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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई के लिए खूब खाते कसमे : वक्त आने पर ख़ुद ही मुंह चुराते .

देश मैं हाल ही मैं घटी दो घटना तो यही बयां कराती है । एक घटना जिसमे सरकार के एक मंत्री अंतुले राजनीतिक महत्व्कांचा के चलते ऐ टी अस प्रमुख की शहादत पर विवादस्पद बयानबाजी कर रहें है और सरकार और ख़ुद की आतंकवाद के प्रति लड़ने की मंशा पर प्रश्नचिंह लगा कर इस लड़ाई को कमजोर कर रहें हैं । वन्ही दूसरी घटना जिसमे देश के व्ही आई पी खिलाडी जहीर चेन्नई मैं स्वयम सुरक्षा के लिए की गई सुरक्षा जाँच को धता बता कर जांच एजेन्सी और जवानों के मनोबल को गिरा रहें हैं । यह तो रही देश के व्ही आई पी और ख्यातनाम जिम्मेदार लोगों की बात । लगभग यही हाल देश के अधिकाँश लोगों का भी है । टीवी स्क्रीन पर , समाचार पत्रों और विभिन्न मंचो पर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई की कसमे खाते नही अघाते हैं किंतु जब सहयोग और कुछ करने की बारी आती है तो बगल झाँकने लगते हैं और जरा असुबिधा और जांच अपमानजनक और परेशानी वाली लगती है । आमजन भी सड़कों पर मोमबत्ती जलाकर तो कही हस्ताक्षर अभियान चलाकर तो कंही मानव श्रृंख्ला बनाकर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने की प्रतिज्ञा करते हैं किंतु जिम्मेदारी निभाने का वक़्त आने पर अधिकाँश लोग बचने की कोशिश करते नजर आते हैं ।
ऐसे मैं आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ने की बात सिर्फ़ मुह्जवानी , प्रदर्शन और सरकार और प्रशासन की फाइलों तक सीमित और सिमट कर रह जाने से इनकार नही किया जा सकता है । फिर कौन लडेगा आतंकवाद की लड़ाई । क्या हम नही हमारे पड़ोस वाला , या फिर कोई और । क्या कोई मसीहा , या फिर कोई दिव्यशक्ति या फिर कोई अवतार । शायद सभी लोग इसी बात का इंतज़ार और आशा कर रहे हैं की काश कोई आता और देश को और हमें हमारी परेशानियों और मुसीबतों से निजात और छुटकारा दिलाता ।
क्या तू चल मैं आया वाली तर्ज़ पर आतंकवाद के विरुद्ध सही और सकारात्मक लड़ाई लड़ी जा सकती है । कहा जाता है की हिम्मते मर्दा मदद ऐ खुदा । अतः जरूरत है की इस आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई मैं सभी अपनी क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार अपनी जिम्मेदारी निभाने का और व्यवस्थाओं मैं सहयोग करने का प्रयास करें । तभी हम आतंकवाद के विरुद्ध एक सही लड़ाई को अंजाम दे सकेंगे ।

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

पैरों की जूती की किस्मत भी चमकती है .

