल लड़की की कल्पना करता है तो वन्ही युवती एक हेंडसम और सुंदर कद काठी वाले लड़के की चाहत रखती है । अतः एक सुंदर घर और सुखद जीवन के लिए हर व्यक्ति एक सुंदर जीवन साथी की चाहत रखता है । वैसे यह सोच वर्षों पुरानी है और जैसे की मानव मन की स्वाभाविक वृत्ति है की वह हमेशा नेत्रों के माध्यम से मन को सुंदर और मनोरम लगने वाली नश्वर और अनश्वर वस्तुओं की और आकर्षित होता रहा है । मानव मन की इसी प्रवृत्ति के कारण ही बाहरी आकर्षण के अतिरिक्त अन्य आंतरिक और छिपे हुए गुणों क्रम बाद मैं ही आता है । अतः इसी स्वभाव के चलते यदि किसी लड़का अथवा लड़की को पहली नजर मैं कोई भा जाता है तो इससे ही संभवतः सुखद अहसास की कोपल मन मैं प्रस्फुटित होने लगती है । इस पहली नजर को सिर्फ़ बाहरी व्यक्तित्व का ही आकर्षण प्रभावित कर पाता है अन्य आंतरिक गुणों का आकर्षण तो बाद की बात रहती है और किसी व्यक्ति के आंतरिक गुणों की और तभी आकर्षित होते हैं जब इसी पहली नजर की पहचान के कारण ही धीरे धीरे दूरियां नजदीकियां मैं बदलती है ।
जैसा की आज के दौर मैं सुन्दरता के मायने सिर्फ़ बाहरी और बाहरी आकर्षण मैं ढूंडा जाता है और इसी बाह्य आकर्षण के कारण ही हेंडसम लड़का ब्यूटीफुल लड़की अथवा ब्यूटीफुल लड़की हेंडसम लड़के की और आकर्षित हो रहें है । जन्हा प्यार की अन्तिम परिणिति दो दिलों के मेल से चलकर दो शरीर के मिलन पर होती है । यह संभवतः इसी अवधारणा के चलते आज लाइव इन रिलेशन शिप की बात की जा रही है । इन सबके इतर इसमे कुछ ही अपवाद होंगे जिसमे ब्यूटीफुल और हेंडसम की अवधारणा को नजर अंदाज कर आंतरिक सुन्दरता को ध्यान मैं रखकर अपने जीवनसाथी की कल्पना की होगी ।
वैसे भी आज की फिल्म और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी इसी अवधारणा पर काम कर रही है । और बमुश्किल ही शारीरिक सुन्दरता के अतिरिक्त अन्य बातों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है फिल्मो और टीवी धारावाहिक मैं पहली प्राथमिकता तो ब्यूटीफुल चेहरे वाली नायिका और हेंडसम चेहरे वाले नायक ही होते हैं और उसके बाद ही उनपर अन्य अच्छे गुणों का मुलम्मा चढाया जाता है ।। इससे भी एक कदम आगे बढ़कर अंग प्रदर्शन को सुन्दरता के नाम पर बढ़ावा दिया जा रहा है । संभवतः ये ही माध्यम है जो आज की पीढी को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहें है।
फिर भी मानव मन की स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुरूप मानव नेत्रों को भाने वाले सुंदर और मनोहारी अर्थात ब्यूटीफुल और हेंडसम लगने वाली चीजों की और मानव तो आकर्षित होगा ही । किंतु इसके साथ ही अन्य आंतरिक ब्यूटीफुल और हेंडसम गुणों के साथ मन की सुदरता को भी तरजीह दी जानी चाहिए ।

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008

उत्तर भारतियों बंधुओं को अपने क्षेत्र से क्यों पलायन हेतु मजबूर होना पड़ता है .

महाराष्ट्र प्रदेश मैं महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा रेलवे की परीक्षा देने आए उत्तरभारतीयों को ढूँढ कर उनकी पिटाई की गई और उन्हें महाराष्ट्र मैं परीक्षा देने से रोका गया और यह कहकर विरोध किया गया की उत्तर भारतियों स्थानियों लोगों के रोजगार और संसाधन का अतिक्रमण कह रहें है । उत्तर भारतियों के विरोध की यह लहर महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी के प्रमुख राज ठाकरे और उनके कार्यकर्ताओं की और से पहले भी उठ चुकी है और अब यह विकराल रूप लेती नजर आ रही है । इस तरह का विरोध देश के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी कौने मैं जाकर रहने और जीवन बसर करने के अधिकार के विरुद्ध है और इस तरह का कार्य किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा अपना आधार मजबूत करने और वोट बैंक की राजनीति के तहत किया जा रहा है जो की बिल्कुल ग़लत है ।
फ़िर भी इस बात पर विचार तो किया जाना चाहिए की क्यों उत्तर भारतीय बंधू अपनी जन्मभूमि , माटी , अपने परिवार और अपने लोगोने को छोड़कर अपने प्रदेश से पलायन करने हेतु मजबूर होना पड़ता है । क्यों उन्हें अन्य प्रदेशों मैं रोजगार की तलाश हेतु भटकना पड़ता है और अपमानित होना पड़ता है । देश के हर मुद्दे की तरह इस मुद्दे को भी राजनीतिक रंग दिया जा रहा है बजाय इस समस्या के मूल मैं जाने के । उत्तर भारतियों के प्रदेश के जननेता जो स्वयम को प्रदेश और प्रदेश की जनता का रहनुमा और जन हितेषी कहते हैं वे इस समस्या को राजनीति रंग देकर और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर जनता को दिग्भ्रमित और उलझाने का कार्य करते हैं । यदि यही जन नेता अपने प्रदेश की विकास और जनहित पर विशेष ध्यान देते और प्रदेश मैं उपलब्ध संसाधन के आधार पर विकास का मूलभूत ढांचा तैयार करते तो ऐसा कोई कारण नही बनता की उत्तर भारतीय बंधुओं को रोजगार की तलाश मैं इधर उधर भटकना पड़ता ।
वैसे इस प्रकार विरोध का स्वर आज नही तो कल उठाना स्वाभाविक था , जो की एक राजनीतिक पार्टी ने जल्द ही लपककर अपना आधार बढ़ाने और ख़ुद को महाराष्ट्रीय मानुष का हितेषी साबित करके वोट बैंक की राजनीति कर रही है । कोई घर का सदस्य यह कैसे बर्दाश्त करेगा की कोई बहार का व्यक्ति उसके संसाधन और सुबिधाओं का उपभोग करे और उसे उसके मूलभूत आवश्यकताओं के अधिकार से वंचित होने के स्थिती मैं खड़ा होना पड़े ।
अतः जरूरी है की प्रदेशों और देश के नीति निर्माताओं और प्रशासन को चाहिए की ऐसी नीतियां और विकास का ऐसा खाका तैयार किया जाए की देश के हर व्यक्ति को उसके स्थानीय स्तर पर रोजगार के साथ साथ जीवन की सभी आवश्यक मूलभूत सुबिधायें उपलब्ध हो , जिससे लोगों को अपनी माटी छोड़कर अन्य प्रदेशों मैं भटकना न पड़े । साथ ही इस बात का ध्यान दिया जाना चाहिए की देश मैं क्षेत्रीय आधार पर वैमनस्यता ना फैले और देश सभी नागरिक का देश के किसी भी कौने मैं जाकर रहने और जीवन बसर करने का अधिकार भी सुरक्षित रहें ।

बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

देश के कदम चंद्रमा पर - कुछ खुशी कुछ गम !

आज स्वदेश निर्मित मानवरहित चंद्रयान -१ को पी एस एल वी - सी ११ से ६:२० मिनट पर पर चाँद पर कदम रखने हेतु छोड़ा गया । देश की अरबों रुपयों के लागत से तैयार यह एक महत्व्कांची परियोजना है निः संदेह यह कदम देश और देश वासियों के लिए वडा ही गौरान्वित करने वाला क्षण था ।
एक तरफ़ तो देश की यह उपलब्धि विज्ञानं के क्षेत्र मैं लगातार बढ़ते हुए कदम हुए कदम की और इंगित करते है । और इस उच्च तकनीक को भारत के अपने बलबूते पर प्राप्त करने और देश को अमेरिका , जापान , रूस और चीन के पंक्ति मैं ला खड़े करने मैं नि संदेह देश के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं जिनकी कुशाग्र बुद्धि और कड़ी म्हणत से के योगदान से देश को आज यह गौरव प्राप्त हो रहा है । कल तक जो माँओं की लोरियों मैं मामा के रूप मैं और दादी और नानी की कहानियो मैं देवता के रूप विराजमान थे और जिस पर पहुच पाना अकल्पनीय सपना प्रतीत होता था । किंतु भारत ने आज उसे कल्पनाओं और सपनो की दुनिया से निकालकर सच और यथार्त मैं उसको स्पर्श करने उस पर पहुचने हेतु अपने साहसिक और महत्व्कांची कदम आगे बढाया है । इतने खर्चीले मिशन का उद्देश्य बताया जा रहा है की इससे प्राप्त होने वाली सूचनाएं का विश्लेषण कर इसका उपयोग मानवहित मैं करने की योजना है । कहा जा रहा है की चाँद मैं हीलियम ३ का अपार भण्डार है जिसका प्रयोग देश की उर्जा जरूरत मैं किया जा सकता है । इसी प्रकार चाँद मैं बहुत सारे क्रटर जिसमे भारी मात्रा मैं निकिल और प्लेटिनम जैसी धातुएं पाई जाती है जिसको भी भविष्य मैं प्रथ्वी परिवहन कर लाया जा सकता है । अतः इससे आने वाले भविष्य मैं ग्रहों पर पहुचने के इस प्रकार के मिशन से मानवहित के काम किए जा सकेंगे ।
दूसरी और देश जन्हा अरबों रुपयों खर्च करके चाँद पर कदम रखने जा रहा है वन्ही इस देश मैं आज भी एक गरीब इंसान के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाना दूर की कौडी साबित हो रहा है । देश मैं सभी को शिक्षा , स्वस्थ्य और सुरक्षा उपलब्ध कराने की स्थिती दिनों दिन बिगड़ती जा रही है । अभी भी देश के कई हिस्से और कई लोग ऐसे हैं जिन्हें अभी भी बिजली की सुबिधा , स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध नही है और ठीक से पहुच मार्ग भी नही है ।
ऐसे मैं देश का चंद्रमा की और कदम बढाना जन्हा एक और गौरान्वित होने और सुखद अहसास से मन को भर देता है वन्ही देश की यथार्त स्थिति और जमीनी हकीकत को देखकर मन मायुश और दुखित भी होता है । फ़िर भी आशा की जानी चाहिए की देश हर क्षेत्र मैं ऐसे ही नया नए कीर्तिमान स्थापित करे साथ ही देश सभी लोगों को भी मूलभूत आवश्यकताओं के साथ सभी के सुखद जीवन की व्यवस्था भी हो सके ।

सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

क्या चुने हुए जनप्रतिनिधि / सरकार सभी जनता / देश का प्रतिनिधित्व करती है !

भारत के सत्ता शासन मैं जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार बैठती है , जो की जनता की भावना और अकान्छाओं के अनुरूप कार्य करती है । इस सरकार मैं देश के प्रदेशों के विभिन्न क्षेत्रों से जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है । किंतु यक्ष प्रश्न है की आज की स्थिती मैं यह चुनी सरकार और चुने हुए प्रतिनिधियों को समस्त जनता की भावना और अकान्छाओं का प्रतिनिधित्व माना जा सकता है जन्हा की आज कल के चुनाव मैं देश की सभी जनता द्वारा मतदान मैं भाग नही लिया जा रहा है । आजकल के चुनावों का मत प्रतिशत बमुश्किल से ५० से ६० प्रतिशत होता है । ऐसी स्थिती मैं यह माना जा सकता है लगभग आधे जनता द्वारा अपना मत जनप्रतिनिधियों के प्रति नही दिया गया है । यदि चुनाव मैं कुल मत ५० से ६० फीसदी पड़ते है और यह माना जा सकता है की जीते हुए उम्मीदवार को इससे आधे मत यानि की २५ से ३० प्रतिशत प्राप्त होते होंगे एवं लगभग आधे से कम अर्थात २५ फीसदी से भी कम मत उसके बाद वाले उम्मीदवार को मिलते होंगे , और लगभग १० प्रतिशत से अधिक मत अन्य बाद वाले उम्मीदवार को मिलते होंगे । अर्थात यह कहा जा सकता है की विजयी अर्थात चुने हुए उम्मीदवार को मातृ २५ से ३० प्रतिशत मत प्राप्त होंगे । तो ऐसे मैं कैसे कहा जा सकता है की चुना हुआ उम्मीदवार उसके क्षेत्र की समस्त जनता की भावना और आकान्छाओं का प्रतिनिधिव करते हैं । इसी प्रकार यह भी कैसे कहा जा सकता है उसकी अभिव्यक्ति और प्रतिनिधित्व समस्त देश देश का है या वह देश की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है । यदि सरकार के बात करें तो उसमे तो देश के अलग अलग प्रान्तों , प्रदेशों और क्षेत्रों से जन प्रतिनिधि चुनकर आते हैं और वे अपने क्षेत्र के समस्यायों और लोगों की भावना के अनुरूप वादा निभाने की भावना से आते है और देश के अन्य क्षेत्रों की समस्यायों और भावना को समझ और जान पाना उनके लिए पूरी तरह सम्भव नही हो पाता होगा ।
अतः चुने जन प्रतिनिधियों को उसके समस्त क्षेत्र की जनता का पूरा मत नही मिलता है और सरकार को जब देश की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व नही मिलता है तो यह कहा जा सकता है की आधे से अधिक जनता के द्वारा नकारे गए ये जनता के प्रतिनिधि और सरकार समस्त जनता के जनभावना के अनुरूप काम करने मैं पूरी तरह सफल नही हो पाते है , और जो नीतियां और योजनायें बनती है वे भी सभी जनता की भावना , जन आकान्छाओं और आवश्यकताओं और समस्यायों के अनुरूप नही बन पाती होगी , जिससे सरकार की नीतियां अधिकतर मामले मैं पूर्णतः सफलता के चरम पर नही पहुच पाती है । अतः यह कहा जा सकता है की आधा अधूरा जनमत से सही जनप्रतिनिधि चुनकर नही आ पाते हैं और वे क्षेत्र और देश की समस्त जनता की जन भावनाओं की अनुरूप कार्य नही कर पाते है और इस आधार पर उनकी किसी अभिव्यक्ति को समस्त जनता की अभिव्यक्ति नही माना जा सकता है । ऐसी स्थिती प्रजातंत्र की सफलता पर भी प्रश्चिन्ह लगाती है जनता की तरफ़ से नो वोट के विकल्प की मांग उठाना और भी गंभीर स्थिती को प्रर्दशित करती है जो की अत्यन्त विचारणीय है ।।

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008

वादा और वचन की तबियत बिगाड़ रखी है राजनेताओं ने .

