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रविवार, 20 दिसंबर 2009

असंतोष और उपेक्षा से उपजी हताशा का परिणाम है - प्रथक राज्य की मांग !

असंतोष और उपेक्षा से उपजी हताशा का परिणाम है - प्रथक राज्य की मांग !
तेलंगाना राज्य को प्रथक राज्य बनाने की घोषणा के बाद , अब देश के हर कोने से प्रथक राज्य गठन की मांग उठने लगी है । कुछ लोग प्रभावशाली और कारगर प्रशासनिक व्यवस्था क्रियान्वयन और नियंत्रण के मद्देनजर प्रथक छोट छोटे राज्यों की मांग को जायज ठहराते हैं । तो वन्ही कुछ राजनैतिक लोग सत्ता अवं महत्वपूर्ण पदों की लालसा अवं राजनीतिक नफे नुकसान की द्रष्टि से प्रथक राज्य की मांग करते हैं । जबकि मुझे लगता है की क्षेत्र विशेष का असंतुलित विकास , असमान वित्तीय संसाधनों का आवंटन अवं उपेक्षित भाव से उपजे असंतोष और हताशा का परिणाम है प्रथक राज्य की मांग ।
जो भी हो इस तरह से देश के हर प्रदेशों से छोट छोटे टुकड़े कर प्रथक राज्यों की मांग को हवा देना देश की अखंडता और एकता की सीरत और सेहत के लिए अच्छा नहीं है । प्रथक राज्य की मांग का उठाना अथवा उठाया जाना , जनहित और प्र देशहित से वास्ता तो कम किन्तु तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थ ज्यादा नजर आता है । अभी तक जितने प्रथक राज्यों का गठन हुआ है उनमे कुछ को छोड़कर कितनो का विकास पूर्व की तुलना मैं ज्यादा बेहतर हो पाया है यह संभवतः किसी से छुपा नहीं होगा । फिर भी इस बहाने देश को छोटे छोटे टुकड़ों मैं क्षेत्रवाद , भाषावाद अवं वर्ग विशेष वाद के आधार पर तोडना कंही अधिक घातक होगा ।
यदि राजनीतिक और प्रशासनिक इक्क्छा शक्ति हो तो देश को छोटे छोटे राज्यों मैं बिना तोड़े और प्रथक राज्य के गठन के बिना ही प्रदेश और प्रदेश वासियों का समुचित और पर्याप्त विकास उनकी अपेक्षा और आवशकताओं के अनुरूप किया जा सकता है । वित्तीय संसाधनों का सामान रूप से आबंटन , केंद्रीय और राज्य स्तरीय सत्तात्मक नेत्रत्व मैं आबादी के हिसाब से सभी क्षेत्रों की सामान भागीदारी , क्षेत्र विशेष के प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन से प्राप्त राजस्व का अधिकतम भाग क्षेत्र के विकास हेतु ही लगाया जाना , क्षेत्र विशेष के हितों और आवश्यकताओं के अनुरूप योजनाओं का निर्माण और उनका कारगर और प्रभावी क्रियान्वयन , बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के सभी प्रदेशों को सामान विकास के अवसर उपलब्ध कराना इत्यादि ऐसे अनेक कार्य लोगों के असंतोष और निराशा को दूर कर वर्तमान राज्य और राष्ट्र व्यवस्था मैं ही लोगों का विश्वास कायम रखने मैं महती भूमिका निभा सकते हैं और देश को क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों और भाषा , क्षेत्र और वर्ग विशेष के आधार पर छोटे छोटे टुकड़ों मैं बटने से रोका जा सकता है ।

रविवार, 13 दिसंबर 2009

ग्लोबल वार्मिंग - एक सकारात्मक पहल आवश्यक !

