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शनिवार, 16 जून 2018

कहता# नहीं मुंह# पर ........!

कहता# नहीं मुंह# पर ........!

 कितने फरेब पाल रखे है इंसा ,
पर कोशिश होती है सच की तरह दिखाने की ।

कोई समझ न पायेगा सोचता है इंसा ,
खुश होता है सोचकर नादानियां जमाने की ।

खुद तो जिम्मेदारी से दूर भागता है  इंसा ,
दूसरों को तालीम देता है उसूलों को आजमाने की।

खुदा भी रखता हिसाब भूल जाता है इंसा ,
झोंकता रहता है ताउम्र धूल आँखों में जमाने की ।

छोड़ भी दे ऐसी नाकाम कोशिशें ऐ इंसा ,
भागकर अपनी जिम्मेदारी से खुद को भरमाने की ।

क्योंकि इतना नादान नासमझ नही है इंसा ,
कहता नहीं मुंह पर समझता सब चालाकियां जमाने की ।

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बड़ा ही #विशेष था #शुभ #मुहूर्त (#muhurt) ।

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