#आंगन की छत है ,
#रस्सी की एक डोर,
बांध रखी है उसे ,
किसी कौने की ओर।
#नारियल की #नट्टी बंधी
और एक पात्र #चौकोर ,
एक में भरा पानी ,
एक में #दाना दिया छोड़ ।
कभी भरी #दोपहरी,
तो कभी सांझ या भोर,
चलता है नन्हे मेहमानों का,
#अठखेलियों का दौर ।
कभी मुंह में पानी ,
तो कभी अनाज का कोर,
#चहचहाते हुये सब ,
मचाते है शोर ।
कोमल सा मन है ,
तन भी न कठोर ,
#फुर्र से उड़ जाते हैं,
जब कोई आता उनकी ओर।
आते रहे ऐसे ही ,
नन्हे #मेहमान बतौर,
आओ बांध ले संग,
एक #रिश्ते की डोर ।
Yah sab hai matlab jeewan me sukoon hai :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय , सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंआदरणीय मेम ,
हटाएंमेरी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 अप्रैल 2024 को http://halchalwith5links.blogspot.in पर लिंक करने के लिए बहुत. धन्यवाद! !
सादर ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय , सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय , सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
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