अब यह बात बेमानी हो गई है की पैरों के जूतों की किस्मत और कीमत भी बदलती है । अब पैरों मैं पहने जाने वाली जूती या जूतों के दिन फिर सकते है बस जरूरत होती है उसे एक अदद सहारे अथवा ऐसे माध्यम की जो उसे पैरों से उठाकर सर मैं बिठाने मैं मदद करे । अब देखों न उस पत्रकार बंधू के जूतों की किस्मत जिसने कभी सोचा भी नही होगा की आज उसकी इतनी कीमत बढेगी और इतनी प्रसद्धि मिलेगी । नही तो उसे कौन जानता उसे , सभी साधारण जूतों की तरह वह भी एक गुमनाम जिन्दगी जीकर अपने को ख़त्म कर लेता , किंतु भला हो उस पत्रकार बंधू का जिस के अदम्य साहस और आक्रोश का जिसने आज उस जूते की जिन्दगी बदल दी । आज उसकी कीमत करोड़ों और अरबों मैं हो गई है । पूरे विश्व मैं आज उन जूतों के दीवानों और कदरदानों की भारी तादाद बढ़ गई है ।
जूतों को अपने आक्रोश व्यक्त करने और नाराजगी व्यक्त करने के हथियार के रूप मैं कब से प्रयोग शुरू हुआ यह शोध का विषय हो सकता है । किंतु यह कहा जा सकता है की हमारे देश मैं इसका आक्रोश व्यक्त करने के हथियार के रूप मैं प्रयोग लंबे समय से चला आ रहा है । छोटे छोटे लड़ाई झगडे और गली मोहल्ले के लड़ाई झगडे मैं इसका प्रमुखता से घातक हथियार के रूप मैं प्रयोग किया जाता रहा है । अब तो इसका प्रयोग बड़े बड़े और ख्यातनाम लोग करने लगे है । अब तो इसका प्रयोग हमारे देश के ख्यातनाम राजनेता भी करने से नही कतरा रहे हैं ।
इन सब घटनाओं के परिप्रेक्ष्य मैं देखे तो जूता अब एक घातक हथियार के रूप मैं सामने आया है । शारीरिक रूप से तो कम हानि पहुचाता है किंतु सम्मान और प्रतिष्ठा को भारी हानि पहुचाते है । समाज और लोगों के सामने इज्जत की भारी किरकिरी करवाते हैं । कई लोगों को तो जात निकाला और समाज मैं हुक्का पानी भी बंद करवा देता है यह जूता । फिर समाज मैं पुनः शामिल होने और शुद्ध होने के लिए भारी भोज भी कराया जात है । वैसे बुश साहब को तो जूता लगा नही , वो उनकी शारीरिक और मानसिक चपलता का परिणाम है की उन्होंने जल्दी जूते के आक्रमण को भांप लिया और उसकी मार से अपने आप को बचा लिया । फिर भी जाते जाते पूरे विश्व मैं भारी किरकिरी तो हो गई ।
एक महाशक्ति देश के शक्तिशाली व्यक्ति के सर चढ़ने का नतीजा यह हुआ की जूते का अपना रुतबा और प्रतिष्ठा और प्रसद्धि तो बढ़ गई किंतु इस जूते को मकाम तक पहुचाने वाले क्या हश्र होगा यह तो खुदा जाने । फिर भी अपने को मुसीबत मैं डालकर जूते की किस्मत को चमका तो गया और बता गया की पैरों की जूती की किस्मत भी चमकती है ।

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

वक़्त आ गया है देश के राजनीतिक ढांचे मैं बदलाव का !

हाल ही मैं हुए मुंबई की बम धमाके से लोगों का राजनीतिक नेत्रत्व के प्रति बढ़ते आक्रोश से राजनेता के प्रति गिरते विश्वाश और धूमिल होती साख से देश की वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था से भरोसा उठ गया है । इस घटना के बाद जिस तरह से राजनेताओं द्वारा असम्वेदन शीलता और गंभीर हीनता का परिचय दिया जा रहा है वह लोगों के जख्मो मैं मरहम लगाने की बजाय दर्द को और बढ़ा रहे हैं । उनके द्वारा दिए जा रहे असयंत बयान और क्रियाकलाप असम्वेदन शीलता और गंभीर हीनता का प्रदर्शन कर रहे हैं । और देश के लोगों की सुरक्षा और सामाजिक और आर्थिक विकास की जिम्मेदारी और जवावदेही के प्रति अकर्मण्यता ने उनके आ कुशलता और असफलता को जग जाहिर किया है ।

अब लोगों को इस बात के लिए तैयार नही होंगे की अपने देश और प्रदेश की बागडोर अब इस प्रकार असम्वेदन शील , गंभीर हीन और अकर्मण्य , अयोग्य और शारीरिक रूप से शिथिल हो चुके राजनेताओं को सोपें । अतः अब समय आ गया है की देश के राजनीतिक ढांचे मैं भारी बदलाव किया जाए । देश के राजनेताओं जिन्हें की ११० करोड़ लोगों के देश और प्रदेश को चलाने की जिम्मेदारी और लोगों की सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौपी जानी होती है के लिए भी अब योग्यता के विभिन्न मापदंड तय किए जाने चाहिए ॥ जन्हा देश मैं एक चपरासी हेतु भी योग्यता के विभिन्न मापदंड तय किए जाते हैं तो इनके लिए क्यों नही ? मेरे विचार से देश के राजनीतिक ढाँचे मैं कुछ इस प्रकार बदलाव तो किए जाने चाहिए ।