जी हाँ वादा , वचन या आश्वाशन और इंग्लिश मैं कन्हे तो प्रोमिस । अब जीवन मैं इन शब्दों का उपयोग बेमानी सा लगने लगा है । अब लोग किए गया वादा , वचन और आश्वाशन पर विशवास नही कर रहे है । क्योंकि इन राजनेताओं ने इन शब्दों के साथ खेलकर और अपने राजनैतिक हितार्थ इनका मन माफिक प्रयोग कर इनकी तबियत ख़राब कर रखी है । वैसे ही जैसे भगवान् राम के नाम को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना , रंगों एवं प्रतीकों को किसी अन्य पार्टी से जोड़कर देखना वैसे ही अब इन शब्दों को राजनेताओं की भाषा से जोड़कर देखा जाना लगा है । अब वो दिने गए जब वादा और वचन का बड़ा महत्व होता था । दिया गया वादा और कही गई बात पत्थर की लकीर होती थी । भगवान् राम के युग मैं तो प्राण जाए पर वचन ना जाए के धर्मं का पालन किया जाता था । प्रेमी भी वादा और आश्वाषणों जैसे शब्दों का प्रयोग करने से कतराने लगे है । अब वे प्रेमी अथवा प्रेमिका द्वारा किए गए वादों विशवास करने मैं संकोच करने लगे हैं । अब कसमों और वादों पर बने हुए गाने भी बेमानी लगने लगे है , जैसे वादा रहा सनम होंगे न जुदा सनम , जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा , वादा करले साजना तेरे बिन मैं न रहू मेरे बिन तू न रहे इत्यादि इत्यादि ॥ वही कुछ दूरदर्शी गीतकार ने यह भांप लिए था की वादा और वचन शब्द का क्या हश्र होना है तो उन्होंने ने कुछ ऐसे गीत लिख डाले जैसे कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या , क्या हुआ तेरा वादा , मिलने की कोशिश करना वादा कभी न करना वादा तो टूट जाता है आदि आदि । इसी कारण आजकल की फिल्मों मैं तो प्रेमी और प्रेमिका के वादा और अश्वाशानो वाले द्रश्य भी कम ही देखने को मिलते हैं । इसी का ही प्रभाव है की आजकल की युवा पीढी बंधन और जीवन भर साथ निभाने वाली शादी और विवाह जैसे संस्था से परहेज करने लगे हैं और लाइव इन रिलेशन शिप को अपनाने को महत्त्व दे रहें है ।

इन शब्दों से विश्वास इतना उठ गया है की अब हर कही गई बात का लिखित प्रमाण मांगने लगे हैं । क्योंकि इन राजनेताओं के रोज बदलते बयानों और वादों ने इतनी छबि ख़राब कर रखी है । इनके चुनाव के समय किए वादों और आशावाशानो को पूरा होने की रास्ता देखते देखते लोगों की नजरें सूख जाती है और अगले पाँच साल बाद फिर नया वादों और अश्वशानो के साथ खड़े हो जाते है और उनसे यह भी नही पूछ पाते है की क्या हुआ तेरा वादा । जो ज्यादा पूछता है तो उसे कोई उपहार और सुख सुबिधायें दे दी जाती है ।

तो देश मैं अब चुनाव का समय आ गया है । और नए वादों और वचनों के साथ फिर हाज़िर है हमारे देश के कर्णधार और राजनेता । अब देखें जनता किसके वादों पर कितना विश्वाश करती है और अपना अमूल्य मत देती है ।

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008

आर्थिक मंदी - दोषी सरकार या जनता !

वैसे तो काफ़ी दिनों से देश मैं आर्थिक मंदी का दौर चला आ रहा है जिसे की विश्व की अर्थव्यवस्था मैं हो रही मंदी का कारण बताया जाता रहा है । जिसके चलते आम उपभोक्ता और जनता मंहगाई की मार और परेशानी झेल रही है । किंतु अब यह विकराल रूप धारण करने लगी है । और इसका देश की अर्थव्यवस्था और देश के लोगों पर सीधे ही प्रहार करने लगी है । देश पहले से तो बढती हुई मंहगाई की मार झेल रहा था किंतु अब मंदी के चलते लोगों की रोजगार भी छिनने लगे है । जेट एयर वायस द्वारा एक ही दिन मैं १८०० से अधिक कमर्चारियों को कार्यमुक्त करना इसी आर्थिक मंदी का दुखद परिणाम है । आख़िर देश मैं आ रही आर्थिक मंदी और उसके प्रभाव से देश के लोगों मैं होने वाली परेशानी हेतु कौन जिम्मेदार है । क्या सरकार या फिर जनता ?
सबसे पहले सरकार की बात करते हैं की क्यों देश की आर्थिक व्यवस्था विदेशी अर्थव्यवस्था पर इतनी निर्भर हो गई की उसका अधिक से अधिक प्रभाव देश मैं पड़ने लगा । क्या देश की रीति नीति मैं खामियां थी की देश आत्म निर्भर न होकर देश की विदेशी अर्थव्यवस्था पर निर्भरता बढ़ने लगी । देश की अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक प्रभाव उर्जा और इधन हेतु आवश्यक तेल की बढती हुई कीमत का भी पड़ा है , तो क्यों अब तक देश की निर्भरता इधन के मामले मैं विदेशों पर बनी रही , क्यों नही उचित नीति बनाकर एवं स्वदेशी एवं प्राकृतिक संसाधन का उपयोग कर इधन पर विदेशी निर्भरता कम की गई । यंहा तक की कृषि प्रधान देश होने के बाद भी क्या आज देश कृषि के मामले मैं भी पूरी तरह आत्म निर्भर बन पाया है । इस क्षेत्र की उपेक्षा का आलम यह है की कृषक परिवार भी अब कृषि कार्य से मुंह मोड़ने लगने है । देश की शिक्षा व्यवस्था भी देश को और देश की युवाओं को आत्म निर्भर न बनाकर दूसरों के अधीन नौकरी करने हेतु मजबूर होना पड़ रहा है । पूँजी निवेश के बहाने अर्थ व्यवस्था को विदेशी और बहु राष्ट्रीय कम्पनी के हाथ मैं सौपा जा रहा है बजाय स्वदेश कम्पनी और उद्योग को बढ़ावा देने के । सरकार भी वोट बैंक के चक्कर मैं तात्कालिक लाभ वाली ऐसी नीतियां तैयार करती है जिसके दूर गामी परिणाम अच्छे नही मिलते हैं ।
वही लोगों की बात करें तो स्वदेशी उत्पादों को छोड़कर बहु राष्ट्रीय कम्पनी और विदेशी सामानों के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है । अब लोगों की जीवन शैली मैं परिवर्तन आने लगा है , अब लोग ब्रांडेड कंपनी और रेस्तरां कल्चर को बढ़ावा देने लगे हैं , हर छोटी बात के लिए बाजारों के उत्पादों पर निर्भरता बढ़ाने लगे है । यंहा तक की कर्ज लेकर सुख सुबिधाओं की वस्तुएं खरीदी जाने लगी है । वाहनों का भी बेतहासा इस्तेमाल किया जाने लगा है जिससे इधन की खपत बढ़ने लगी है जिसमे की देश की बहुमूल्य पूँजी खर्च होती है । साथ ही जनता ऐसी सरकार और जनप्रतिनिधि को चुनकर देश और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने हेतु भेजती है जो देश हित और जनहित की दूरदर्शी और सार्थक सोच नही रखते हैं ।
इस बढती हुई मंहगाई और देश की आर्थिक मंदी के लिए सरकार तो ज्यादा जिम्मेदार है ही साथ ही इसके लिए जनता भी जिम्मेदार है । अतः जरूरी है की सरकार को ऐसी दूर गामी और सार्थक नीति बनानी चाहिए जो देश को आत्म निर्भर बनाने के साथ देश के लिए मील का पत्थर साबित हो । इसी प्रकार जनता को भी स्वदेशी चीजे अपनाकर हर छोटी बात के लिए बहु राष्ट्रीय कम्पनी और विदेशी सामानों पर निर्भरता कम करनी चाहिए । साथ ही सरकार बनाने हेतु देश हित और जनहित की समुचित सोच वाले जनप्रतिनिधियों को चुनकर भेजना चाहिए । ऐसा विश्वाश किया जाना चाहिए की देश मैं आर्थिक मंदी का चल रहा ख़राब दौर जल्द ही ख़त्म होगा ।

बुधवार, 15 अक्टूबर 2008

क्या संसकारों और मर्यादाओं को लांघना ही आधुनिकता का परिचायक है .

आज के समय आधुनिकता की बहुत बात हो रही है । देश मैं विद्दमान सदियों से चले आ रहे संस्कार अब बेमानी साबित किए जा रहे हैं । मर्यादाओं को अब दकियानूसी , रूढिवाद और संकीर्णता वादी सोच की संज्ञा देकर उससे बंधन मुक्त होने की छट पटा हट है । लोग अपने आप को अति आधुनिकता की चासनी मैं लपटे हुए दिखना चाहते है और ऐसे कार्यों और बातों का अनुसरण करने और अपनाने का ढोंग कर रहे हैं जो भले ही हमारे संस्कारों और आदर्शों से मेल नही खाते हो ।
भौतिकवादी आसान और बंधन रहित जीवन जीने की लालसा मैं अति आधुनिकता के आड़ मैं पाश्चात्य और विदेशी संस्कृति का समर्थन कर रहे हैं । आज की पीढी बंधन मुक्त स्वछन्द और उन्मुक्त जीवन जीना चाह रही है। अपने जीवन की खुशियों मैं वे किसी बात की दखलंदाजी और बंधन नही चाहते हैं । भले ही उनके इस तरह इस जीने से उनके पारिवारिक सदस्यों , वरिष्ठ और बुजर्गों को असुबिधा हो । अपनी स्वछन्द और उन्मुक्त जीवन की चाह मैं अब लोग अपने माता पिता और बड़े बुजुर्गों के साए मैं रहने से कतराने लगे है । परिणाम स्वरुप आज जीवन के संध्या काल मैं बुजुर्ग माता पिता वृद्ध आश्रम मैं रहने को मजबूर है । बिना शादी किए हुए युवा पुरुष और महिला एक साथ रहने के लिए लाइव इन रिलेशन शिप समर्थन करने लगे हैं । इसके पीछे यह तर्क की बिना जान पहचान और बिना विचारों के मेल मिलाप के शादी जैसे बंधन बंधकर लंबे समय तक एक साथ रहना नीरस जिन्दगी जीने के समान है । किंतु इसके पीछे तो सामाजिक मर्यादों और बन्धनों से मुक्त होने की छट पटा हट नजर आती है । जन्हा इस दौड़ती भागती जिन्दगी मैं जन्हा पैसा कमाने और अपनी महत्व्कान्छा पूरी करने मैं जीवन का अधिकतम समय निकाल दिया जाता है । क्या एक दूसरों को समझने का पर्याप्त अवसर मिल पाता होगा ।
क्या यही आधुनिकता वादी सोच है जिसमे वस्त्रों का उपयोग तन छुपाने मैं कम और दिखाने मैं ज्यादा तबज्जों दी जाती है । जिसमे लिव इन रिलेशन के नाम पर दो चार साल तक अपनी सहूलियत के हिसाब से साथ रहना और मन ऊब जाने पर अलग हो जाते हैं । बुजुर्गों को उनके जीवन के संध्याकाळ मैं अपनेपन से वंचित कर एकांत और नीरस जिन्दगी जीने हेतु छोड़ दिया जाए । एक बच्चे को ममता की छाव और मातृत्व प्यार से वंचित कर दिया जाता हो । बड़े बुजुर्गों के सारे जीवन के अनुभवों से उपजे सलाह और आदर्शों को नजरअंदाज किया जाए । इस प्रतिस्पर्धी युग मैं सिर्फ़ अपने को पद प्रतिष्ठित करने हेतु अच्छा या बुरा कोई भी रास्ता अख्तियार किया जाए । परिवार जैसे संस्था पर ही प्रश्नचिंह खड़ा किया जाए ।
एक बात जरूर है आज के परिप्रेक्ष्य मैं कुछ बातें साम्य नही बैठा पाती हो किंतु इससे उन बातों को ग़लत तो नही कहा जा सकता है । जरूरत है उनमे आज की परिस्थितियों के मुताबिक सुधार कर अपनाने की । ये संस्कार और बंधन ही है जिसने इस समाज को बाँध रखा है , पारिवारिक मूल्यों और नैतिक मूल्यों को जीवित रखा है । वरना विदेशी और पाश्चात्य संस्कृति की आंधी मैं यह समाज कब का बिखर गया होता । दूर ढोल सुहाने लगते है और अपनी कमीज के अपेक्षा दूसरों की कमीज ज्यादा सफ़ेद लगती है । किंतु ठीक तरह से देखा जाए अपने ही ढोल की आवाज ज्यादा सुरीली सुनाई देगी और और अपनी ही कमीज ज्यादा उजली नजर आएगी । अतः आधुनिकता इसी मैं है की संस्कारों और मर्यादाओं के दायरे मैं रहकर अपनी जड़ो को मजबूत करें , ना की विदेशी और मर्यादा विहीन जीवन शैली अपनाकर और अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों से पलायन कर उन्हें खोखला करें ।

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008

चुनाव के दो दृश्य - सकारात्मक और नकारात्मक !

देश के पाँच राज्यों मैं चुनाव की तारीख , निर्वाचन आयोग ने घोषित कर दी है । जिससे इन पाँच राज्यों मैं अब उत्सव का माहोल बनेगा तो वही दूसरी और किसी भी पल अशांति और तनाव का वातावरण भी बन सकता है । आपसी मेल मिलाप बढेगा , कई दिन से बिछुडे साथी , दोस्त , रिश्तेदार और बड़े बुजर्गों के रूप मैं चुनावी कार्यकर्ता और नेतागण मिलेंगे , जो पिछले पाँच सालों से न जाने कान्हा गम हो गए थे । अब जनता को वो समान और इज्जत मिलेगी जो उसने कभी सोची नही होगी , अचानक वो जनता से जनार्दन बन जायेगी । पता नही कैसे कैसे रिश्तेदारी और सम्बन्ध निकालकर नए नए लोग और नेतागण कही पैर छूकर आशीर्वाद लेंगे तो कही छोटों को शुभाशीर्वाद देंगे । कोई उपहार स्वरुप साड़ी भेंट करेगा तो कोई कम्बल , कोई रूपये पैसे देगा तो कोई अन्य उपहार । युवा लोगों और मौज मस्ती करने वालों लोगों के लिए बाकायदा इंतजाम किए जायेंगे । सारा माहोल उत्सव सा हो जायेगा , ऐसे लगेगा की मानो आज शहर भाईचारे की भावना से ओतप्रोत हो अमन, शान्ति और खुशियों का स्वर्ग बन गया है । सारा शहर रंग बिरंगे बेनरों और झंडो एवं घर की दीवारें रंगों से सज जायेगी ।
वही घर के कई बेकार बैठे नौजावानो और लोगों को नया काम मिलेगा । किसी को चुनाव प्रचार का तो किसी को पोस्टर , पुम्फ्लेट और नारे लेखन का काम । बहुत से लोगों को तो मुफ्त मैं गाड़ी से गाँव गाँव और शहर के चप्पे के सेर करने को मिलेगी , उनके लिए चाय नाश्ते का इंतजाम भी रहेगा और हो सके तो प्रतिदिन का मेहनताना भी मिल जायेगा । ऐसे समय मैं कई छुट भइया नेताओ की भी पूछ परख बढ़ जायेगी , और कई दिन से खाली बैठे को काम मिल जायेगा । ये तो था चुनाव का सुखद पक्ष ।
यही चुनाव अब लोगों को अपनी विचारधारा के आधार पर अलग अलग बाँट देगा । पास पड़ोस के लोग और यंहा तक की भाई भाई और एक ही घर के सदस्यों मैं पार्टी की विचारधारा पर फूट पड़ जायेगी । अमन चैन से पड़ोस मैं रहने वाले लोग और शान्ति से रहने वाले घर के सदस्यों के बीच मन मुटाव होने लगेगा । कोई अपने घर कोई और झंडा और बेन्नर लगा रखेगा तो कोई किसी और पार्टी का । नौजवान युवक अपने पार्टी के नेता और पार्टी के लिए मरने मारने को तैयार रहेंगे । कोई लोगों को अपनी पार्टी के पक्ष मैं करने मैं लगा रहेगा तो कोई अपनी पार्टी की और खीचने मैं , इसी खीचतान मैं आपसी रंजिश बढाते रहेंगे । हर पल माहोल तनाव और अशांति का बना रहने की आशंका बनी रहेगी ।
चुनावी परिद्रश्य का सकारात्मक और नकारात्मक रुख वाला रूप देश और प्रदेश मैं एक नए परिद्रश्य को उभारने का काम करेगा । इन चुनावों से निकलने वाले परिणाम देश और प्रदेश की नई दिशा और दशा तय करेंगे । फिर भी एक बात आशा की जानी चाहिए की मतदाता किसी प्रलोभन मैं ना आकर अपने स्वविवेक से अपना हित और अहित एवं देश और प्रदेश के अच्छे के बारे मैं सोचते हुए अपना अमूल्य मत डालेगा , जो की देश और प्रदेश और उनके क्षेत्र की उन्नति और प्रगति मैं एक नए युग का सूत्रपात करेगा ।

सोमवार, 13 अक्टूबर 2008

जेंटल मेन गेम के खिलाडी ग्लेमर की चकाचोंध मैं धर्म को भूले !

