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गुरुवार, 27 नवंबर 2008

शोक ! शोक !! शोक !!!


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सीमा गुप्ता जी और रामपुरिया जी के ब्लॉग से
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शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

ओवामा की जीत - भारत मैं भी एक युवा नेत्रत्व की आस !

४७ वर्षीया ओवामा की जीत ने हम भारतीया लोगों मैं भी एक तमन्ना और एक विशवास जगा दिया है की आज नही तो कल युवा नेत्रत्व के हाथों मैं भारत की कमान आएगी । इन बुढे और निढाल हो चुके बुजुर्ग नेत्रत्व से देश को जरूर मुक्ति मिलेगी । जिनमे मानसिक रूप से न तो इतना जोश और उर्जा होती है की कोई साहसिक फ़ैसला ले सके और न ही इतना शारीरिक बल होता है की दिन रात एक कर देश की हर छोटी बड़ी समस्या को सुलझा सके । बस होता है तो जीवन का लंबा अनुभव जो की बदलते परिवेश के साथ अपनी प्रासंगिकता खोता जाता । साथ ही उनसे परम्परा से हटकर कुछ नया सोचने की उम्मीद भी नही की जा सकती है । संभवतः यही कारण है की देश मैं आज समस्याओं और परेशानियों का अम्बार लगा हुआ है और जिनका कोई सार्थक और प्रभावकारी हल नही निकल पा रहा है । आज देश मैं समस्यायें ज्यों की त्यों बनी हुई है । और उनमे सुधार होने की बजाय स्थिती दिनों दिन बिगड़ती जा रही है । चाहे मंहगाई की बात करें या आर्थिक मंदी की बात , बाह्य आतंकवाद की बात करें या व्यवस्था के ख़िलाफ़ उभरे असंतोष से उपजे नक्सलवाद की । देश मैं फैली प्रशसनिक अव्यवस्था की बात करें या सामाजिक अव्यवस्था की या फिर अन्य कई समस्यायों की ।
हर मामले मैं अब देश का बुजुर्ग होता नेत्रत्व अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है । देश के सदन की बात करें या फिर किसी महत्वपूर्ण सेमीनार या जन आयोजन की या फिर प्रदेशों के विधानमंडलों की सभाओं की जन्हा देश प्रदेश और जन हित के मुद्दों पर गंभीर चिंतन मनन करना होता है कई जन नायक सोते हुए अथवा लंबे जीवन की थकान से बोझिल होते पाये जाते हैं । शारीरिक अस्वस्थता एवं अक्षमता और ढलती उम्र पूर्ण उर्जा और जोश के साथ लंबे समय तक कार्य करने मैं बाधक बनती है परिणामतः वाँछित और उचित परिणाम समय पर मिल सकने मैं विलंब होता है ।।
अतः देश को भी दरकार है ओवामा जैसे उर्जावान , साहसिक और दृढ संकल्पी प्रवृत्ति के युवा नेत्रत्व की । जो देश के लिए कुछ नया और अच्छा सोचे । जो वोट बैंक और तुष्टिकरण की नीति और राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचे । जो सपना देखे एक नए और युवा , सम्रद्ध और विकसित भारत की और उस सपना को सच करने मैं दृढ शारीरिक और मानसिक क्षमता के साथ देश के युवाओं को साथ लेकर और बुजुर्गों के अनुभव से मार्गदर्शन लेकर दिन रात महनत कर सके ।
अब यह युवा नेत्रत्व का सपना जो देश की उतरोतर प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगा , ओवामा की जीत ने भारत क्या विश्व के लोगों मैं यह उम्मीद और आशा की किरण जगा दी है जो आज नही तो कल जरूर पूरी होगी ।

बुधवार, 5 नवंबर 2008

क्रेअटिविटी या वल्गारिटी !

कहते हैं की खाली दिमाग शैतान का घर होता है । अतः खाली बैठने और खाली दिमाग रखने की अपेक्षा इंसान को कुछ सकारात्मक कार्य करते रहना चाहिए , जिससे इंसान का स्वयं का तो हित तो जुडा हुआ है साथ ही समाज का भी हित जुडा है । इंसान के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्य से एक तो इंसान का मन और ध्यान इधर उधर ग़लत कामों की और नही भटकता है जिससे समाज मैं शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है ।
किंतु आज के समय मैं समाज के कुछ लोगों के द्वारा क्रेअटिविटी अर्थात सृजनात्मकता के नाम पर जो प्रदर्शन और कार्य किए जा रहे हैं , क्रेअटिविटी और रचनात्मकता के नाम पर आज समाज के सामने जो परोसा जा रहा है , कला और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर जो अभिव्यक्ति हो रही है उसे क्रेअटिविटी कहें या वल्गारिटी ।

