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मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

#आंगन की छत है !

 


#आंगन की छत है ,

#रस्सी की एक डोर,

बांध रखी है उसे ,

किसी कौने की ओर।


#नारियल की #नट्टी बंधी

और एक पात्र #चौकोर ,

एक में भरा पानी ,

एक में #दाना दिया छोड़ ।


कभी भरी #दोपहरी,

तो कभी सांझ या भोर,

चलता है नन्हे मेहमानों का,

#अठखेलियों का दौर ।


कभी मुंह में पानी ,

तो कभी अनाज का कोर,

#चहचहाते हुये सब ,

मचाते है शोर ।


कोमल सा मन है ,

तन भी न कठोर ,

#फुर्र से उड़ जाते हैं,

जब कोई आता उनकी ओर।


आते रहे ऐसे ही ,

नन्हे #मेहमान बतौर,

आओ बांध ले संग,

एक #रिश्ते की डोर ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. Yah sab hai matlab jeewan me sukoon hai :-)

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    उत्तर
    1. आदरणीय , सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय मेम ,
      मेरी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 अप्रैल 2024 को http://halchalwith5links.blogspot.in पर लिंक करने के लिए बहुत. धन्यवाद! !
      सादर ।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. आदरणीय , सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. आदरणीय , सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।

      हटाएं

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