क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल कहलाता है । किंतु इस सभ्य खेल के सभ्य खिलाडी ग्लेमर की चकाचोंध से अपने आप को नही बचा सके । फिल्मों और टीवी और फैशन के ग्लेमर की चमक के सामने क्रिकेट के ग्लेमर की चमक फीकी पड़ गई , और सभ्य खिलाडी इस ग्लेमर की चमक मैं फंस गए । आज के क्रिकेट खिलाडी ग्लेमर की अंधी दौड़ मैं शामिल होकर ख़ुद को और अधिक धन और शोहरत कमाने की हसरत से ख़ुद को रोक नही पाये , यंहा तक की अपने मूल खेल की जिम्मेदारी को भुलाकर । और इसमे इस खेल की प्रमुख संस्था बी सी सी आई भी अपने आप को दूर रख नही पायी । चाहे वह किसी उत्पाद के प्रमोशन हेतु विज्ञापन की बात हो । चाहे वह फैशन जगत मैं रैंप मैं चलने की बात हो , फिल्मों और टीवी धारावाहिकों मैं काम करने की बात हो या फिर अब कलर टीवी के एक खिलाडी एक हसीना के प्रोग्राम मैं टीवी अदाकारों के साथ नृत्य करने की बात हो ।

खिलाड़ियों द्वारा अपने मूल खेल को छोड़कर इस तरह ग्लेमर जगत की चकाचोंध वाली गतिविधियों मैं शामिल होने पर छुटपुट विवाद बनते और उठते रहे । किंतु कलर टीवी के एक खिलाडी एक हसीना प्रोग्राम मैं हरभजन का रावण का और उनकी सहभागी मोना सिंह का सीता का रूप धरकर विवादित नृत्य कर धार्मिक भावनाओं को आहात करने वाली घटना ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है । इस पर सिख संगठन और हिंदू संगठन ने आपति उठायी है , और ख़बरों के अनुसार उनके ख़िलाफ़ हिंदू देवी देवताओं का मजाक उडाकर धार्मिक भावनाओं को आहात करने पर कोर्ट मैं इसके ख़िलाफ़ केस भी दायर किया गया है ।

पहले भी मनोरंजन , कला प्रदर्शन और अभिव्यक्ति के नाम पर विवादस्पद होकर प्रसद्धि पाने के कुत्सित प्रयासों के चलते धार्मिक देवी देवताओं के सम्बन्ध मैं विवादस्पद बातों को अंजाम दिया गया है । क्या किसी धर्मं के आस्था और श्रद्धा के प्रतीक को निशाना बनाकर और उनका मजाक बनाकर सस्ती शोहरत हासिल किया जाना सही है । क्या ऐसी सस्ती लोकप्रियता की उमर लम्बी हो सकती है ? यदि इस प्रकार के विवादस्पद कार्यों जिसमे धार्मिक भावनाएं आहत हो के कारण यदि कोई देश और प्रदेश मैं अशांति का माहोल पैदा होता है तो क्या विवादों को जन्म देने वाले लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे ? हड़ताल , आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं होती है और उस पर जन और धन की कोई हानि होती है तो क्या ऐसे लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे ? यदि नही तो फिर बार इस तरह विवादास्पदों बातों को अंजाम देने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी करवाई क्यों नही की जाती , क्यों ऐसे लोगों को समाज मैं घूमने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है ?

अतः ऐसे लोग चाहे वे किसी खेल के राष्ट्रीय टीम के खिलाडी हो या फिर देश के व्ही आई पी ही क्यों न हो , के विरुद्ध कड़ी कारर्वाई की जानी चाहिए , ताकि दुबारा लोग इस तरह की विवादस्पद बातों को अंजाम देने से परहेज करें । और देश और प्रदेश मैं शान्ति और भाईचारे के वातावरण को दूषित और नुक्सान न पंहुचा सके । साथ ही खिलाड़ियों को भी अपनी वरिष्ट नागरिक की छबि और जिम्मेदारी को ध्यान मैं रखते हुए ऐसे विवादस्पद बातों को अंजाम देने से बचना चाहिए , क्योंकि इससे उनके लाखों प्रशसंकों और धर्मं से जुड़े करोरों लोगों की देवी देवताओं के प्रति आस्था और विशवास की भावना भी आहत नही होगी और सभ्य खेल की छबि भी बरकरार रहेगी .

बुधवार, 8 अक्टूबर 2008

ब्लॉग मैं धर्मं के प्रति उठे सवाल और संसय को सकारात्मक रूप मैं प्रस्तुत किया जाना चाहिए !

देश मैं चारों और धर्मं और भक्तिमय वातावरण बना हुआ है । नवरात्र और ईद के पवित्र अवसर पर सारा वातावरण आस्था और श्रद्धा के भक्तिमय वातावरण से सराबोर हैं । ऐसे अवसरों पर हिन्दी ब्लॉग जगत मैं भी इसका असर दिख रहा है । इन खुशी और आस्था के अवसर पर शुभकामनाएं और मंगल कामनाये दी जा रही है और इश्वर , परमात्मा , खुदा के इबादत और पूजा अर्चना की बात की जा रही है ।

किंतु वही इसके इतर ब्लॉग जगत मैं धर्मं और इश्वर , परमात्मा मैं खामियां और कमियां ढूंढकर उनपर उँगलियाँ उठायी जा रही है । हो सकता है की धर्मं और परमात्मा , इश्वर एवं धर्मं के पथ प्रदर्शक द्वारा बतायी गई बातें और मानव हित एवं कल्याण मैं उनके द्वारा किए कार्य की कुछ बातें आज के इस बदलते दौर मैं प्रासंगिक नही रही हो । हो सकता है धर्मं ग्रंथों मैं लिखी गई कुछ बातों मैं मत भिन्नता हो ,या फिर कुछ बातों को लेकर संसय और सवाल हो , किंतु कुछ बातों के संसय को लेकर पूरी बात की हकीकत को जाने बगैर , पूरे धर्मं और धर्मं के पथ प्रदर्शकों और उनके द्वारा दी गई सीखों पर उँगलियाँ उठाई नही जाना चाहिए । सदियों से ये धर्मं और उनके आदर्शों को इतनी श्रद्धा और आस्था और विश्वाश के साथ अपनाया जाना , निराधार और बेबुनियाद नही हो सकता है । धर्मं और इश्वर , परमात्मा एवं पथ प्रदर्शक के आदर्श और सीखें ही है जो इंसान को इंसानियत और मानवता की सीख देता है भाई का भाई के प्रति एवं भाई का बहन के प्रति , पुत्र / पुत्रियों का माता पिता के प्रति एवं माता पिता का अपने बच्चों के प्रति कर्तव्यों और जिम्मेदारियों , संबंधों की मर्यादा एवं समाज मैं नैतिक आचरण का निर्धारण कर पारिवारिक मूल्यों को कायम रख जीने की सीख देता है । आज देश को यही चीज जोड़े हुई है । ये बात अलग है की कुछ लोगों द्वारा इसकी आड़ मैं ग़लत आचरण और ग़लत रास्ते अपनाए जा रहे हैं । किंतु इससे पूरे धर्मं और उनके आदर्शों को दोष देना उचित नही है ।

यह देखने मैं आता है की ऐसे धर्मों मैं खामियां निकालकर उस आधार पर धर्मं को ग़लत कहने को कोशिश की जाती है जिनके अनुयायी कठोर रुख नही अख्तियार नही करते हैं । जो हमेशा ऐसी बातों से विचलित हुए बिना विवादों को नजरअंदाज कर अपनी आस्था और विश्वाश मैं अडिग रहते हैं ।

ऐसे अवसरों पर धर्मं और उनके पथ प्रदर्शकों के चरित्र और परमात्मा एवं इश्वर द्वारा बताये गए रास्तों और आदर्शों मैं खामियां निकालकर उसे विवादस्पद बनाकर एवं नकारात्मक रूप मैं अपने ब्लॉग मैं प्रस्तुत करना क्या अपने ब्लॉग को प्रसद्धि दिलाने का प्रयास नही लगता है । यदि धर्मं की किसी बात को लेकर कोई संसय और सवाल है तो उसे सकारात्मक रूप देते हुए उसका समाधान और हल ढूँढने का प्रयास नही किया जाना चाहिए । एक से अधिक धर्मं पुरुषों द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन कर संसय को दूर करने या फिर धर्मं के ज्ञाता और विद्धवान से इस बात का समाधान प्राप्त करने का प्रयास नही किया जा सकता है । बजाय अधूरे ज्ञान और अधूरे अध्ययन के और बिना किसी समुचित प्रमाण के उँगलियाँ उठाने के ।

अतः जरूरी है की ब्लॉग के माध्यम से यदि धर्मं की किसी बातों के बारे मैं संसय है तो उसे सकारात्मक रूप और शालीन तरीके से उठाया जाना चाहिए , बजाय उसे विवादस्पद और नकारात्मक रूप मैं प्रस्तुत करने के । इससे एक तो धर्मं के लोगों की आस्था और विश्वाश को ठेस नही पहुचेगी और हिन्दी ब्लॉग जगत की सादगी भी बनी रहेगी ।

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008

जवानों का मनोबल गिराकर, राजनेता स्वयम की सुरक्षा को दाव पर लगा रहे हैं !

देश मैं जिस तरह से अपने राजनैतिक हितों के मद्देनजर राजनेताओं और शासन मैं बैठे जनता के नुमाइंदे द्वारा देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा मैं लगे जवानों की शहादत की जिस तरह से मखोल उडाकर उपेक्षा की जा रही है । जिससे की देश के जवानों के मनोबल मैं विपरीत प्रभाव पड़ रहा है । जिस प्रकार से बाटला हाउस की मुठभेड़ को फर्जी बताकर और शहीद हुए जवान एम् सी शर्मा की शहादत का वोट बैंक की राजनीति के चलते मखोल उडाया जा रहा है और संसद के हमले को नाकाम करने मैं अपनी जान का बलिदान देने वाले जवानो की शहादत को , कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद भी अपराधी अफजल को फांसी न देकर को , मजाक बना दिया गया है । इससे ये नेता देश और देश के लोगों की सुरक्षा को खतरे मैं तो डाल रहे हैं साथ साथ ही ख़ुद की सुरक्षा को भी खतरे मैं डाल रहे हैं । ऐसे मैं क्यों कर देश देश का जवान अपनी जान को खतरे मैं डालेगा ? जब उसे पता है की उसके बलिदान और कर्तव्य परायणता को विवादास्पद बनाकर जिस प्रकार से राजनैतिक रोटी सेकने हेतु गन्दा खेल खेला जाता है ।
ऐसे मैं सुरक्षा मैं लगे जवान देश और देश के लोगों की सुरक्षा हेतु अपनी जिम्मेदारी निभाने मैं बेशक कोई कोताही नही बरतेंगे , किंतु अब राजनेताओं की सुरक्षा मैं लगे सुरक्षा जवान अपनी जान जोखिम मैं डालकर अपने कार्य को अंजाम देने हेतु दस बार सोचेंगे । क्योंकि राजनेताओ वोट बैंक हेतु किए जा रहे निंदनीय कृत्यों से उनके मनोबल और सम्मान को ठेस पहुच रही है । उनके द्वारा अपने जान पर खेल कर निभायी गई कर्तव्य परायणता को भी शक और संदेह के घेरे मैं खड़ा किया जाने लगा है ।
यदि ऐसे ही जवानों के कार्यों और बलिदान पर उँगलियाँ उठायी जाती रही और उनकी उपेक्षा की जाकर मनोबल गिराया जाता रहा तो वह दिन दूर नही जब राजनेताओं की सुरक्षा भी खतरे मैं पड़ सकती है ।
अतः अब राजनेताओ को ऐसी राजनीति से बाज आना चाहिए और वोट बैंक के निजी स्वार्थों के चलते जवानों की शहादत पर उँगलियाँ उठाना छोड़ना होगा , जिससे की उनकी देश और देश के लोगों की सुरक्षा तो खतरे मैं नही पड़े साथ ही ख़ुद की सुरक्षा भी दाव पर न लगे ।

सोमवार, 6 अक्टूबर 2008

लोग उग्र और हिंसक क्यों होते जा रहें हैं !

अब आए दिन समाचार पत्रों , इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अथवा अन्य माध्यमों से जगह जगह चक्काजाम , आगजनी और हिंसक घटनाओं की ख़बर मिलती है । लोग जब देखो तब कभी छोटी छोटी बात को लेकर हिंसक और उग्र हो जाते हैं । कभी सरकार ख़िलाफ़ , कभी प्रशासन के ख़िलाफ़ , कभी एक समुदाय दूसरे समुदाय के ख़िलाफ़ तो कभी एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी के ख़िलाफ़ उग्र और हिंसक होने लगते हैं । यंहा तक की छोटी छोटी बातों को लेकर भाई भाई के ख़िलाफ़ अथवा घर एक सदस्य दूसरे सदस्यों के ख़िलाफ़ हिंसक और उग्र हो जाता है । देश मैं जन्हा देखो वंहा हर रोज हिंसक और उग्र घटना को अंजाम दिया जा रहा है । चाहे वह दिल्ली , सूरत , बंगलोर और बम्बई मैं बम धमाके घटना हो , चाहे वह उडीसा के कंधमाल मैं हिंसक घटना हो , चाहे वह असम की हिंसक घटना हो , अथवा कश्मीर मैं हो रही हिंसक घटना हो अथवा नक्सल वादी द्वारा अंजाम दी जा रही घटना हो ।
ना जाने लोगों को क्या हो गया है की शान्ति पैगाम देने वाली राम , रहीम , इशु , बुद्ध और महावीर की इस धरती मैं लोग दिनों दिन उग्र और हिंसक होते जा रहे हैं । इतने सारे धर्मों की मिली जुली संस्कृति जिसमे कभी भी दूसरे को दुःख ना पहुचाने और मिलजुलकर शान्ति और सोहाद्र पूर्वक रहने की सीख मिलती हो , वंहा के लोग आज छोटी छोटी सी बातों को लेकर उग्र और हिंसक होकर एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू है । वर्तमान मैं भी हर धर्मं के धर्मगुरु अपने प्रवचन और धर्म उपदेशों के माध्यम से शान्ति और सहयोग की सीख देते रहते हैं ।
क्या अब लोगों ने अपने धर्मं की सीख को अपनाना और पालन करना छोड़ दिया है ? क्या लोगों ने अपने धर्मं के नाम पर भगवान् , परमात्मा एवं महापुरुषों के आदर्शों के पालन करने की बजाय , सिर्फ़ उत्सव मनाने की परम्परा का पालन करना शुरू दिया है ? या फिर आज का इंसान इस भागती दौड़ती भौतिकवादी जिन्दगी मैं एक पैसे कमाने वाली मशीन की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया है जिसमे भावना , दया , करुणा और परस्पर सहयोग का कोई स्थान नही होता है ? क्या इंसान इंसानियत भूलता जा रहा है ? क्या देश अमन , शान्ति और भाईचारे के स्वरुप बरकार रख पायेगा ?
फिर भी कुछ लोगों के निजी और सत्ता स्वार्थों के चलते देश के लोगों के बीच वैमनस्यता फैलाई जा रही है । और अब लोग यह सब समझने भी लगे है । और आशा है की अब यह ज्यादा दिन तक नही चलेगा । लोग आपस मैं न लड़कर अपने उग्रता और हिंसक गतिविधियों को त्यागकर शान्ति और सोहार्द का मार्ग अपनाएंगे ।

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2008

अब हर फिक्र को धुँए मैं कैसे उडायेंगे .

