वर्तमान लोकसभा चूनाव के मद्देनजर राजनेताओ और राजनीतिक पार्टी मैं मर्यादाओं , सिद्धांतो , नीतियों और विचार धारों को ताक मैं रखकर दल बदल और दलों के आपस मैं अवसरवादी गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने की जो कबायद चल रही है वह देश और देश के लोगों के सामने लोकतंत्र के साथ होते मजाक और सिद्धांत विहीन अवसरवादी राजनीति का काला चेहरा प्रस्तुत कर रही है । और इसी प्रकार की सिद्धांत विहीन और अवसरवादी कबायद संभवतः चुनाव के बाद और खरीद फरोख्त से सरकार बनने के बाद भी आने वाले पॉँच वर्षों तक भी खींच तान चलती रहेगी । देश और आम जनता यह सब किम कर्तव्य विमूढ़ होकर देखने के लिए मजबूर हो ।
साथ ही सरकार गठन की वर्तमान व्यवस्था मैं इस बात की भी गारंटी नही रहती है की देश के सभी प्रदेश को उनके जनसँख्या के अनुपात मैं आवश्यक भागीदारी सुनिश्चित हो सके ।
तो क्यों न देश मैं राष्ट्रीय सरकार की अवधारणा को अपनाया जाए जो पूरे पाँच साल तक चले और जिसमे किसी दल और व्यक्ति विशेष की विचारधारा और नीतियों के स्थान पर देश सेवा और जन सेवा का स्थान दिया जाए और जिसमे सभी प्रदेशों की निश्चित अनुपात मैं भागीदारी सुनिश्चित हो सके ।
पहले भी राष्ट्रीय सरकार की बात गाहे बगाहे उठती रही है किंतु राष्ट्रीय सरकार की स्पष्ट अवधारणा नही प्रस्तुत की गई । किंतु मैंने एक राष्ट्रीय सरकार का खाका खीचने की कोशिश की है । जो पूरे पाँच साल चले और कुछ इस प्रकार हो सकती है । राष्ट्रीय सरकार का गठन कुछ इस प्रकार किया जाना चाहिए की जिसमे देश के सभी क्षेत्रो को उनकी जनसँख्या के अनुपात मैं बराबर भागीदारी सुनाश्चित हो और जो देश के सभी जन आकाक्षाओं पर खरी उतरे । प्रत्येक प्रदेश से राष्ट्रीय सरकार मैं शामिल होने वाले सदस्यों की संख्या उस प्रदेश की जनसँख्या के अनुपात के आधार पर निर्धारित की जाने चाहिए , ठीक वैसे ही जैसे प्रत्येक प्रदेश की जनसँख्या के अनुपात मैं लोकसभा और राज्यसभा की सीटें निर्धारित है । प्रत्येक प्रदेशों से राष्ट्रीय सरकार मैं उन विजेता उम्मीदवार को लिया जाना चाहिए जिन्होंने उनके निर्वाचन क्षेत्रों की जनसँख्या के अनुपात मैं सर्वाधिक मत प्रतिशत प्राप्त किया हो । इस हेतु निर्वाचन क्षेत्र की जनसँख्या के अनुपात मैं पाये जाने वाले मत प्रतिशत के आधार पर हर प्रदेश की एक मेरिट लिस्ट तैयार किया जाना चाहिए । इस लिस्ट से सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले उतने उम्मीदवार को सरकार मैं शामिल किया जाना चाहिए जितनी की राष्ट्रीय सरकार हेतु उस प्रदेश की जनसख्या के अनुपात मैं संख्या निर्धारित हो । इस चयन पर इस बात का ध्यान नही दिया जाना चाहिए चुने गए सदस्यों की पार्टी क्या है। इससे एक लाभ यह होगा की राष्ट्रीय सरकार मैं हर प्रदेशों व सभी विचारों और व मतों का समर्थन करने वाले प्रतिनिधियों का एक निश्चित और आवश्यक अनुपात मैं होगा। प्रधानमन्त्री का चुनाव भी सीधे जनता द्वारा किया जाना चाहिए , जिससे प्रधानमन्त्री पद के लिए होने वाली खींच तान को भी विराम दिया जा सकेगा । इस प्रकार यह एकता मैं अनेकता की अनूठी मिशल होगी और प्रत्येक प्रदेश की जनसँख्या के अनुपात मैं बाजिब भागीदारी भी सुनाश्चित हो सकेगी । इस प्रकार चयनित प्रतिनिधियों मैं से उनकी वरिस्थाता , योग्यता और अनुभव के आधार पर मंत्री पदों और विभागों का आबंटन किया जाना चाहिए । यह सभी कार्य राष्ट्रपति और न्यायपालिका की निगरानी मैं किया जाना चाहिए । इनके द्वारा ही एक राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारण