कभी तो करना होगा विदा
एक दिन ए #आसमां।
एक दिन ए #आसमां।
माना कि कई दिवसों से
अपने आंचल #मेघ में
जिनको रखा था छुपा ,
#बारिश की बारात में
करना पड़ेगा विदा
एक दिन तो आसमां ।
किरणों के स्नेह वश
चल पड़ी थी साथ
अथाह जल राशि
छोड़ अपनी धरा ,
लेकर ताप
सूर्य किरण का
मिल रहे थे इस धरा से
जब तुम ए आसमां ।
पार कर हद अपनी
आई चलकर
बूंद बूंद तुम तक
लेकर रूप हवा ,
समा लिया
इनको समेटकर
मेघ से अपने आंचल में
तुमने ए आसमां ।
बिजली की दे दो चपलता
और मेघ की गर्जना
सितारों की दे दो चमक
और चांद की शीतलता ,
बूंदों को उपहार की
देकर यह श्रृंखला
करने फिर से धरा तृप्त
कर दो विदा ए आसमां ।
कब तक संभाल रखोगे
जल बूंदों का कारवां
कभी तो करना होगा विदा
एक दिन ए आसमां।
**"दीपक कुमार भानरे" **