यूँ देखकर हमको क्यूँ किनारा कर लिया ,
मन को बेघर कर क्यूँ
बंजारा कर दिया ,
पलकों से नींदों को
नौ दो ग्यारह कर दिया ,
होठों की हंसी पर
भी एक ताला जड़ दिया ।
सुबह सबेरे मॉर्निंग वॉक में वो आपकी एक झलक ,
ठंडी हवायें और उस
पर आपकी साँसों की महक ,
हमारे तुम्हारे कदमों
के साथ चलती थी एक सड़क ,
राहों को बदलकर शुभ प्रभातों से बेसहारा कर दिया ।
फेसबुक की हर पोस्ट
पर करते थे लाइक ,
सेल्फी भी खींचकर करते थे शेयर डे-नाइट ,
मोबाइल पर चैट की
कुछ कम न थी डाइट ,
यूँ वर्चुअल
सौगातों का क्यूँ बंद खजाना कर दिया ।
जब छत पर सूखे कपड़े
उठाने की होती थी भनक ,
तब पतंगों के साथ
हमारी भी हो जाती थी धमक ,
फिर नभ के उड़ते पंछियों
को निहारती थी चारों पलक ,
पर अचानक डूबते सूरज
सा क्यूँ नजारा कर दिया ।
यूँ देखकर हमको क्यूँ किनारा कर लिया ,
मन को बेघर कर आवारा
कर दिया ,
पलकों से नींदों को
नौ दो ग्यारह कर दिया ,
होठों की हंसी पर
भी एक ताला जड़ दिया ।
***दीप***