ये सरकार ने भी क्या कर डाला । अब लोग अपनी फिक्र को धुँए मैं कैसे उड़ा पायेंगे । अब तो वो गाना भी बेमानी हो जायेगा की " मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया , हर फिक्र को धुएँ मैं उडाता चला गया " । तो अब जिन्दगी का साथ निभाने के लिए जो चिंता और फिक्र है उसको अब धुँए मैं नही उडाया जा सकेगा । ये सरकार भी जो हैं न , जिसे की जनता के सहूलियत को ख़याल रखना चाहिए , उसी को परेशान करने मैं लगी है । अरे जिस धुएँ के सहारे लोग बड़ी से बड़ी चिंता और फिक्र को दूर करते थे , बड़ी से बड़ी परेशानी का हल ढूँढ निकालते थे , ज्यादा नही तो कम से कम धुएँ के सहारे कुछ समय के लिए ही सही चिंता और फिक्र से राहत पाते थे । अब उनका यही राहत देने वाला साधन ही छीन लिया गया है । सरकार ने तो बड़ी मुश्किल कर दी है । सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर रोक लगाकर । यंहा तक तो ठीक था , बार और मैखाना तक मैं भी धुएँ उडाने पर पाबंदी लगा दी गई है । लगता है अब गाना बदलना पड़ेगा और अब फिक्र को धुएँ उडाने की बजाय , मैखाने मैं शराब और मदिरा मैं बहा कर काम चलाना पड़ेगा ।
धुएँ उडाने वालों की बड़ी परेशानी बन गई है घर वाले भी आजकल घरों मैं धुआं उडाने से मना करते हैं जिसके कारण घर के बाहर धुआं उडाया करते थे , किंतु अब वह भी बंद कर दिया गया है ।

सरकार को आम जनता का धुएँ उडाना ही नजर आ रहा है , दूसरों का धुएँ उडाना नजर नही आ रहा है । वो रेलवे वाले इतना धुआं उडा रहा है उन्हें कोई नही बोल रहा है । बड़ी बड़ी कंपनी वाले धुएँ उड़ा कर पर्यावरण को ख़राब कर रहें है , उन पर पाबंदी लगाने की कोई फिक्र नही है । दिन रात सरकार की मंत्री और अफसर गाड़ी दौड़ा दौड़ा कर धुआं उडा रहे हैं जनता के पैसे को बेफिक्र होकर उड़ा रहें है वो सरकार को नजर नही आ रहा है ।

वैसे चुनाव का समय आ रहा है यदि धुआं उडाने वाले चाहते हैं की उनका यह प्रतिबन्ध सरकार वापस ले ले , तो जल्द से जल्द अपना एक धुआं उडाने वाला संघटन बनाए , और सरकार को संगठन की वोट बैंक की शक्ति को दिखाएँ , जगह जगह धरना , प्रदर्शन और जुलुश निकाले तब सरकार निश्चित रूप से यह पाबंदी हटा सकती है क्योंकि इतने सारे वोट जो उससे दूर चले जायेंगे । तो धुआं उडाने वालों देर किस बात की , शुरू हो जाओ और अपने धुएँ उडाने के अधिकार को मौलिक अधिकार मैं जुड़वाँ लो यही अच्छा समय है । और फिर से अपनी फिक्र को धुएँ मैं उड़ा कर मस्त और खुश रहो ।

यह तो रही धुएँ उडाने वालों की बात , जनता की बात करें तो सरकार लोगों के धुएँ उडाने को रोकना चाह रही है किंतु वह ख़ुद देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार जैसे जनहित मुद्दे को की फिक्र को धुएँ मैं उडाकर मस्त हैं ।
अजी हम तो चाहते हैं की जिस तरह से सरकार जनता का धुआं उडाना बंद कर पीने वालों और नही पीने वालों के स्वास्थय का की फिक्र कर रही है ठीक उसी तरह देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार एवं देश हित और जनहित की अन्य समस्यायों की फिक्र को यूँ ही धुएँ मैं न उडाये , वरन उनको भी इसी तरह रोकने की इक्छा शक्ति दिखाएँ ।

बुधवार, 1 अक्टूबर 2008

जोधपुर की दुखद घटना - कब समझेंगे सब .

जोधपुर मैं मेहरानगढ़ चामुंडा देवी मन्दिर हुई दुखद घटना का क्या सबब हो सकता है . पहले भी इस तरह की दुखद घटना देश के कई हिस्सों मैं हो चुकी है , जन्हा बड़ी संख्या मैं श्रद्धालु हताहत हुए हैं . किंतु धार्मिक क्रियाकलाओं और पूजा के स्थलों मैं जन्हा की श्रद्धालु की भारी भीड़ दर्शनार्थ और पूजा के कार्यों हेतु जमा होती है घटी इस प्रकार की दुखद घटनाओं से ना ताओ सरकार , ना ही प्रशासन और ना ही जनता ने कोई सबक लिया है । लापरवाही और नजरान्दाजी के परिणाम स्वरुप जोधपुर मैं मेहरानगढ़ चामुंडा देवी मन्दिर दुखद हिरदय विदारक घटना घटित हुई . दुखद घटना मैं मारे गए श्रद्धालु और हताहतों के साथ गहरी सवेंदना है ।
इसको हम प्रशासन की समुचित व्यवस्था बनाने की नाकामी कहें , या फिर वी आई पी को तबाज्जों देकर भक्तों के साथ भगवान् के दरबार मैं भेदभाव का परिणाम कहें या फिर दर्शन और पूजा की जल्दी हेतु अधीर और धैर्यहीन श्रद्धालु की नासमझी कहें . कहा जाता है की वी आई पी सांसद को श्रद्धालु की भीड़ के बीच मैं से दर्शनार्थ ले जाया गया था । यह भी कहा जा रहा है की धैर्यहीन श्रद्धालु द्वारा रास्ते मैं ही नारियल फोडे जाने लगे थे जिसके कारण रास्ता फिसलन भरा हो गया था । और यह हो सकता है की प्रशासन द्वारा भक्तों के संख्या को नजरअंदाज कर पर्याप्त व्यवस्था नही की गई होगी , क्यों नही मन्दिर की क्षमता के अनुपात से अधिक श्रद्धालु को मन्दिर के अन्दर जाने से रोका गया ।
क्यों नही मन्दिर प्रशासन और सरकार ऐसी घटनाओं से सबक लेती है ? क्यों हर धार्मिक उत्सवों और धार्मिक अवसरों के शुभ और पवित्र मौके पर धार्मिक स्थानों मैं इस तरह की दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है . वी आई पी के लिए तो पलकें बिछाई जाती है किंतु आम श्रद्धालु को यूँ ही खतरों से खेलने हेतु छोड़ दिया जाता है ।
जन्हा भक्त और श्रद्धालु अपनी व्यस्तम जीवन से कुछ सुकून और शान्ति के पल बिताने हेतु धार्मिक अवसरों पर इन पूजा स्थलों के देवी देवताओं की शरण मैं मंगल कामना के साथ जाता है . किंतु लापरवाहियों और बदिन्ताजामी के चलते दुःख और शोक झेलना पड़ता है . अपने अजीजों और चहेतों को खोने का भारी श्राप ढोना पड़ता है .
अतः इस ईद और नवरात्र के पवित्र मौके पर ऐसी मंगल कामना की जानी चाहिए की धार्मिक उत्सवों और आयोजन के शुभ अवसरों पर ऐसी दुखद और हिरदय विदारक घटना की पुनरावृत्ति नही होगी . हमारी वी आई पी भी भगवान् के दरबार मैं भी अपने को श्रेष्ट साबित करने से बचेंगे । मन्दिर प्रशासन और सरकार भी ऐसे धार्मिक शुभ अवसरों पर समुचित व्यवस्था करेंगी . साथ ही भक्त और श्रद्धालु भी भगवान् के दरबार मैं शान्ति और धैर्य के साथ शुभाशीष प्राप्त करने हेतु पहुचेंगे .
ऐसी मंगल कामना और श्रद्धा के साथ सभी को ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

सोमवार, 29 सितंबर 2008

महिलाओं की सुन्दरता और बाजारवाद का प्रभाव !

कहा जाता है की सुन्दरता देखने वालों की नजर मैं होती है । यह भी कहा जाता है की तन की सुन्दरता की जगह मन विचार और वाणी की सुन्दरता ज्यादा महत्वपूर्ण होती है । किंतु इस बाजारवाद के युग मैं मन की सुन्दरता हाशिये मैं चली गई है और तन की सुन्दरता श्रेष्ठता हासिल कर रही है । इसी बढ़ते बाजारवाद के प्रभाव के कारण विश्व के लोगों को इस साँप बिच्छू और साधुओं के देश के लोगों मैं अचानक सुन्दरता नजर आने लगी है । और यह सुन्दरता पुरुषों मैं कम महिलायें मैं ज्यादा ढूँढी जा रही है ।। इसी बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण देश की महिलायें विश्व मैं सुन्दरता का परचम लहराती नजर आ रही है ।
महिलायों की सुन्दरता के नाम पर मिस इंडिया , मिस एशिया , मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स जैसी न जाने क्या क्या प्रतियोगिताएं आजकल आयोजित की जा रही है । अब तो प्रदेशों के नाम पर , तो कहीं जिलों के नाम पर ये प्रतियोगिताएं होने लगी हैं और लगता है अब तो मिस मौहल्ला प्रतियोगिता भी होने लगेंगी , अर्थात हो सकता है अब गली गली मैं सुदरता की खोज होगी । और अब तो मिस के मिसेस की भी ब्यूटी प्रतियोगिताएं होने लगी है ।
किंतु प्रश्न उठता है की श्रेष्ठ सुन्दरता की खोज सिर्फ़ महिलायों मैं क्यों खोजी जा रही है । क्या इस देश के पुरूष सुंदर नही होते हैं । क्या पुरुषों मैं सुन्दरता नही होती है । उनके लिए क्यों नही इस तरह की प्रतियोगिताएं की भरमार हैं पुरुषों के लिए बमुश्किल एक्का दुक्का ऐसे प्रतियोगिताएं देखने को मिलेंगी । किंतु महिलायों के नाम पर ऐसी प्रतियोगिताएं की भरमार हैं ।
इसी बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव को देखें तो देश मैं इसका और विस्तृत रूप मिल जायेगा । पहले तो बड़ी बड़ी कंपनियां रिसेप्निस्ट और पब्लिक संपर्क वाली जगहों मैं आकर्षक और सुंदर मुखमुद्रा वाली महिलायों को नौकरी मैं रखती थी , अब तो छोटे छोट दुकानों मैं सुंदर महिलायों को रखा जाना एक चलन सा बनने लगा है ।
इसी बाजारवाद का प्रभाव फिल्मों , प्रिंट मीडिया और द्रश्य और श्रव्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कार्यों मैं भी देखने को मिलेगा । न्यूज़ रीडर , एंकर एवं रिपोर्टर जैसे प्रोफेसन मैं भी आजकल सुंदर महिलायों को अधिक से अधिक स्थान दिया जा रहा है । किसी भी कंपनी के विज्ञापनों मैं चाहे उस प्रोडक्ट का सम्बन्ध महिलायों से हो न हो सुंदर महिलायों को जरूर स्थान दिया जा रहा है ।
अब इस बाजारवाद के प्रभाव के चलते वे महिलायें क्या करें जिनके पास बाह्य सुन्दरता नही है । कई बार उन्हें इसके कारण वाँछित परिणाम पाने मैं असफलता हाथ लगती है और निराशा झेलने पड़ती है भले ही उसके पास बाहरी सुन्दरता के अतिरिक्त सभी गुण विद्धमान हैं । इसी बाजारवाद का प्रभाव यह हो रहा है की आज के युवा वर्ग मैं सुंदर जीवनसाथी पाने की चाह तो होती है भले ही वह दिखने मैं अच्छा न हो । युवा वर्ग अब यह भी चाहने लगा है की उनकी माँ और बहने भी सुंदर हो ।
अतः जरूरी है की बाजारवाद के इस बढ़ते प्रभाव जिसमे आंतरिक गुणों की जगह बाह्य सुन्दरता जैसे गुणों को तरजीह दी जा रही है उसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए । और योग्य और गुणवान लोगों को प्रोत्साहित कर एक स्वस्थ्य समाज के विकास की कामना की जानी चाहिए ।

शनिवार, 27 सितंबर 2008

आतंकवाद की आग मैं घी डालने का काम कर रही है देश की राजनीति !

