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शुक्रवार, 29 जून 2018

खुलकर# बरसने# दो इस बारा# !

खुलकर# बरसने# दो इस बारा# !

चुभती गर्मी से पाने को छुटकारा , फिर सबने बारिश को है पुकारा ।
जब आया शीतल बारिश का फुहारा , नाच उठा खुशि से जग सारा ।
कुछ ही दिन था खुशियों का खुमारा ,बारिश लगने लगी अब नगवारा ।
चारो और जब फैला कीचड़ सारा , फिसलन ने जब तब खेल बिगाड़ा ।
बस भीग भीग कर इंसा हारा , हर बार सोचा कि अब न भीगूंगा दुबारा ।
खेलकूद और काम भी गया मारा, घर में रहने को मजबूर इंसा बेचारा ।
बारिश जल्द लगने लगी आवारा , कोस कोस हो रहा अब दिन गुजारा ।
न तृप्त धरती न तृप्त जग सारा ,इतने जल्दी बारिश से न करो किनारा ।
बारिश तो अमृत जीवन  धारा , यही तो सृष्टि के सब जीवों का सहारा ।
खुलकर बरसने दो इस बारा , तरबतर हो जाये हर कोना और किनारा ।

शनिवार, 16 जून 2018

कहता# नहीं मुंह# पर ........!

कहता# नहीं मुंह# पर ........!

 कितने फरेब पाल रखे है इंसा ,
पर कोशिश होती है सच की तरह दिखाने की ।

कोई समझ न पायेगा सोचता है इंसा ,
खुश होता है सोचकर नादानियां जमाने की ।

खुद तो जिम्मेदारी से दूर भागता है  इंसा ,
दूसरों को तालीम देता है उसूलों को आजमाने की।

खुदा भी रखता हिसाब भूल जाता है इंसा ,
झोंकता रहता है ताउम्र धूल आँखों में जमाने की ।

छोड़ भी दे ऐसी नाकाम कोशिशें ऐ इंसा ,
भागकर अपनी जिम्मेदारी से खुद को भरमाने की ।

क्योंकि इतना नादान नासमझ नही है इंसा ,
कहता नहीं मुंह पर समझता सब चालाकियां जमाने की ।

#आंगन की छत है !

  #आंगन की छत है , #रस्सी की एक डोर, बांध रखी है उसे , किसी कौने की ओर। #नारियल की #नट्टी बंधी और एक पात्र #चौकोर , एक में भरा पानी , एक में...