१. सांसद और विधायकों के उम्मीदवारी की योग्यता परिक्षण हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए ।

शारीरिक और मानसिक रूप से बुढाते राजनेताओं की उम्र सीमाँ भी निर्धारित की जाए ।

३ सांसद और विधायकों हेतु उम्मेदवारी की शैक्षणिक , शारीरिक और मानसिक योग्यता का निर्धारण हो । चरित्र सत्यापन भी अनिवार्य किया जाए ।

४ मंत्री मंडल मैं पदों हेतु भी विभाग से सम्बंधित क्षेत्र मैं अनुभव और निर्धारित योग्यता का निर्धारण होना चाहिए ।

५ सांसद और विधायकों की दावेदारी हेतु उसके ग्रह जिला अथवा क्षेत्र मैं सामाजिक और जनसेवा के कार्यों का लगभग १० वर्ष का अनुभव अनिवार्य हो ।

६ देश चलाने का एजेंडा राजनीतिक पार्टी की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर गठित समिति द्वारा तय किया जाए । राष्ट्रीय समिती मैं विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों को शामिल किया जाये ।

७ तय एजेंडा पर सरकार के कार्य का आकलन हर ६ माह मैं किया जाए । यदि परफॉर्मेंस ६० प्रतिशत से कम हो तो सरकार को बदला जाए ।

८ इसी तरह सरकार के सभी मंत्रियों और सांसदों और प्रदेश स्तर के विधायकों के कार्यों का भी आकलन किया जाए । यदि परफॉर्मेंस ६० प्रतिशत से कम हो तो उन्हें बदल दिया जाए ।

९ मंत्रियों और सांसदों और प्रदेश स्तर के विधायकों द्वारा अपने कार्य मैं असफल रहने एवं गलती होने पर सजा का प्रावधान हो ।

१० अपने क्षेत्र मैं चुनाव मैं हारे उम्मीदवार को किसी भी स्थिति मैं सरकार मैं स्थान ना दिया जाए ।

११ चुनाव मैं उम्मीदवार के चयन मैं कोई नही का विकल्प अथवा नो वोट का विकल्प दिया जाए ।

१२ लोकसभा एवं विधानसभा , केन्द्र एवं राज्य स्तर की सरकार एवं प्रशासनिक व्यवस्था की मूलभूत जानकारी से आम जनता को परिचित कराया जाए । प्रायः देखने मैं यह आता है की चुनाव किस स्तर की सरकार के लिए हो रहा है ।

१३ मतदाताओं की भी शैक्षणिक योग्यता का भी निर्धारण किया जाना चाहिए । कम से कम प्राथमिक स्तर की शिक्षा का मापदंड तो तय किया जाना चाहिए ।

१४ प्रतिवर्ष सांसदों और विधायकों की स्थाई और अस्थाई संपत्ति का व्योरा प्रस्तुत करना अनिवार्य किया जाए ।

१५ प्रतिवर्ष सांसदों और विधायकों का शारीरिक और मानसिक स्वस्थता का परिक्षण अनिवार्य किया जाए ।

१६ सरकार अथवा सांसदों और विधायकों को अपने दायित्वों को निभाने मैं असफल रहने पर जनता को उन्हें वापिस बुलाने का अधिकार दिया जाए ।

१७ प्रधानमन्त्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री का चुनाव भी प्रत्यक्षा मतदान प्रणाली से किया जाए ।

१८ सांसदों और विधायकों की उम्मीदवारी हेतु खड़े लोगों की व्यक्तिगत जानकारी का ब्यौरा जनता के सामने रखा जाना अनिवार्य हो ।

तभी हम देश मैं एक स्वच्छ और योग्य राजनीतिक नेत्रव की उम्मीद कर सकते हैं जो देश के विकास और जन हितार्थ के कार्यों मैं खरे उतर पायेंगे ।

बहती नदी मध्य एक #पत्थर !

ढूंढते हैं #पेड़ों की छांव , पंछी , #नदियां और तालाब ठंडी ठंडी हवा का बहाव , आसमां का जहां #धरती पर झुकाव । बहती नदी मध्य एक #पत्थर , बैठ गय...