देश दिनोंदिन आतंकवादी घटना के चपेट मैं आता जा रहा है । अब तो देशवासिओं की हर दिन और हर रात भय के साए मैं गुजर रही है की ना जाने कब और कंहा आतंकवादी घटना हो जाए या फिर विष्फोट हो जाए . देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा व्यवस्था चरमरा रही है । देश की खुफिया और सुरक्षा एजेन्सी चिंतित और परेशान हैं की आगे होने वाली आतंकवादी घटना देश की किस स्थान पर होगी और उन्हें किस प्रकार और किस तरह से रोका जाए ।
किंतु देश मैं मची इस आपाधापी के बीच राजनैतिक पार्टी आतंकवाद की आग मैं घी डालने का काम कर रही है । सब अपनी अपनी राजनैतिक रोटी सकने को लगे हैं । विपक्ष सत्ता पक्ष को , तो सत्ता पक्ष विपक्ष को दोषी ठहरा रही है । किंतु इन सब बीच इन लोगों को ना तो जनता की चिंता है और ना ही देश की ।
सत्तापक्ष के कुछ नुमाइंदे पकड़े गए आतंकवादियों की तरफदारी और सरकारी मदद दिलाने की बात कर रहे हैं । सरकारी खर्च मैं उनका कोर्ट केस लड़ने की तैयारी कर रहे हैं । यह पहला ऐसा उदाहरण है की सरकार , सरकार के विरुद्ध लडेगी जो शायद अपने भारत जैसे देश मैं सम्भव है । अब क्या कोई ऐसी संस्था हो सकती है जो अपने विरोधी पक्ष की और स्वयं की पैरवी एक साथ निष्पक्ष ढंग से कर सके । अब इससे देश की सुरक्षा और आतंकवादी घटना को रोकने मैं जी जान से जुड़े जवानों और सुरक्षा कर्मियों के मनोबल पर क्या प्रभाव पड़ेगा । जान जोखिम मैं डालकर जिन्हें पकड़ा आज उनकी ही सरकार उन्हें ही सरक्षण देने मैं लगी है । ऐसे मैं क्या आतंकवाद के इन आरोपियों को उचित सजा मिल पाएगी , यह एक यक्ष प्रश्न देश के सुरक्षा मैं जुड़े जवानों और देश वासियों के सामने मुंह बाएँ खड़ा है ।
अब दूसरी बात यह की क्या किसी व्यक्ति के बुरे कामों को प्रश्रय देकर या अनदेखा कर और इसके लिए उसे दण्डित न कर , आप उसे और बिगडेल बनाने के साजिश कर , आगे और बुरे और ग़लत कार्यों हेतु उसे प्रेरित नही कर रहे हैं । अपने तात्कालिक निजी स्वार्थों के मद्देनजर की गई क्या ऐसी मदद उस दोषी व्यक्ति और समाज के लिए भलाई कही जा सकती है ? यह तो दोषी व्यक्ति और समाज को एक अंधेरे कुंए मैं धकेलने के समान हैं ।
साथ ही यह बात भी ग़लत है की कुछ बहके और नासमझ लोगों के कुत्सित कारनामे के कारण उससे जुड़े सारे समाज को दोष देना भी ठीक नही । जिससे की अन्य लोग भी आक्रोश वश और निराशा वश ग़लत मार्ग मैं जाने को मजबूर हो ।
अतः सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष दोनों की राजनीति देशहित और जनहित को छोड़कर अपने निजी स्वार्थों के मद्देनजर देश मैं बढ़ते हुए आतंकवाद को हवा देने का काम कर रहें हैं जो की बिल्कुल ग़लत है । और इस बात को देश और देश की जनता को समझना होगा ।

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

ना कोई सीमा ना कोई बंधन - बस एक ब्लॉग और खुलकर कहो बात !

हिन्दी ब्लॉग हम हिन्दी भाषी लोगों के लिए एक सशक्त अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है । हम बेधड़क और बेवाक तरीके से अपनी बात इस माध्यम से अभिव्यक्त कर सकते हैं । ना कोई रोकने वाला और ना कोई टोकने वाला , जो मन मैं है , जो मन मैं द्वंद है , जो कसक है उसे शव्दों मैं पिरोकर व्यक्त कर दो । यंहा कोई सेंसर बोर्ड नही है जो आपकी अभिव्यक्ति पर कांट छाँट कर सके । अतः यंहा पूर्ण अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता है । अब वो दिन लद गए जब हमें अभी बात पहुचाने के लिए समाचार पत्रों का माध्यम लेना पड़ता था , और उस पर आपकी बात छपेगी या नही इस बात की कोई गारंटी नही , यदि छाप भी दी गई तो वह भी कांट छाँट के साथ , पता लग जो बात आप कहना चाह रहे हैं उसे छापा ही नही गया । किंतु शुक्र है की ब्लॉग मैं ऐसा नही है । ब्लॉग मैं बात कहने का एक सबसे बड़ा फायदा है की इसमे कोई क्षेत्र ,प्रदेश और देश की सीमा नही है , यह सीमाहीन है , ब्लॉग के माध्यम से अपनी बात रखने का मतलब है अपनी बात को सार्वभोमिक रूप मैं विश्व के कोने कोने मैं बैठे हिन्दी भाषी बुद्धिजीवी बंधुओं तक पहुचाना । अब तो हम भाषा परिवर्तन की सुबिधा को अपने ब्लॉग मैं जोड़कर अपनी बात को विभिन्न भाषा भाषी के लोगों को पढने हेतु दे सकते हैं यानी की अब भाषा का बंधन भी ख़त्म । साथ ही यह एक तरफा माध्यम नही है की अपनी बात रखने के बाद उस पर लोगों की प्रतिक्रिया न जान सके , यह तो द्वि तरफा मार्ग प्रदान करता है की अपनी बात कहने और लोगों की बात सुनने का अवसर भी प्रदान करता है ।
हिन्दी ब्लॉग सृजनात्मक द्रष्टिकोण एवं लेखन प्रतिभा वाले नए प्रतिभाओं को उचित मंच और अवसर प्रदान करने मैं महत्ती भूमिका निभा रहा है । अतः परिणामस्वरूप हम हिन्दी ब्लॉग जगत मैं नित नए हिन्दी ब्लॉगर का पदार्पण होते देखा जा सकता है ।
अतः हिन्दी ब्लॉग निसंदेह हिन्दी भाषा को पुष्पित और पल्लवित होने का अवसर प्रदान कर उसे विश्व स्तर पर सम्रद्ध और सशक्त बनाने मैं मददगार साबित हो रहा है । अब विश्व की कई वेबसाइट और सर्च इंजन भी हिन्दी मैं आ गए हैं । हिन्दी ब्लॉग और सशक्त और प्रभावशाली बनकर विश्व मैं अपना परचम लहरा सके अतः आवश्यक है की हम विचार अभिव्यक्ति के इस माध्यम का समाज , देश और विश्व हित मैं इसे एक सशक्त माध्यम के रूप मैं प्रयोग करें । देश और विश्व मैं शान्ति , भाईचारा , भलाई और विकास के लिए करें । इसे देश और विश्व मैं फैली विभिन्न समस्यायों के निराकरण और समाधान के मंच के रूप मैं तब्दील करने का प्रयास करें ।
तो फ़िर क्यों न हम ब्लॉग के माध्यम से खुलकर अपनी बात रखें और इसे समाज हित मैं मनन और समाधान का माध्यम बनाएं ।

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

उम्मीद करें की जांबाज सिपाही शर्मा जी का बलिदान जाया नही जायेगा !

जिस बहादूरी से दिल्ली की ए टी सी सेल के जांबाज ऍम सी शर्मा जी ने देश के लिए बलिदान दिया है जिसे सारा देश कभी नही भुला पायेगा । आज उनके इस बलिदान का ही परिणाम है की दिल्ली के वासी चैन और राहत की साँस ले रहा है नही तो न जाने कितने और धमाके दिल्ली वासी और देश को झेलने पड़ते । उन्ही के ही बलिदान के कारण देश के अन्य राज्यों मैं हुए बम धमाकों के जिम्मेदार लोगों को ढूँढने मैं सफलता मिल रही है । दिल्ली के जामिया नगर के एल- १८ से पकड़े गए आतंकवादी की ही बदोलत देश मैं फ़ैल रहे आतंकवाद की जड़ों तक पहुचने मैं सरकार और पुलिस को मदद मिल रही है ।
बेशक दिल्ली पुलिस और देश की अन्य राज्यों की पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेन्सी दिन रात मेहनत कर धमाकों मैं लिप्त आतंकवादी और आपस मैं जुड़े उनके तार को खोजने लगी हुई है । और इन्ही सतर्क सुरक्षा एजेन्सी और पुलिस के कारण ही आज देश और देश के लोग सुरक्षित महसूस कर रहे हैं । हाँ कुछ खामी हो सकती है और हो सकता है कुछ लोग अपने जिम्मेदारी मैं कोताही बरतते हो , किंतु इस लिहाज़ से सभी को दोष नही दिया जा सकता है । आख़िर वे भी हमारे समाज के बीच के इंसान होते हैं और उनके भी परिवार होते हैं । फ़िर भी उन लोगों द्वारा इन पारिवारिक जिम्मेदारियों के बाबजूद देश और देश के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बखूबी निभायी जा रही है । दिन रात एक कर और जान जोखिम मैं डालकर हमारी देश की पुलिस और सुरक्षा एजेन्सी द्वारा आतंकवाद के पीछे छुपे आतंकवादी चेहरे को बेनकाब करने का प्रयास किया जा रहा है । और इसमे इन्हे सफलता भी मिल रही है ।
किंतु जिस बहादूरी से और जान जोखिम डालकर इन आतंकवादी घटना के जिम्मेदार अपराधियों को पकड़ा जाता है उसी अनुपात मैं और उसी जज्वे के साथ हमारा यह तंत्र इन्हे सजा दिलाने मैं नाकाम रहता है । यंहा तक की कोर्ट द्वारा दोषी करार दिया जाने के बाद भी इन्हे सजा मिल नही पाती है । अभी भी पहले पकड़े गए कई आतंकवादी या तो जेल मैं मेहमान बनकर रह रहे हैं या फिर कोर्ट से दोषी सिद्ध हो जाने के बाद भी उन्हें सजा नही दिलाई जा सकी है । संसद परिसर मैं हुई घटना के अपराधी कोर्ट द्वारा दोषी सिद्ध हो जाने के बाद भी उन्हें सजा न मिलना देश की क़ानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह है । ऐसा लगता है की इस घटना मैं शहीद हुए वीर जांबाज सिपाहियों के बलिदान को नजरअंदाज किया जा रहा है ।
ऐसे मैं देश की पुलिस और सुरक्षा एजेन्सी के जांबाज कर्मयोद्धा के मनोबल मैं कमी आना स्वाभाविक है । जिस तेजी से और वीरता को अंजाम देकर हमारे देश के वीर जांबाज द्वारा अपराधियों को पकड़ा जाता है उसी तेजी से और तत्परता से इन्हे सजा नही दिलाई जाती है ।
देश की सुरक्षा मैं लगे जांबाज कर्मयोद्धा का मनोबल और देश भक्ति का जज्बा हमेशा ऊँचा रहे जिसके लिए आवश्यक है की जान की बाज़ी लगाकर पकड़े गए अपराधी को उनकी सजा के अंजाम तक पहुचाना जरूरी है । न्याय व्यवस्था भी ऐसी हो की ऐसे अपराधों की सुनवाई तेजी से की जाए । देश की सरकार और राजनेताओं को भी अपने हितों से ऊपर उठकर ऐसे अपराधियों को जल्द जल्द से सजा दिलवाने का प्रयास किया जाना चाहिए । अतः हम देश वासी आशा करेंगे और भगवान् से प्रार्थना करेंगे की देश के वीर जांबाज कर्मयोद्धा ऍम सी शर्मा जी का बलिदान एवं देश की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा मैं शहीद हुए वीर जाबांजों का बलिदान जाया नही जायेगा ।

गुरुवार, 18 सितंबर 2008

आतंकवाद से भी बडा आतंकवाद !

देश एक नए आतंकवाद से जूझ रहा है , जिसके कारण देश के विकास की रफ़्तार धीमी हो गई है । देश मैं सांप्रदायिकता का जहर घुल रहा है , हर दिन कही न कही जुलुश , प्रदर्शन , धरने और हड़ताल के साथ तोड़फोड़ और आगजनी की घटना हो रही है , देश की बाहरी तथा आंतरिक सुरक्षा खतरे मैं पड़ गई है , देश की अन्तराष्ट्रीय साख मैं बट्टा लग रहा है और अब देश असुरक्षित देश के रूप मैं चर्चित होने लगा है , आस्ट्रेलिया जैसा देश की टीम सुरक्षा कारणों से देश मैं खेलने आने मैं कतरा रहे हैं । अन्तराष्ट्रीय स्तर की , देश की खुफिया एजेन्सी और बाहरी तथा आंतरिक सुरक्षा हेतु लगा तंत्र कमजोर हो रहा है । पड़ोसी देश हमें आँखें दिखा रहे हैं , इसके आतंक से भयभीत होकर सीमापार घुसपैठ होकर आए लोगों को भी देशी नागरिक का दर्जा देने की बात देश के अंदर ही उठने लगी है इस नए आतंकवाद के चलते देश मैं अशिक्षा , बेरोजगारी , गरीबी और जनहित के मुद्दे हासिये पर चले गए हैं और आतंकवाद से देश की सुरक्षा जैसा मुद्दा भी उसके सामने बोना साबित हो रहा है ।
जी हाँ आप सोच रहे होंगे आख़िर कौन से आतंकवाद की बात हो रही है , जी हाँ इसका नाम है वोट का आतंकवाद , यह एक ऐसा आतंकवाद जिसके धमाके मैं बोम्ब से भी ज्यादा देश को नुक्सान पहुचाने की तीव्रता और शक्ति है जिसके के कारण देश के हुक्मरानों की तो बात ही छोड़ दीजिये सत्ता शक्ति होने के बाद भी वे असहाय और मजबूर बने हुए हैं । देश के नेता और जननायक निकम्मे और नकारे साबित हो रहे हैं । वे यह जानते हुए भी की जो वे कर रहे है वह नैतिक और तार्किक द्रष्टि से ग़लत है फ़िर भी वे करने को मजबूर है । यही आतंकवाद की वजह से कल हुई कबिनेट की बैठक मैं टालू निर्णय लेकर एवं पुराना घिसी पिटी बात की गई की आतंकवाद से शक्ति से निपटेंगे वगैरह वगैरह ।
अब जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं इसके नुक्सान पहुचाने की तीव्रता और शक्ति बढती जाती है । इसके आगे देश हित और जनहित के मुद्दे हासिये मैं चले जाते हैं । हाँ किंतु चुनाव नजदीक आते ही इसका आतंक राजनेताओं को कुछ ज्यादा ही परेशान और त्रस्त करने लगता है किंतु देश की जनता कुछ दिनों के लिए ही सही जनता से जनार्दन बन जाती है और इसी समय उनके खूब पूछ परख बढ़ जाती है । तो देखा आपने देश मैं वोट का आतंक कैसे अपना खेल दिखा रहा है और देश को स्थिर और टुकड़े करने को भी अमादा हैं ।
ना जाने इस वोट के आतंक से देश को कब मुक्ति मिलेगी और इसके ख़िलाफ़ लड़ने हेतु कौन सी और कौन रणनीति तय करेगा ? क्या देश की जनता या फिर ...... ????.

बुधवार, 17 सितंबर 2008

अजी ये कैसे चयन कर्ता है !

अजी हाँ मैं कोई क्रिकेट , हांकी या किसी खेल की टीम के चयन कर्ता या फिर किसी रोमांचक और साहसिक कार्य के लिए चुने वाले दलों के चयन कर्ताओं की बात नही कर रहा हूँ , जिन्हें की उनके क्षेत्रों के भरपूर ज्ञान और अनुभव रहता है , उनकी एक निर्धारित योग्यता रहती है । उन्हें चयन किए गए या चुने गए उम्मीदवारों को चयन करने के साथ बापस हटाने या बुलाने का अधिकार भी रहता है ।
किंतु यहाँ चयन कर्ता को न कोई योग्यता की जरूरत होती है और न कोई अनुभव की । और तो और उन्हें यह तक नही पता होता है की हम जिस उम्मीदवार का चयन करने जा रहे है उसकी योग्यता क्या है ? उसे हम किस दल और किस टीम और किस कार्य के लिए चुन रहे है यह भी पता नही रहता है । चयन कर्ता इतने कमजोर और इक्छा शक्ति मैं कमी वाले होते हैं की उन्हें साम , दाम और दंड भेद से किसी भी दिशा मैं बहकाया जा सकता है । और यदि वे किसी उम्मीदवार का चयन भी कर लेते हैं तो उसे हटाने या बापस बुलाने का अधिकार भी नही रहता है ।
जी हाँ हमारे लोकतंत्र के मुख्य आधार स्तम्भ है , अर्थात वोटर या मतदाता । न तो उन्हें कोई योग्यता की जरूरत होती है , और न कोई अनुभव की , और न कोई उनके पारिवारिक इतिहास की । बस उन्हें देश का नागरिक होने के साथ उनकी उम्र १८ वर्ष होनी चाहिए । फिर चाहे वह अनपढ़ हो , अपराधी हो या फिर कुछ और । और उनके कन्धों पर उन उम्मीदवारों को चुनने की जिम्मेदारी होती है जो उसके क्षेत्र , जिला , प्रदेश और देश की लाखों करोरों लोगों की भावनाओं और विचारों का प्रतिनिधितव करते है , लोगों की समस्याओं और क्षेत्र के विकास के लिए जिन्हें अथक प्रयास और मेहनत करना होता है ।
इन सब कमियों के चलते ही ताओ आज देश के राजनेता मनमानी करने पर तुले हुए हैं , क्योंकि एक बार चुनने के बाद ताओ कोई हटा नही सकता है . और दूसरी बात यह भी है की उनकी इन कारगुजारियों को आम अनपढ़ और नासमझ मतदाता कितना समाज पायेगा , उन्हें पता है की चुनाव के नजदीक समय पर साम दाम और दंड भेद से इन मतदाताओं को बरगलाया जा सकता है . इस लोकतान्त्रिक देश मैं इन राजनेताओ द्वारा देश का कैसा मजाक बनाया जा रहा है की पढ़ा लिखा और समझदार बुद्धिजीवी वर्ग अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है और मन मसोस कर रह जाता है .

