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सोमवार, 26 दिसंबर 2022

अब #सहन न कर !

 


#दुष्टों की छाती पर चढ़,
टूट पड़ बनकर कहर ,
अब #सहन ना कर ,
कोई तो रूप धर ।

उठा हाथ में खप्पर ,
मां #दुर्गा बनकर ,
ऐसा चला अपना त्रिशूल,
दुष्टों की छाती पर जाये उतर।

#अहिल्या बाई होलकर ,
या #झांसी की रानी बनकर,
उठा हाथ में तलवार ,
दुश्मन का कर प्रतिकार ।

#आत्मरक्षा के गुण से संवार ,
अस्त्र शस्त्र से कर श्रृंगार ,
#वीरांगना का ऐसा रूप धर ,
कि दुष्ट कांपे थर थर ।

#दुष्टों की छाती पर चढ़,
टूट पड़ बनकर कहर ,
अब सहन ना कर ,
कोई तो रूप धर ।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

निभा अपना वही असली #किरदार !

 

इमेज गूगल साभार 


#दर्पण में देख चेहरा निखारते,

बालों को बार बार कंघी से संवारते ,

किसी शख्सियत की ले शक्ल उधार,

मिलाते उससे अपनी बार बार ।


देता नहीं दर्पण किसी को दगा,

दिखाता वैसा ही जो जैसा था ,

फिर करे कितना ही दर्पण साफ ,

दिखेगा वही जो वास्तव में हो आप ।


देखकर दर्पण हर शख्स यहां ,

छुपाता है दाग और झुर्रियों के निशां,

न दिखे शक्ल पर उम्र का पहरा ,

जामाता है चेहरे पर कई रंगों डेरा । 


सामने दर्पण के कभी खुद को रख ,

अपनी असलियत को जरा परख ,

निभा अपना वही असली #किरदार ,

जैसा  तुझे ईश्वर ने बनाया है यार ।

                  "दीप"क कुमार भानरे#

शनिवार, 3 दिसंबर 2022

चलूं जहां मैं #पांव पांव ।


वो अपनी गली और अपना गांव ।

चलूं  जहां  मैं #पांव पांव ।


गुजरूं मैं गली से तो धूल लगे ,

गर्मी में चटक दोऊ पैर जले ,

बारिश के कीचड़ में सने पांव ।....


जमीं पर बिखरे बेर समेटू ,

अमरूद पर मैं उछल कर पहचूं,

पाने लगाऊं हर एक दांव । ....


मूंगफली जमीं से लूं मैं उखाड़ ,

तोड़ूं चने की मैं खेत से डार,

भूनूं  मैं इनको जला अलाव । ....


धार नदी की पैर से रोकूं,

अंजुली में मछली लाने सोचूं ,

गोरे हो गये भीगे भीगे पांव ।....


पंछी के दल जहां शोर मचायें,

काम से थककर जहां सुस्तायें ,

पेड़ों की ऐसी ठंडी ठंडी छांव ।....


भागदौड़ की ऐसी आंधी आई ,

सब अठखेलियां हुई पराई ,

सपना हुई ऐसी चाहत की नाव । ....


वो अपनी गली और अपना गांव ।

चलूं  जहां मैं पांव पांव ।

बहती नदी मध्य एक #पत्थर !

ढूंढते हैं #पेड़ों की छांव , पंछी , #नदियां और तालाब ठंडी ठंडी हवा का बहाव , आसमां का जहां #धरती पर झुकाव । बहती नदी मध्य एक #पत्थर , बैठ गय...