कोई कला प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और विवादस्पद चित्र बनाकर लोगों की भावना और आस्था से खिलवाड़ कर अपने को महान चित्रकार कहलवाने की कोशिश कर रहा है । कोई लोगों के मनोरंजन और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर फूहड़ और भद्दा मजाक और कामेडी कर रहा है । कोई कला और नृत्य प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और भद्दे नृत्यों का प्रदर्शन कर रहा है । यंहा तक की बच्चों से भी बडो जैसी बातें और उनके भद्दे प्रदर्शन की अपेक्षा और आशा की जा रही है और उसे बढ़ाव दिया जा रहा है । सभ्य और जेंटल मेन कहे जाने वाले लोग भी ऐसे प्रदर्शन मैं पीछे नही है । फिल्मों मैं मनोरंजन और कला प्रदर्शन के नाम पर तो वल्गारिटी और अश्लीलता का प्रदर्शन चरम पर है । अब इसी का प्रभाव यह हो रहा है की सामजिक आयोजनों मैं भी इस तरह से वल्गर और फूहड़ प्रदर्शन होने लगे हैं । स्कूल और कॉलेज के उत्सव समारोह मैं भी मूल और मौलिक कला अभिव्यक्ति के स्थान पर फिल्मो और टीवी से प्रेरित फूहड़ और वल्गर प्रदर्शन हो रहें है ।

अब यह तो कहना मुश्किल है की क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी के प्रदर्शन का यह सिलसिला कान्हा आकर रुकेगा । किंतु यह अत्यन्त चिंता का विषय है । अतः ऐसे प्रदर्शन जिसमे क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी और फूहड़ प्रदर्शन हो रहा है जिसमे की मौलिकता और स्वाभाविक अभिव्यक्ति का अभाव होता है और समाज के लोग खासकर नई पीढी का शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होने की बजाय भटकाव , अशांत मन और नकारात्मक सोच की और प्रेरित हो रही है को हतोस्साहित किया जाना चाहिए है ।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

शासकीय संस्थाओं की उपेक्षा करते जनप्रतिनिधि !

देश मैं जन कल्याण कारी योजनाओं के तहत देश के नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं उनके हितों के मद्देनजर विभिन्न शासकीय संस्थाओं की स्थापना की जाती है । इन्ही संस्थाओं के माध्यम से देश का कोई भी नागरिक सेवा और शासकीय सुबिधाओं को पा सकता है । जैसे की यदि देश के नागरिक अर्थात जनता के स्वास्थ्य सुबिधाओं , शिक्षा , आवागमन के साधन की सुबिधा , खाद्यान वितरण की सुबिधा एवं अन्य शासकीय सुबिधाओं हेतु शासकीय संस्थाओं की स्थापना की जाती है ।
आज इन स्थापित संस्थाओं जिनके ऊपर जनता के कल्याण और हितों की जिम्मेदारी है उनकी सेवाओ की गुणवत्ता दिनों दिन गिरती जा रही है और उन संस्थाओं मैं दिनों दिन अव्यवस्थाओं का आलम बढ़ता जा रहा है । पात्र और जरूरत मंद लोगों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और सेवाओ का लाभ पहुच नही पा रहा है । इन सेवाओ को जनता तक पहुचाना का जिम्मा लाल फीताशाही धारी अफसरों और कर्मचारियों के जिम्मे छोड़ दिया जाता है । और जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि जो हर चुनाव मैं ख़ुद को जनता के सेवक कहते नही थकते और उनके हर सुख सुबिधाओं का ख़याल करने का वादा करते हैं वे ही इन संस्थाओं की अव्यवस्थाओं से आँख मूंदे रहते हैं ।
क्या कभी ये जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि स्वयम और स्वयम के परिवार के सदस्यों को इन शासकीय संस्थाओं मैं सेवा लेने हेतु भेजते हैं । क्या वे कभी शासकीय चिकित्सालयों अपना इलाज़ करने हेतु जाते हैं ? क्या अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों मैं शिक्षा ग्रहण करने हेतु भेजते हैं ? क्या वे स्वयं शासकीय खाद्यान वितरण संस्थाओं से खाद्यान प्राप्त करते हैं या फिर कभी जनता के लिए उपलब्ध आवागमन के साधन मैं यात्रा करने की कोशिस करते हैं ? क्या और भी अन्य सुबिधायें अपनी पात्रता अनुसार शासकीय संस्थाओं से प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं । बमुश्किल ही इसका जवाव हाँ मैं होगा । और तो और मातहत अधिकारी भी इन बातों बमुश्किल ही का अनुसरण करते होंगे । ये व्ही व्ही आई पी कहलाने वाले लोग जो ख़ुद को तो जनता का सेवक कहते है स्वयम और परिवार को आम जनता से दूर रखकर ख़ुद को श्रेष्ट साबित करने की चेष्टा करते हैं ।
इन सबकी इतर इन शासकीय संस्थाओं से अपने प्रभाव का प्रयोग कर नाजायज लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते अवश्य ही नजर आयेंगे । स्वयं के बच्चों को बड़े और महेंगे निजी संस्थाओं मैं शिक्षा दिलाएंगे । निजी चिकित्षा संस्थाओं से स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करेंगे । अधिक से अधिक सुबिधाओं को वे महेंगे और निजी संस्थाओं से लेने का प्रयत्न करते हैं ।
जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि एवं सरकारी अधिकारी के इस प्रकार उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के कारण ही शासकीय संस्थाओं की सेवाओ का गुणवत्ता का स्तर गिरते जा रहा है और दिनों दिन अव्यवस्था का आलम बढ़ते जा रहा है । उनके द्वारा खानापूर्ति के नाम पर कभी कभार ही इन संस्थाओं का औचक निरिक्षण किया जाता है ।
अतः यदि जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि एवं सरकारी अधिकारी शासकीय संस्थाओं के प्रति इस प्रकार उपेक्षा पूर्ण व्यवहार को त्याग कर उन्हें अपनाने का प्रयास करेंगे तो जरूर ही इन संस्थाओं की सेवाओ की गुणवत्ता और अव्यवस्थाओं के आलम मैं सुधार आएगा और जनता को उनके हितों और हको का बाजिब लाभ मिल सकेगा ।