अतः प्रदेश और देश को चलाने वाली टीम का चयन करने वाले चयन कर्ताओं हेतु कुछ तो योग्यता का निर्धारण होना चाहिए । ताकि वह स्व विवेक से अपने वोट के महत्व और चयन किए जाने वाले उम्मीदवार की साख , उसके सामाजिक कार्यों और उसकी योग्यता को देखते हुए फ़ैसला कर अपना अमूल्य वोट दे सकें , और उसे पाँच साल तक किम कर्तव्य बिमूढ़ होकर हाथ मलते रह जाना न पड़े ।

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

आतंकी घटना पर गृह मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण बैठक .

हमारा गृह मंत्रालय बहुत ही परेशान था की हमारे गृह मंत्री श्री शिवराज जी इस बार बार के आतंकी हमले लो लेकर बहुत चिंतित हैं । आख़िर उनको समझ नही आ रहा था की उनकी परेशानी को कैसे दूर किया जाए । शिवराज जी अपने कार्यालय मैं इधर इस इधर टहल रहे हैं , और मन ही मन बडबडा रहें है की ये आतंकवादियों अति कर दी है । दूसरों राज्यों तक तो ठीक था , अब दिल्ली मैं भी बम विस्फोट कर रहे हैं । मुझे अपने लोगों की सुरक्षा की बड़ी चिंता हो रही है । ठीक उसी समय गृह राज्य मंत्री श्री जय प्रकाश जी आ जाते हैं वे भी बड़े परेशान दिख रहे हैं इन आतंकी हमलों से । तभी शिवराज जी की नजर जय प्रकाश जी पर पड़ती है और वे तपाक से कह उठते हैं की अच्छा हुआ आप आ गए हैं । मैं तो बहुत ही परेशान हूँ दिल्ली मैं हुए इन आतंकी हमलों से । मैं अपने लोगों की सुरक्षा की बड़ी चिंता सता रहे हैं । जय प्रकाश जी बोले कौन अपने लोग , उनका नाम तो बताये अभी खुफिया और सुरक्षा एजेन्सी को भेजकर पता लगा लेते हैं , तभी शिवराज जी बोले अरे मेरे कपड़े सिलने वाले दर्जी , लौंड्री वाले और वह दूकान जन्हा से मैं अपने लिए कपड़ा पसंद करते हूँ , वे ठीक हैं की नही , यार बड़ी चिंता हो रही है , मेरे कपड़े कौन सिलेगा , मेरे कपड़े मैं प्रेस कौन करेगा और मेरी पसंद की दूकान मैं पसंद के कपड़े कैसे मिलेंगा । अब मैं कैसे बदल बदल कर कपड़े पहन पाऊंगा ।
सुनते सुनते श्री जय प्रकाश जी भी अपने को रोक नही पाते हैं , वे भी अपना दुःख सुनाने शुरू कर देते हैं । आप सही कह रहे हैं शिवराज सर , इन आतंकी वादी हमलों के कारण मुझे भी उदघाटन समारोह मैं फीते काटने हेतु जाने मैं परेशानी हो रही हैं , क्या करुँ अब बमुश्किल मैं भी दिन मैं एकाध , दो फीते काटने के समारोह मैं जा रहा हों , क्या करुँ बड़ा परेशान हूँ ।
इसी समय बाहर मीडिया वाले परेशान कर रहे थे की देश मैं इतने आतंकी हमले हो रहे हैं और गृह मंत्रालय क्या कर रहा है ? उसी समय शकील साहब आ जाते हैं , शिवराज जी कहते हैं अच्छा हुआ आप आ गए । बाहर जाओ और मीडिया वाले को सम्भालों , वे ठीक हैं सर कहकर बाहर मीडिया वालों से रूबरू होने आ जाते हैं , और कहते हैं की इसी सम्बन्ध मैं अन्दर महत्वपूर्ण बैठक चल रही है ।
और अन्दर गुफ्त गू चल रही हैं । अंत मैं देश की सुरक्षा एजेन्सी और खुफिया एजेन्सी के प्रमुख बुलाते हैं और उन्हें कहते हैं की शीघ्र ही श्री शिवराज जी के धोबी , दर्जी और कपड़े की दूकान वालों की सुरक्षा के प्रबंध करें । साथ ही जयप्रकाश जी के हर फीते काटने वाले आयोजन के स्थान के कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जाए । इस तरह महत्वपूर्ण बैठक समाप्त हो जाती है ।
और बाहर मीडिया वालों के पास ख़बर आती हैं की बैठक ख़त्म हो गई हैं । और निर्णय लिया गया है की दिल्ली और देश के महत्वपूर्ण ठिकानों की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जायेगी और आतंकवादी घटना से शक्ति से निपटा जायेगा ।

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

Give and Take पर निर्भर है ब्लॉगर की दुनिया !

ये दुनिया का दस्तूर है की इस हाथ से ले तो उस हाथ से दे । आख़िर जब तक आप दोगे नही तब तक आप कुछ प्राप्त करने की आशा नही कर सकते हैं । सरकारी कामकाजों की तो बात ही छोड़ दो , यंहा तक की भगवान् के पास भी बिना लिए दिए कोई काम नही बनता है । तो अब आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं की ब्लॉगर की इस दुनिया मैं बिना कुछ दिए आपका काम होगा । अर्थात यदि आप चाहते हैं की आपके ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़े और उस पर ज्यादा से ज्यादा टिप्पणी आए । तो आपको भी दूसरों के ब्लॉग मैं जाकर , पढ़कर उस पर टिप्पणी भी करनी होगी और यह बात सार्भोमिक सत्य की तरह अडिग है । यानी की यह दुनिया Give and Take के सिद्धांत टिकी है ।
हाल ही मैं हिन्दी के वरिष्ट ख्यातिनाम ब्लोग्गेर्स द्वारा ब्लोग्स मैं टिप्पणी की बात पर अपनी बात रखी गई तो , इस बात पर ब्लोग्गेर्स के बीच वैचारिक द्वंद छिड़ गया । वाकई गंभीर बात कही गई है और यह ब्लॉग की दुनिया के लिए बहुत आवश्यक है खासकर हिन्दी ब्लॉग के लिए जिसे की अभी बहुत दूरी तय करनी है अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए । और इस बात पर इतना हंगामा नही बरपना चाहिए ।
यह सच भी है एक तरफा रास्ते से विश्व मैं ज्ञान एवं जानकारी प्रचार प्रसार सम्भव नही हैं । इसके लिए दो तरफा रास्ता खुला रखना होगा । कहा जाता है की अच्छा वक्ता वही हो सकता है जो अच्छा श्रोता भी हो , इसी तरह मेरा मानना है की अच्छा ब्लॉगर वही है जो सिर्फ़ लोगों को अपना ब्लॉग पढने के लिए दे वरन सभी को पढ़े भी और उस पर उचित टिप्पणी भी दे , तभी हम दूसरों से यह अपेक्षा कर सकते हैं की वे हमारे ब्लॉग मैं आकर , पढ़कर उस पर टिप्पणी करें । वैसे भी अपने ब्लॉग की पहुच अधिक से अधिक लोगों तक बने इसके लिए दूसरों के ब्लॉग पर टिप्पणी करने से बेहतर और कोई उपाय नही सूझता हैं । अतः दूसरों के ब्लॉग को पढ़कर उस पर टिप्पणी करने से ब्लॉगर का उत्साह वर्धन तो होगा ही होगा साथ ही हम उसे अपने ब्लॉग पर आने हेतु आमंत्रित करने का अच्छा माध्यम भी प्रदान कर सकेंगे ।
तो महोदय मुझे लगता है की हिन्दी ब्लॉग नित नई बुलंदियों को छुए इसके लिए आवश्यक है की टिप्पणी के माध्यम से हम एक दूसरे के बीच स्वस्थ्य संवाद स्थापित करने की परम्परा को कायम रख सकते हैं । विश्व के कोने कोने मैं बैठे हुए हिन्दी ब्लॉगर बंधुओं से सतत संपर्क बनाए रख सकते हैं और एक दूसरे के उन्नत विचार और ज्ञान को आपस मैं बांटकर अपने और समाज के हित मैं उपयोग कर सकते हैं ।
अतः ब्लॉगर की दुनिया मैं भी Give and Take के सिद्धांत की सच्चाई को स्वीकार कर उसे अपनाना होगा ।

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

परमाणु करार पर इतनी उदारता क्यों ?

यह देश की लिए बड़े सुकून और खुशी की बात है की देश की उर्जा जरूरतों के मद्देनजर अमेरिका से परमाणु करार को करने हेतु अन्तराष्ट्रीय स्तर के परमाणु इधन आपूर्ति कर्ता देशों ने भी बिना किसी शर्त मंजूरी दे दी है । अर्थात परमाणु करार पर अब भारत और अमेरिका के बीच कोई रोड़ा नही है । यह एक उपलब्धि भरी बात है की भारत द्वारा सी टी बी टी और एन पी टी जैसी परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए बगैर भारत को उसकी आवश्यकता हेतु अन्तराष्ट्रीय बाज़ार से परमाणु संसाधन सप्लाई करने की मंजूरी मिली है साथ ही यह भी कहा जा रहा है देश को उच्च परमाणु संसाधन तकनीक भी मिल सकेगी । अन्तराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु करार को मिली सहमती पर यह तो हुआ एक उपलब्धि भरा और करार का उजला पक्ष ।
किंतु इस करार पर कुछ प्रश्न देश के सामने अभी अनुतरित और उन्सुल्झे है । जिसका की जवाव अभी मिलना बाकी है । ३४ वर्षा के वनवास के बाद ऐसा अचानक क्या हो गया की सिर्फ़ भारत देश को ही परमाणु अप्रसार सी टी बी टी और एन पी टी जैसी संधि पर हस्ताक्षर किए बिना उसे परमाणु इंधन सप्लाई की अनुमति दी गई ? अमेरिका और परमाणु सप्लाई देश भारत पर इतनी उदारता क्यों दिखा रहे हैं ? क्या अमेरिका जैसा देश अपने किसी बड़े निजी स्वार्थ के भारत देश के प्रति इतना उदार हो सकता है ? कही ऐसा तो नही भारत परमाणु इंधन सप्लाई देशों के लिए एक बड़ा बाज़ार नजर आ रहा है , जिसके मद्देनजर भारत देश के प्रति इतनी उदारता दिखायी जा रही है । कहा यह भी जा रहा है की परमाणु इंधन का उपयोग पर्यावरण और स्वास्थय की द्रष्टि से काफ़ी नुक्सान दायक हैं एवं महंगा भी है और कुछ देश तो उर्जा उत्पादन के इन प्लांटों को बंद करने की मानसिकता बना रहे हैं , हो सकता है इसी के मद्देनजर अब परमाणु संसाधन संपन्न देश अपने इस संसाधन को खपाने हेतु नया बाज़ार ढूँढ रहे हैं ।
अभी भी देश के सामने इस परमाणु करार के कई पहलु को खुलकर नही रखा गया है । १२३ हाइड एक्ट के बारे मैं कोई स्पष्ट बात देश के सामने नही राखी गई है जिससे की देश के सामने अभी भी संशय की स्थिती बनी हुई हैं । वर्तमान सरकार भी अपने कार्यकाल की कोई बड़ी उपलब्धि को दिखाने के चक्कर मैं , हो सकता है देश के सामने इस करार के सिर्फ़ उजले पक्ष को रख रही है ।
काश यह सब आशंकाएं निराधार हो और यह करार देश के हित मैं हो और देश की सभी आवश्यक उर्जा जरूरत पूरी हो , जिससे देश के चहुमुखी विकास मैं कोई बाधा न हो । ऐसी मनोकामना हम सभी देशवासी करते हैं ।

शनिवार, 6 सितंबर 2008

कुर्सी प्रेम छोड़कर - कुछ ऐसे भी जन सेवा करके देखे !

जनसेवा और देश सेवा के नाम पर सत्ताप्राप्ति हेतु देश की राजनैतिक पार्टी बड़े बड़े आन्दोलन , जुलुश , रेलिया और हिंसक प्रदर्शन करती है , जिसमे लाखों लाखों लोगों को भाड़े पर लाकर इक्कट्ठा किया जाता है , इसमे राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्त्ता बड़े जोर शोर से भाग लेते हैं , एवं मरने मारने पर उतारू होते हैं , इन प्रदर्शन के बहाने आम लोगों को जन जीवन को अस्तव्यस्त करते हैं एवं व्यक्तिगत , सामजिक और राष्ट्रीय संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुक्सान पहुचाते हैं और कभी कभी तो जनहानि करने से भी नही चूकते हैं । साथ ही राजनैतिक प्रदर्शन मैं बैनर , पोस्टर , पम्पलेट और अन्य प्रचार सामग्री मैं काफ़ी पैसा पानी की तरह बहाया जाता है ।
निजी स्वार्थ और सत्ता प्राप्ति के कामों मैं अपने कार्यकर्ताओं की श्रम शक्ति और पार्टी की धनशक्ति को जाया किया जाता है । देश की युवा और मानव शक्ति की उर्जा को नकारात्मक और अरचनात्मक कार्यों मैं नष्ट होने दिया जाता है । कई बार तो ऐसे कामों मैं कार्यकर्ताओं को जान जोखिम तक डालना पड़ता है । साथ ही पैसों का भी अनावश्यक खर्चा भी किया जाता है ।
इस तरह से देश की सभी पार्टी द्वारा धन बल और बाहुबल का प्रदर्शन करते देखा गया हैं , किंतु देश की गंभीर प्रक्रत्रिक अथवा मानवीय चूकों से होने वाली भयंकर त्रासदियों मैं मदद के लिए आगे आते बहुत ही कम देखने को मिलता है । ये राजनैतिक पार्टियाँ तो जन सेवा और मानव सेवा का खूब धिन्डोरा पीटती हैं , किंतु जब सही मैं मानव सेवा और जनसेवा की बात आती हैं तो उनकी भूमिका नगण्य नजर आती हैं । और तो और ऐसे मौके मैं गन्दी राजनीति करने से भी बाज़ नही आते हैं ।
यदि सही मैं जनसेवा और मानव सेवा की भावना इन राजनैतिक पार्टियों मैं हैं तो क्यों नही वे स्वयं कोसी के कहर से हताहत लोगों की सेवा मैं मानव सेवा करने जाते हैं ? क्यों नही अपनी पार्टी के फंड से आवश्यक आर्थिक सहायता उन हताहतों के लिए मुहैया कराते हैं ? क्यों नही अपने कार्यकर्ताओं को कोसी के कहर से प्रभावित स्थानों मैं जन सेवा के लिए भेजते हैं ? उनके कार्यकर्ता जो आन्दोलन एवं प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ और हिंसक घटनाओं मैं जिस अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हैं ठीक उसी तरह का प्रदर्शन बाढ़ मैं फसे लोगों को निकालकर और उनकी जान बचाकर क्यों नही करते हैं । क्या राजनैतिक पार्टी जनसेवा के नाम पर कोसी के कहर मैं बिस्थापित और हताहत हुए लोगों के पुनर्वास की जिम्मेदारी लेंगी ?
अतः देश की राजनैतिक पार्टियों को सत्ता प्रेम को छोड़कर ऐसे भी जनसेवा और मानवसेवा करके देखना चाहिए। अपनी और अपने कार्यकर्ता की उर्जा को सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों मैं लगाने हेतु प्रेरित करें । निःसंदेह यह जनसेवा का एक अच्छा अवसर हैं ।
क्या देश की राजनैतिक पार्टी ऐसा करेंगी ?