और समीक्षा समिति का गठन किया जाना चाहिए जिसमे सभी वर्गों और साहित्य , विज्ञानं , कला , कृषि , शिक्षा , न्याय , चिकित्षा , सामाजिक , आर्थिक क्षेत्र मैं उल्लेखनीय कार्यों और सफलता प्राप्त करने वाले बुद्धिजीवी लोगों को शामिल किया जाना चाहिए , जो हर क्षेत्र का समान रूप से ध्यान रखते हुए देश के सामाजिक , आर्थिक , भौगोलिक परिस्थिति और लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियां बनाकर राष्ट्रीय सरकार हेतु एक पञ्च वर्षीया लक्ष्य तैयार करेगी और उसे सभी चयनित जनप्रतिनिधियों की बैठक बुलाकर उसे अनुमोदित कराएगी । यह समिति हर छः माह मैं सरकार और चुने हुए प्रतिनिधियों के निर्धारित लक्ष्य अनुरूप कार्यों और उपलब्धि की समीक्षा कर देश की जनता के सामने रखेगी और मार्गदर्शन भी प्रदान करेगी , और उस आधार पर मंत्री और प्रतिनिधियों की सरकार मैं भागीदारी सुनिश्चित करेगी । यदि कोई मंत्री और प्रतिनिधि अपने दायित्वों और कार्यों के निर्बहन मैं संतोषप्रद उपलब्धि नही देता है तो उसे हटाकर उसके प्रदेश के मेरिट लिस्ट मैं उसके बाद वाले प्रतिनिधि को कार्य करने का अवसर दिया जायेगा । राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारण और समीक्षा समिति इस तरह से संसद और सरकार के प्रतिनिधियों के कार्यों का पूरे पाँच वर्षों तक समीक्षा कर पूरे पाँच वर्ष तक चलाने का दायित्व निभाएगी । पॉँच वर्ष पश्चात् ही देश की सरकार और संसद भंग होकर देश के लोगों के सामने आगामी सरकार और संसद के गठन हेतु चुनाव कराया जाना चाहिए ।
आशा है इस प्रकार राष्ट्रीय सरकार की अवधारणा अपनाने से देश के लोगों को भारीभरकम खर्च वाले बार बार होने वाले चुनाव से मुक्ति मिलेगी और सरकार बनाने हेतु सिद्धांत विहीन मची खींचतान और खरीद फरोख्त से और दल बदल से निजात मिलेगी । पाँच वर्षों तक बिना किसी राजनीतिक खींचतान के देश के विकास को निर्बाध रूप से नया आयाम मिलेगा ।
रास्ट्रीय सरकार की परि-कल्पना अच्छी है, लेकिन कुछ बिंदु मेरी सोच में ये हैं:
जवाब देंहटाएं1. आपने जो अवधारणा रखी है, उसमे प्रधान मंत्री सीधा जनता द्वारा चुना जाये. यानी आप अमेरिकन पधति की बात कर रहें हैं . इस के अपने लाभ या नुक्सान हैं, मैं इस के पक्ष में या विरोध में - भारत के सन्दर्भ में- अभी कुछ नहीं कह सकता, लेकिन यदि आपके मॉडल को लिया जाये, तो - मेरे ख्याल से - फिर प्रधान मंत्री अपने कैबिनेट को स्वयं ही क्यों न बनाये (वह किसी को भी अपना मंत्री बना सकता है, जरुरी नहीं की सांसदों को ही लिया जाये). वास्तव में , सांसद संसद में बैठ कर कानून बनायें. यही उनका असली काम भी तो है.
संक्षेप में, आप की अवधारणा को आगे बढाते हुए मैं अमेरिकी प्presidnetial system को पूरे तोर पर लेने की बात करूंगा. चुने हुए सांसद मंत्री बने या नहीं, प्रधान मंत्री पर छोड़ा जाये. इस से पी ऍम एक्सपर्ट लोगों को अपने मंत्री मंडल में स्थान दे पाएंगे.
२. आपका मॉडल को लागू करने में संविधान का संशोधन करना होगा. तो इस समय इस मॉडल को लागू करने में हमारे चुने हुए नेता बैठ कर - अपनी राजनीती सोच से ऊपर उठ कर, रास्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर- इस निर्णय को लें. प्रैक्टिकल लेवल पर यह मुश्किल लगता है.
तीन काम हो जायें :-१-मतदान अनिवार्य हो, २-प्रधानमन्त्री का चुनाव सीधे हो, ३- राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर जनमत संग्रह हो. लेखन शैली आपकी बहुत सुन्दर है, इसमें कोई दोराय नहीं.
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