सोमवार, 3 नवंबर 2008

कहाँ गए महिला हितों के हिमायती संगठन .

देश मैं जब भी कोई महिला पर अत्याचार या प्रताड़ना की घटना सामने आती है तो देश के कई महिला हितों की हिमायती संघटन उनके समर्थन सामने आते हैं । और जगह जगह विभिन्न प्रकार से महिलाओं की हितों की रक्षा के सन्दर्भ मैं सड़कों पर जुलुश और धरनों के माध्यम और अन्य प्रदर्शनों के माध्यम से सरकार , प्रशासन और देश के लोगों के सामने अपनी बात रखते हैं । किंतु माले गाँव धमाके के सिलसिले मैं महाराष्ट्र की कांग्रेसी सरकार की पुलिस एटीएस द्वारा कथित प्रग्या ठाकुर के मामले अभी तक कोई महिला हितों के तथाकथित हिमायती संघठन सामने नही आए हैं । जबकि उसके ख़िलाफ़ अभी तक कोई ठोस सबूत पुलिस एटीएस को नही मिले हैं । और तो और जो नार्को टैस्ट और ब्रेन मैपिंग कराया गया उसमे भी बम धमाके मैं शामिल होने के कोई ठोस प्रमाण नही मिले हैं । आख़िर क्यों आज एक महिला को देश मैं इस तरह आरोपित होकर प्रताडित और अपमानित होना पड़ रहा है ।
संभवतः इसलिए की उसका सम्बन्ध किसी अल्प संख्यक अथवा नॉन हिंदू वर्ग से नही है । शायद इसलिए की वह एक बहुसंक्यक समुदाय से हैं । प्रायः देखने मैं यह आ रहा है वोट बैंक के लालच मैं राजनीति दल और राजनेता एवं थोथी प्रसद्धि और टी आर पि बढ़ाने की होड़ एवं छदम धर्मं निरपेक्षता की आड़ मैं बहुसंख्यक समुदाय को ही कटघरे मैं खड़ा करने की कोशिश की जाती है । दूसरे समुदाय के दुःख दर्द और किसी दुर्घटना पर तो देश मैं हाय तौबा मचने लगती है किंतु जब बहुसंक्यक समुदाय की बात आती है तो उससे आँख मूंदने और उससे नजरें चुराने की कोशिश की जाती है ।
और ऐसा ही अब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के मामले मैं हो रहा है । जब नार्को टैस्ट और ब्रेन मैपिंग मैं महाराष्ट्र एटीएस को कोई प्रमाण नही मिले तो मीडिया उस पर सम्मोहन विद्या की आड़ के बहाने उसे दोषी साबित करने मैं तुले हुए हैं । मीडिया और देश के तथाकथित अति आधुनिक लोग जो भारतीय पुरातन ज्ञान , योग विज्ञानं और सम्मोहन विद्या जैसे बातों को आधुनिक विज्ञानं के सामने बकबास कहा जाता था आज उसी का सहारा लेकर अपने को सच और अपनी ज्यादती को सही ठहराने की कोशिश की जा रही है । आज वही भारतीय ज्ञान और विज्ञानं की शरण मैं आकर अपनी हर बात को जायज ठहराने की कोशिश हो रही है । एक महिला साध्वी के साथ इतना सब होने के बाद भी आज देश के महिला हितों के हिमायती एक भी संघठन सामने नही आ रहा है । जो की आश्चर्य और बड़े खेद की बात है । आख़िर कहाँ गए महिला हितों के हिमायती संगठन ?

बहती नदी मध्य एक #पत्थर !

ढूंढते हैं #पेड़ों की छांव , पंछी , #नदियां और तालाब ठंडी ठंडी हवा का बहाव , आसमां का जहां #धरती पर झुकाव । बहती नदी मध्य एक #पत्थर , बैठ गय...