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

त्राश्दियों मैं हताहतों की मदद का विकृत रूप ?

विश्व या देश के किसी भी कोने मैं प्राक्रत्रिक आपदाओं जैसे बाढ़ , भूकंप , तूफ़ान अथवा सूखा अथवा मानव चूक से पैदा होने वाली कृत्रिम आपदाएं हो , इस प्रकार की घटित होने वाली भयंकर आपदाओं मैं देश विदेश से मदद के लिए कई हाथ आगे आते हैं । व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से लोग मदद के लिए सामने आते हैं । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज मैं सामूहिक रूप मैं साथ रहकर , एक दूसरे के सुख दुःख मैं काम आकर अपने जीवन का निर्वहन करता है । इसी स्वाभाविक वृत्ति के कारण मनुष्य अपने आसपास के लोगों की अपने सामर्थ्य के अनुसार दुखित और किसी घटना मैं पीड़ित लोगों की मदद करता है । सामान्तया दवाएं , भोजन , कपड़े एवं जीवन हेतु आवश्यक वस्तुओं अथवा आर्थिक सहायता के रूप मैं हताहतों की मदद की जाती है ।
कई बार ऐसी मदद तो निःस्वार्थ भाव से अंतरात्मा की आवाज पर स्वतः स्फूर्त होकर की जाती है । किंतु कई बार ये मदद दिखावा अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा के मद्देनजर मजबूरी बस की जाती है , जिसमे इसका खूब प्रचार प्रसार किया जाता है । इसी प्रकार कई बार यह देखने मैं आता है की मदद स्वरुप पहुचाई जाने वाली आवश्यक सामग्री अथवा आर्थिक राशि पीडितों तक पहुच ही नही पाती है । सरकार अथवा प्रशासन द्वारा प्रदान की जाने वाली लाखों करोरों रूपये की मदद प्रशासन मैं बैठे बीच के लोगों द्वारा ही पचा ली जाती है जिससे हताहतों और पीडितों को इन मददों के आभाव मैं भारी दुःख एवं कठिनाई झेलनी पड़ती है । यह देखने मैं भी आता है कई लोग मदद के नाम पर हताहतों और पीडितों के बीच कीमती सामानों के लालच मैं जाते हैं । लोग शहर और बस्तियों मैं निकलकर हताहतों के नाम पर चंदा एवं आर्थिक सहायता मांगते हैं , जिसका कोई हिसाब नही रहता है की वे कितना पैसा पीडितों तक पंहुचा रही हैं , अथवा पंहुचा भी रहे हैं या नही । एक चीज और गौर करने वाली है की मदद के नाम पर कई परिवार , घर के मैले कुचेले और फटे कपड़े एवं घर के अनावश्यक समान रुपी कूड़ा करकट को देते हैं , जो की मजबूरी बस दी गई मदद को दर्शाता है और मजबूर और हालात के मारे हुए लोगों के माखोल उडाने के सामान है।
इन सबके बीच ऐसे लोग अथवा संस्था है जो खामोशी के साथ निःस्वार्थ भावना से मदद हेतु आगे आते हैं । ऐसे लोगों की कमी नही है जो जान जोखिम मैं डालकर लोगों की मदद करते हैं । अतः मददों के इन अच्छे पहलु के इतर मददों के विकृत स्वरुप मैं सुधार होना जरूरी है । मदद ऐसी की जाए जो आडम्बर रहित हो , जिसमे कोई मजबूरी न हो । सामर्थ्य के अनुसार ऐसी मदद की जाए की सम्मान के साथ एवं आवश्यकता के अनुरूप , मदद पाने वाले लोगों तक यह मदद पहुचे । उनको भी लगे की इस दुःख और परेशानी की घड़ी मैं हमारे अपने साथ हैं ।

शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

कोसी के कहर जैसे त्रासदी के कसूरबार

बिहार मैं कोसी नदी द्वारा मचाई गई तबाही प्रदेश और देश के लिया बहुत बड़ी प्राकृतिक त्रासदी बनकर सामिने आई है । ख़बरों के अनुसार इसमे 15 जिले के लगभग 30 लाख लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं । इस तबाही के भयावहता को देखते हुए प्रधानमन्त्री द्वारा इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया हैं । इस दुःख एवं विपत्ति की घड़ी मैं प्रभावितों के साथ सारा देश साथ हैं किंतु अब प्रकृति ऐसे विकराल रूप क्यों धारण करने लगी है की जिससे प्रलय जैसे स्थिती पैदा होकर जन धन को भारी क्षति पहुचती हैं । अतः इन सब के पीछे कौन जिम्मेदार हैं ? आख़िर इस तरह की भयावह स्थिति निर्मित होने के पीछे कसूरवार कौन हैं ?

सामान्यतः हर बार के तरह इस बार भी प्रकृति को और सरकार को इस बात के लिए कसूरवार ठहराया जायेगा । प्रभावित लोग प्रशासन की बद इन्तजामी पर प्रशासन को कोसते रहेंगे और इस भयावह त्रासदी को झेलने हेतु मजबूर होंगे । क्या इस प्रकार की त्रासदियों के लिए सिर्फ़ शासन प्रशासन और सरकार दोषी है ? वैसे इस बात से इनकार भी तो नही किया जा सकता हैं , किंतु जितने ये कारक दोषी हैं उससे कंही अधिक जनता भी दोषी है । जी हाँ देश की जनता जो अपने जनप्रतिनिधियों जिनसे सरकार बनती हैं को ऐसी प्रभावी नीति एवं पुख्ता व्यवस्था बनाने हेतु मजबूर नही कर सकी , जिससे भविष्य मैं होने वाली ऐसी प्राकृतिक त्राश्दियों से बचा जा सका एवं जानमाल के होने वाले भारी नुक्सान को कम किया जा सके । अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ते हुए नदियों को दूषित कचरे से पाटकर उसे उथला बना रहे हैं जिससे नदी अपना रास्ता भटककर एवं तटबंध तोड़कर रहवासी बस्तियों मैं अपना रास्ता खोजती हैं । सीमेंट कंक्रीट के जंगल से धरती से को पाटकर बारिश के पानी को धरती मैं न सोखने देकर सीधे अपार जलराशि को नदियों मैं प्रवाहित होने देते हैं । जंगलों को काटकर एवं नए पेड़ पौधे को ना लगाकर प्रक्रत्रिक ऋतू चक्र को प्रभावित कर रहे हैं जिससे असमय एवं असंतुलित बारिश होती हैं जो त्रासदी का कारण बनती है । तात्कालिक फायदे को ध्यान मैं रखकर जनता के हितों के सरोकारों से अगंभीर एवं अदूरदर्शी जन प्रतिनिधि को चुनकर भेजते हैं जो सिर्फ़ अपना और सिर्फ़ अपना ही फायदा सोचते हैं । शासन प्रशासन और सरकार मैं भी तो हमारे बीच के ही लोग होते हैं अत ऐसी सोच वाले लोग ही उनमे होंगे तो स्वाभाविक हैं की शासकीय एवं प्रशासकीय व्यवस्था मैं खामी तो होगी ही । मीडिया भी इस बात के लिए दोषी है की वह भी सिर्फ़ ऐसे त्रासदी होने पर ही शासन प्रशासन एवं सरकार की कार्यप्रणाली पर खोजबीन कर ऊँगली उठाती है , आम दिनों मैं वह भी इस तरफ़ ध्यान नही देता हैं ।

आवश्यक है की प्रकृति के साथ बलात खिलवाड़ और अनावश्यक दखल अंदाजी को बंद किया जावे । प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर उसके हमजोली बनकर चला जावे । आम आदमी भी अपनी जबाबदेही समझते हुए नदियों को प्रदूषित कचरे से पाटने से रोके एवं अपने जनप्रतिनिधियों को इसके पुख्ता इंतज़ाम करने हेतु मजबूर करें । तात्कालिक फायदे को त्याग कर दूरदर्शी एवं सकारात्मक सोच एवं जनता के समस्याओं के प्रति संवेदन शील प्रतिनिधियों को चुनकर सरकार मैं भेजे जो जनहित मैं दूरदर्शी अवं कारगर नीतियां बना सके ।

पुनः स्थापित होने एवं सामान्य स्थिति बहाल होने मैं वर्षों लग जायेंगे , प्रभावित लोगों को अपनों को खोने का एवं अपनी धन संपत्ति एवं ऐश्वर्या खोने का दुःख जीवनभर सालते रहेगा । किंतु अब ऐसे कारगर नीतियों एवं व्यवस्ता बनाने के प्रयास किए जावे की कोसी जैसी भयावह बाढ़ की स्थिति पुनः देश की अन्य नदियों द्वारा ना पैदा की जा सके और कसूरवार बन्ने की स्थिति न बने ।

मंगलवार, 26 अगस्त 2008

कलाकार की नैसर्गिक प्रतिभा का दम न घुटे !

टीवी चैनल प्रतियोगिताएं का आयोजन कर देश के कला प्रतिभायों को कला प्रदर्शन हेतु समुचित मंच और उचित अवसर प्रदान करा रहे है । जिसमे गायन , नृत्य , हास्य कला , साहसिक खेल और ज्ञान आधारित प्रतियोगिताएं शामिल हैं । टीवी मैं होने वाली इन प्रतियोगिताएं मैं प्रतियोगियों को स्वयं की मौलिक और प्रक्रत्रिक प्रतिभायों के प्रदर्शन का अवसर मिलता है और वे अपने अन्दर निहित प्रतिभा , कला और हुनर को प्रर्दशित करते हैं , किंतु इस समय टीवी मैं कुछ प्रतियोगिताएं जैसे गायन और नृत्य की , जिसमे प्रतियोगी अपनी मौलिक और स्वाभाविक प्रतिभा के स्थान पर सिखर कलाकारों की नक़ल करते दिखायी देते हैं । जैसे की गायन मैं गायक प्रतिभाएं सुप्रसिद्ध गायकों के गाने अपनी मौलिक आवाज़ मैं गाने के स्थान पर हु बा हु नक़ल करते हैं । ठीक इसी तरह नृत्य कला के प्रतियोगी भी नृत्य कलाकारों के नृत्य की नक़ल करते हैं । ऐसी स्थिती मैं ऐसा लगता है की ये प्रतियोगी प्रतिभाएं परंपरागत और पूर्व कलाकारों का अनुसरण और नक़ल कर अपने अन्दर के स्वाभाविक कलाकार को मार रहें हैं ।

सिखर कलाकारों की कला शैली का अनुसरण सिर्फ़ अपनी प्रतिभा को बढ़ाने और निखारने के लिए होना चाहिए ना अपनी स्वाभाविक और मौलिक प्रतिभा को दबाने और ख़त्म करने के लिए । इन प्रतियोगिताएं के निर्णायक मंडल के सदस्य भी प्रतियोगियों को इस तरह करने से नही रोकते हैं , कई बार इन निर्णायक मंडल मैं ऐसे सदस्य होते हैं जो उस कला मैं पारंगत नही होते हैं या फिर उस कला प्रतियोगिता के क्षेत्र के नही होते हैं , ऐसे मैं ये निर्णायक सदस्य प्रतियोगी की प्रतिभाओं को आंके मैं कितना न्याय करते होंगे , यह सोचने बाली बात है ।

इस समय टीवी चैनल द्वारा नई प्रतिभाओं को उनकी कला और हुनर को दुनिया के सामने प्रदर्शन हेतु उचित मंच प्रदान किया जा रहा है साथ ही उनकी कला को परिमार्जित और पल्लवित होने हेतु समुचित अवसर और संसाधन उपलब्ध कराये जा रहे है । टीवी चैनल के ये प्रयास अत्यन्त सराहनीय हैं और वे इस बात के लिए साधुबाद के पात्र हैं । किंतु आयोजित होने वाली प्रतियोगिताएं मैं इस बात पर तबज्जो दी जानी चाहिए की प्रतियोगी कलाकारों की नैसर्गिक , मौलिक और स्वाभाविक प्रतिभा को निखरने का अवसर मिले , ना की उसका दम घुटे । प्रतियोगी को भी इस बात ध्यान रखना चाहिए की सिखर कलाकारों की कला शैली को प्रेरणा और मार्गदर्शन स्वरुप अपनाना चाहिए , और उसका उपयोग अपनी स्वाभाविक और नैसर्गिक प्रतिभा और कला को परिमार्जित और परिष्कृत करने हेतु अपनाए , ना की हु बा हु नक़ल कर अपने अन्दर की नैसर्गिक प्रतिभा को दबाने हेतु ।

गुरुवार, 21 अगस्त 2008

हर बार पदकों के लाले क्यों ?

एक एक कर ओलंपिक मैं ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने की सभी आशाएं धूमिल होती जा रही है । लगता है हमें मातृ दो तीन पदक से ही संतोष करना पड़ेगा । आख़िर ऐसा क्यों ? इस १०२ करोड़ लोगों के देश मैं जिसकी आबादी पड़ोसी देश चीन से थोडी ही कम है , ओलंपिक मैं पदकों के लाले पड़े हैं । वही चीन पदकों की तालिका मैं प्रथम स्थान बनाकर बढ़त बनाए हुए हैं । क्या हम इन १०२ लोगों मैं १०० - २०० खिलाडी ऐसे नही ढूंढ सकते , जिनमे खेल मैं सिखर तक पहुचने का जज्बा , माद्दा , योग्यता और काबिलियत हो । क्या देश मैं ऐसे दृढ इक्छा शक्ति वाले कुछ अच्छा कर गुजरने की लालसा रखने वाले लोगों की कमी है ।
मेरे से विचार से तो ऐसा नही है । हमारे यंहा ऐसे लोगों की कमी नही है । बस कमी है तो ऐसे लोगों को बिना किसे पूर्वाग्रह के तलाश कर तराशने और उचित अवसर प्रदान करने की । किंतु अभी तक ऐसा नही हो पा रहा है । राजनीती की काली छाया ने खेल की भावना और पवित्रता को धूमिल कर भाई भातीजबाद को बढ़ावा दे योग्यता और काबिलियत को दरकिनार कर दिया है । इसी का ही परिणाम है की हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हर खेल मोर्चे मैं असफल हो जाता है । और देश के खाते मैं पदकों मैं के लाले पड़ जाते है ।
आख़िर क्यों न एक निष्पक्ष खेल नीति बनायी जाए जिसमे बिना किसी आग्रह विग्रह के योग्य और क्षमतावान खेल प्रतिभाओं को अवसर दिया जाए । हर जिला स्तर मैं एवं स्कूल और कॉलेज के माध्यम से खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देकर तराशा जाए । स्कूल और कॉलेज मैं खेल के पाठ्यक्रम मैं अनिवार्य रूप से खेल को एक विषय के रूप मैं शामिल कर उसके प्रायोगिक और व्यवहारिक रूप मैं अपनाया जाना चाहिए । खेल को बढ़ावा देने हेतु इसके लिए आवश्यक इन्फ्रा स्ट्रक्चर और समुचित खेल वातावरण को निर्मित किया जाना चाहिए । खेल प्रतिभाओं हेतु आवश्यक आर्थिक सहायता और छात्रवृत्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए । साथ ही इस बात की व्यवस्था रखा जाना चाहिए की जो खिलाडी खेल मैं अपने जीवन का स्वर्णिम समय अर्पित करता है उनके जीवन के संध्याकाल हेतु अथवा खेल के दौरान होने वाले शारीरिक नुक्सान से भरपाई हेतु जीवनोपयोगी सभी आवश्यक सुख सुविधायों की व्यवस्था की जाना चाना चाहिए । इससे निसंदेह हर खिलाडी जी जान से अपना सारा समय सिर्फ़ खेल और सिर्फ़ खेल हेतु बिताएगा और इससे निश्चित रूप से आशाजनक परिणाम सामने आयेंगे और देश को फिर किसी भी अन्तराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता मैं पदकों के लाले नही पड़ेंगे ।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

एक लड़ाई नकारात्मक सोच के अपने ही लोगों से !

