वो अपनी गली और अपना गांव ।
चलूं जहां मैं #पांव पांव ।
गुजरूं मैं गली से तो धूल लगे ,
गर्मी में चटक दोऊ पैर जले ,
बारिश के कीचड़ में सने पांव ।....
जमीं पर बिखरे बेर समेटू ,
अमरूद पर मैं उछल कर पहचूं,
पाने लगाऊं हर एक दांव । ....
मूंगफली जमीं से लूं मैं उखाड़ ,
तोड़ूं चने की मैं खेत से डार,
भूनूं मैं इनको जला अलाव । ....
धार नदी की पैर से रोकूं,
अंजुली में मछली लाने सोचूं ,
गोरे हो गये भीगे भीगे पांव ।....
पंछी के दल जहां शोर मचायें,
काम से थककर जहां सुस्तायें ,
पेड़ों की ऐसी ठंडी ठंडी छांव ।....
भागदौड़ की ऐसी आंधी आई ,
सब अठखेलियां हुई पराई ,
सपना हुई ऐसी चाहत की नाव । ....
वो अपनी गली और अपना गांव ।
चलूं जहां मैं पांव पांव ।
अप्रतिम सृजन
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज सर,
जवाब देंहटाएंआपकी अप्रतिम प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
सादर ।
Old memories are just like Gems :-) Beautiful :-)
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