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गुरुवार, 20 मई 2021

#महामारी के #कुचक्र में फँसकर कुछ अपनों ने साथ छोड़ा है !


#महामारी के इस दौर ने किसी न किसी अपनों को घेरा है,

जिनके इलाज और दवाओं के लिये कोना कोना टटोला है ।
पर विपरीत परिस्थितियां और बिगड़ी व्यवस्थाओं ने झँझोड़ा है,
स्वार्थी और निर्दयी इन्सानों ने भी कुकृत्यों की सारी हदें तोड़ा है ।
इन झंझावतों से लड़कर कुछ अपनों को मिला नया सबेरा है ,
पर दुर्भाग्य के कुचक्र में फँसकर कुछ अपनों ने साथ छोड़ा है ।
ऐसी बेबसी और लाचारी की अवस्था ने मन को झकझोरा है,
और अच्छा न कर पाने के एक अपराध बोध ने मन को घेरा है।
पर ईश्वर की मर्जी मानकर मन को समझा रहे थोड़ा थोड़ा है ,
तिनका तिनका हौसला जुटाकर बांध सब्र का न तोड़ा है ।
उनके साथ और आशीष बिना ये जीवन अब रहा अधूरा है ।
पर जो साथ है उनको लेकर जीवन सफर तो करना पूरा है ।

मंगलवार, 11 मई 2021

ऐ इंसानी #गिद्ध ! खुद के दलदल से क्या तुम भी बच पाओगे .

 


ऐ इंसानी गिद्ध ! खुद के दलदल से क्या तुम भी बच पाओगे ,

उसी दलदल में कल खुद को या किसी अपने को भी पाओगे।

 

साँसों का सौदा , व्यापार जहर का , मनमानी लूटमार

जिंदा को तो नौच खा रहे  ,    बकशा अंतिम संस्कार ।

ऐसे नौचे हुये रुपयों  के चीथड़ों को क्या घर ले जाओगे ,

बच्चों और परिवार को खून से सने निबाले खिलाओगे ।

 

इस महामारी के दौर में सबकी सांसें अटकी है ,

छोटा बड़ा , अमीर गरीब सब पर तलवार लटकी है ।

फिर तुम किस खेत की मूली है जो तुम या तुम्हारे बच जाएंगे ,

देखना उसी दलदल में कल खुद को या किसी अपने को पाओगे ।

 

वही तुम्हारे जैसे गिद्धों को अपनों पर मँडराते पाओगे ।

जिंदा नोचेंगे वो तुम्हारे अपनों को , पर तुम कुछ न कर पाओगे ।

क्योंकि कल तुम भी इन गिद्धों के कृत्यों में शामिल थे ,

किस मुंह से तुम खून से सने हाथों से अपनों को बचाओगे ।

 

ऐ इंसानी गिद्ध ! खुद के दलदल से क्या तुम भी बच पाओगे ,

उसी दलदल में कल खुद को या किसी अपने को भी पाओगे।

#आंगन की छत है !

  #आंगन की छत है , #रस्सी की एक डोर, बांध रखी है उसे , किसी कौने की ओर। #नारियल की #नट्टी बंधी और एक पात्र #चौकोर , एक में भरा पानी , एक में...