आजादी की 61 वी वर्षगाँठ मना रहे हैं . न जाने कितने ही लोगों ने अपने सुखों , पारिवारिक हितों और अपनी जान की परवाह किए बगैर बाहरी लोगों से लड़कर आजादी को दिलाने हेतु अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया होगा और इस मंगल कामना के साथ इस देश को आगामी पीढी के हवाले कर इस जन्हा से रुखसत हुए होंगे की , देश के लोग और देश भय , भूख , भ्रष्टाचार और अराजकता जैसी समस्याओं से मुक्त होकर निरंतर सुख , समृद्धि और विकास के नित नए आयाम और सिखर को छुयेगा . किंतु इन सब से इतर देश मैं अपने ही लोगों द्वारा बनायी जा रही भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों मैं जकड़ते जा रहा हैं .
आजादी से लेकर अब तक हर क्षेत्र मैं हुए विकास को नकारा नही जा सकता है . किंतु लगता है की देश ने जन्हा स्रजनात्मक द्रष्टि वाले कड़ी म्हणत और दृढ इक्छा वाले लोगों के योगदान से विकास किया है वन्ही नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों द्वारा पैदा की जा रही नित नई समस्याएं जो लोगों का जीना मुहाल कर रही है और देश मैं अशांति और भय का वातावरण निर्मित कर देश के अब तक हुए विकास को धता बता रही .
देश मैं धधकती कश्मीर की आग जो वोट बैंक और दृढ इक्छा शक्ति के अभाव मैं उन्सुल्झी रहकर सारे देश को झुलसाने को तैयार है , कमर तोड़ मंहगाई जो हर प्रयासों के बाद भी दिनों दिन सुरसा की तरह मुंह फाड़ रही है और आम आदमी के लिए संतुलित भोजन को दूर की कौडी साबित कर पेट भरने के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाने मैं भी उलझाने पैदा कर रही है , आतंकवाद की समस्या जो इतनी सम्रद्धि होने के वाद भी लोगों को असुरक्षा और भय के माहोल मैं जीने को मजबूर कर रही है , देश मैं उत्पन्न राजनीति अराजकता की स्थिति जिसमे नैतिकता , सैधांतिक वैचारिकता और संवेदनशीलता शुन्य हो गई है , जन्हा देश हित और जन हित गौण होकर सत्ता सुख , व्यक्तिगत और राजनैतिक हित महत्वपूर्ण हो गए है , जन प्रतिनिधियों के खरीद फरोख्त से लेकर हर छोटे छोटे कार्यों मैं रुपयों की बोली लगने लगी है , जिससे ऐसा लगता है की भ्रष्टाचार अब समस्या नही अब जीवन के आम दिनचर्या का हिस्सा है . धर्मं और आध्यात्मिकता को व्यापार और वसाय का रूप देकर और छल कपट की नीति को अपनाकर उसकी आड़ मैं नैतिकता की हदें पार की जा रही है . विरोध प्रदर्शन के नाम पर चक्का जाम , जुलुश और बंद के दौरान लूट , आगजनी , हिंसा और तोड़फोड़ कर राष्ट्रीय संपत्ति को नुक्सान पहुचकर और आम आदमी के जीवन की परवाह न कर मानविय संवेदना को टाक पर रखा जा रहा है .
इन समस्यायों के अब तक तो कोई ठोस और सर्वमान्य हल सामने नही आए है . देश की सरकार और प्रशासन की कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता भी नही है इन समस्याओं से देश को मुक्ति मिल सकेगी ।

अतः आवश्यकता है अपने ही बीच के नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों से एक लड़ाई और लड़ने की जो देश को भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों से मुक्ति दिला सके ।

इस आशा और विश्वाश के साथ की यह पर्व देश और देश के सभी लोगों के लिए सुख समृद्दी भरा होगा । सभी को इस राष्ट्रीय पर्व की हार्दिक बधाई ।

शनिवार, 26 जुलाई 2008

बम धमाकों की गूँज दुबारा सुनने को न मिले !

आए दिन देश मैं कंही न कंही बम धमाकों की गूँज समाचार पत्रों , रेडियो और टीवी के माध्यम से सुनाई देती रहती है , परन्तु क्या अब यह गूँज सरकार और प्रशाशन को पहले जैसे विचलित और उद्देलित करती है ? क्या अब भी पहले जैसे मन सिहर उठता है ? क्योंकि अब तो यह हमेशा सुनाई देती रहती है अब तो उसका कर्कश शोर सुनने की आदत सी हो गई होगी । इन धमाकों की गूँज मैं कितने ही लोग घायल और हताहत हुए होंगे , कितनो ने अपने परिवार के प्रिय सदस्यों को खोया होगा । कितने ही लोग इन धमाकों की गूँज मैं शारीरिक और मानसिक रूप से लाचार और विवश हो गए होंगे । ये बम धमाकों को बार बार सुनने और इनके त्राशदी को झेलना देश के लोगों की नियति बनते जा रहे हैं , वह भी देश के प्रशासन और सरकार के विफलता पूर्ण अदूरदर्शी नीतियों के कारण । इन बम धमाकों की त्राशदियों पर हर बार की कुछ राजनेता और अधिकारी आयेंगे और हमेशा की तरह कई घोषणाओं और आश्वाशानो की झडी लगा जायेंगे , और फिर वाही धाक के तीन पात वाली स्थिति हो जायेगी और फिर किसी दूसरे बम धमाकों की घटना होने तक कुम्भ्करनी नींद सो जायेंगे । प्रभावित शहर मैं भी कुछ दिन बाद सब कुछ भूलकर फिर बेफिक्र होकर सामान्य जीवन बहाल हो जायेगा । बस इस त्राशदी की पीड़ा को झेलने को मजबूर होगा तो सिर्फ़ प्रभावित परिवार और प्रभावित लोग ।
किंतु इन सबके बीच आतंकी और विकृत मानवीय मानसिकता वाले लोग फिर एक नए धमाकों को देश के किसी नए कोने मैं अंजाम देने हेतु जुट जायेंगे , वह भी देश के लोग और प्रशासन और देश की सुरक्षा एजेन्सी को चकमा देकर । एक बात यह है की आतंकी और विकृत मानवीय मानसिकता वाले लोग जरूर चौकन्ने रहते हैं परन्तु हम यह सब भूलकर बेफ्रिक्र हो जाते हैं ।
अतः आवश्यक है की दुबारा ऐसी त्राषद पूर्ण घटना देश मैं कंही भी न घटे और धमाकों की गूँज पुनः न सुनाई दे इस हेतु प्रशासन और देश की सुरक्षा एजेन्सी के साथ साथ आमजन को भी चौकन्ने और सजग और सचेत रहना होगा । अपने आस पास होने वाली हर छोटी और बड़ी हलचलों पर नजर रखना होगा तभी हम इन दर्दनाक और विध्वंशक घटनाओं और आतंकी और विकृत मानवीय मानसिकता वाले लोगों के विकृत मंसूबों पर रोक लगा सकेंगे ।

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

मजबूर ये हालत - हर कही है !

देश मैं २२ तारीख को विश्वाश मत प्राप्त करने हेतु जनता चुने हुए नुमाइंदे की खरीद फरोख्त के काले कारनामे चल रहे थे । कोई पैसों मैं बिकने को तैयार था तो कोई पद के लालच मैं बिकने को तैयार था । लालच के इस खेल मैं कोई निजी हितार्थ मूल पार्टी छोड़कर जाने को तैयार था , तो कोई अपनी पार्टी और सरकार बनाने हेतु अपनी दावेदारी पक्की करने की जुगत मैं खरीद फरोख्त मैं लगा हुआ था । सत्ता पक्ष भी अपनी सरकार बचाने के चक्कर मैं जेल मैं बंद पड़े दागी सांसद को भी गले लगाने से भी परहेज नही कर रहा था , तो अपने पर भारी पड़ते विरोधियों को कमजोर करने हेतु देश की महत्वपूर्ण शासकीय संस्था का दुरूपयोग करने से नही हिचक रहे थे । संसद मैं एक दूसरों पर कीचड़ उछालने और एक दूसरे को भुला भरा कहने मैं मर्यादा की सारी हदें ताक मैं रख दी गई थी । संसद मैं रुपयों की गद्दी को लहराकर साता पक्ष द्वारा अपने को खरीदे जाने की बात भी बेशर्मी से स्वीकारी जा रही थी । इस प्रकार देश के लोकतंत्र का काला इतिहास लिखा जा रहा था ।
किंतु बेचारी जनता यह सब मूक बन और किम कर्तव्य बिमूढ़ हो देखने हेतु मजबूर थी । आख़िर उसके पास इसके सिवाय कोई चारा भी नही था । अपने द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के काले और अमर्यादित आचरण को देखकर अपने को ठगा हुआ महसूस कर रही थी । क्योंकि देश का कानून बनाने वाले इन्ही लोगों ने ऐसा क़ानून बनाया है की अपने को सर्व शक्तिमान और जनता को मातृ वोट का अधिकार पकड़ाकर कमजोर और असहाय बना डाला है । वे जो करे वह सब सही और जायज , उन पर कोई ऊँगली उठाना वाला नही और रोकने वाला नही । जनता को जनार्दन कहकर और उसके सामने ही सब कुछ काला और बस काला किया जा रहा है और चुनाव की दुहाई देकर चुनाव आने तक जो मनमर्जी आए किया जा रहा है । बस एक बार जनता से लायसेंस प्राप्त कर आने वाले ५ सालों तक मनमर्जी की मालिक हो गए । फिर वह जनता जिसने उसे चुना है वह मरे या सड़े पलटकर चुनाव तक देखने की जरूरत ही नही । ज्यादा होगा तो आने वाले चुनाव मैं जनता को प्रलोभन देकर और साम , दाम दंड भेद किसी भी प्रकार के नीति अपनाकर चुनाव को अपने पक्ष मैं कर लेंगे ।
जनता भी हालात से मजबूर है । वह भी कुछ कर नही सकती है । वह भी पार्टी द्वारा थोपे गए प्रतिनिधियों को चुनकर उन्हें आने वाले ५ वर्षों तक झेलने हेतु मजबूर हैं । मजबूर ये हालात हर कही है , अब जनता किससे कहे ? क्योंकि वोट रुपी अधिकार के अलावा उसके हाथ मैं कुछ भी नही है , जिसका प्रयोग कर वह नेताओं को चुन तो सकती है किंतु हटा नही सकती है ।

शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

जिस डाली मैं बैठे है उसे ही काट रहे हैं !

सत्ता हथियाने का कैसा कलुषित खेल देश मैं खेला जा रहा है , सभी राजनेता और राजनैतिक दल अपने अपने नफे नुक्सान के हिसाब से इस खेल मैं अपनी भागीदारी कर रहा है । नियमों और मर्यादायों की सभी सीमाओं को लाँघ कर सत्ता प्राप्ति का और सरकार गिराने का हर सम्भव खेल खेला जा रहा है । इस समय कोई अपराधी , नही कोई विरोधी नही , अपने अपने सहूलियत से एक दूसरे से हाथ मिलाने और गले मिलने को तैयार है । जो कल तक घोर विरोधी था वह दोस्त बन गया है और जो दोस्त था वह दुश्मन हो गया है । एक दूसरे पर ऐसे आरोप भी लगाए जा रहे है की पैसे से या फिर पद के लालच मैं बिकने और खरीदने को तैयार है । देश के ऐसे राजनैतिक परिद्रश्य पर संभवतः २२ जुलाई के बाद ही विराम लग सकेगा । तब तक हमें रेडियो और टीवी के माध्यम से देखने और सुनने को और अखबार के माध्यम से पढने को यह सब मिलता रहेगा । तब तक आम आदमी और उसकी समस्यायें , देश और उसके महत्वपूर्ण मुद्दे और निर्णय हासिये पर जाते रहेंगे ।
देश मैं मचे राजनैतिक घमाशान से जन्हा लोगों की राजनीति से दूरियां बढ़ रही है वन्ही लोकतंत्र के साथ हो रहे इस घिनोने मजाक से लोगों का लोकतंत्र से विश्वाश उठने लगा है । लोकतंत्र के नाम पर पहले भी लोगों की भागीदारी सिर्फ़ वोट डालने तक सीमित थी , किंतु अब लोग अब इस पुनीत कार्य से भी कतराने लगे हैं । बमुश्किल ५० फीसदी से भी कम लोगों की चुनाव मैं भागीदारी रहती थी , किंतु ऐसी स्थिति मैं तो लोगों के रुझान मैं और कमी आएगी । आम जन अपने चुने हुए प्रतिनिधि के वादा खिलाफी और स्वार्थसिद्धि हेतु किए जाने वाले कारनामे से दुखित और निराश हैं ।
अतः राजनेता और राजनैतिक दल अपने हाथ से अपने पैरों मैं ख़ुद कुल्हाडी मारने का काम कर रहे हैं । वे लोकतंत्र रुपी जिस डाली मैं बैठे हैं उसे ही काटने को तुले हैं । जब लोगों का राजनेता और राजनैतिक दलों पर से विश्वाश उठने लगेगा तो लोगों का लोकतंत्र के प्रति रुझान मैं स्वतः ही कमी आने लगेगी । और जब लोग ही चुनाव मैं वोट डालने ही नही जायेंगे फिर लोकतंत्र तो खतरे मैं पड़ेगा ही , और जब लोकतंत्र खतरे मैं होगा तो फिर कान्हा राजनेता और कान्हा राजनैतिक दल सुरक्षित रहेंगे ।
यदि राजनेता और राजनैतिक दलों का ऐसा ही आचरण और आलम रहा तो एक दिन उनका अस्तित्व ही खतरे मैं आ जायेगा । अतः आवश्यकता है लोकतंत्र के प्रति लोगों के घटते विश्वाश को बचाने की , राज नेता और राजनैतिक दलों को अपने आचरण और कार्यों मैं सुधार कर खतरे मैं पड़ते अपने अस्तित्व को बचाने की । तभी देश मैं स्वस्थ्य लोकतंत्र के परचम को फिर से लहराया जा सकेगा ।