कोपेनहेगन मैं ग्लोबल वार्मिंग्स पर चल रहे सम्मलेन मैं सभी विकसित , विकासशील और अविकसित देश ओधोगिक विकास की गति धीमी होने , सुख सुविधाओं के संसाधनों मैं कमी और देश का विकास अवरुद्ध होने अथवा धीमी होने की कीमत पर कार्बन उत्सर्जन की मात्रा मैं कमी ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के उपायों को अपनाने मैं जो की प्रत्यक्ष रूप से देश और देश के लोगों को नुक्सान पहुचा सकते हैं आनाकानी कर रहे हैं और किसी भी इस प्रकार के किसी भी मसोदे पर एकमत और सहमत होते नही दिखाई दे रहे हैं । सभी देश अपने अपने हितो के अनुरूप विरोधाभासी मसोदे और सुझाब पेश कर रहे हैं । कोई भी देश स्वयं जिम्मेदारी न लेकर एक दूसरे पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं । ऐसी स्थिति मैं कोपेनहेगन मैं सर्व सहमति युक्त प्रभावी और कारगर समझोता अथवा संधि होने की स्थिति दिखायी नही दे रही है । और डर है की इतने तामझाम के साथ शुरू हुई बैठक कंही बेनतीजा समाप्त न हो जाए ।
अतः कुछ ऐसे छोटे छोटे और प्रभावी प्रयासों को अपनाने हेतु सहमती बनाने की कोशिश की जाए जिससे सभी देश की हितो की अनदेखी भी न हो और ग्लोबल प्रभाव को भी कम किया जा सके ।
१। सबसे पहले तो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को रोकने के उपायों की क्रियान्वयन , नियंत्रण और निगरानी हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था की गठन एवं एक साझा फंड का निर्माण किया जाए , जिसमे सभी देश अपनी आर्थिक क्षमता अनुसार आर्थिक सहायता देवें ।
२। ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव को कम करने हेतु सभी देशो को उनकी भुक्षेत्रो और आर्थिक क्षमता के आधार पर अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाना अनिवार्य किया जाए । आर्थिक रूप से कमजोर और अविकसित देशों को वृक्षारोपण , वनों के सरक्षण , संवर्धन और प्रकृति मैं अनावश्यक दखल को रोकने हेतु अवश्य वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाए ।
३। उर्जा के वैकल्पिक संसाधनों जैसे सोलर उर्जा , पवन उर्जा एवं समुद्रीय तापीय उर्जा और प्रथ्वी की ताप उर्जा को प्रयोग करने हेतु सरल एवं सस्ती युक्तियाँ विकसित करने एवं अन्य पर्यावरण हितेषी वैकपिक उर्जा संसाधनों को अपनाने पर अधिक से अधिक बल दिया जाए ।
४। इन उर्जा संसाधनों की सुलभ और कम लागत वाली तकनीकों और ज्ञान को एक दूसरों के साथ बांटा जाए । और अधिक सर्वसुलभ और सस्ती एवं विश्वसनीय तकनीको के विकास और अनुसंधान हेतु साझा प्रयासों को बल दिया जाए ।
५। विश्व समुदायों को कार्बोन उत्सर्जन को बढ़ाने और प्रथ्वी के तापमान को बढ़ाने वाली वस्तुओ और संसाधनों के कम प्रयोग अथवा न अपनाने को प्रोत्साहित करने और पर्यावरण अनुकूल अधिक से अधिक उपायों को अपनाने हेतु प्रेरित करने के उद्दश्य से जागरूकता बढ़ाने वाले और शिक्षित करने वाले प्रसार प्रचार के अधिक से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चलाये जावे .
6. कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने वाले उत्पादों की उत्पादकता को कम करने एवं उसके स्थान पर पर्यावरण हितेषी उत्पाद बनाने वाली कंपनी को हर तरह की सहायता देकर प्रोत्साहित किया जावे । बड़ी उद्योगों को ऐसे उत्पादों की उत्पादकता को कम करने एवं पर्यावरण हितेषी उत्पाद को बनाने हेतु राजी और प्रोत्साहित किया जावे ।
७। कम कार्बन उत्सर्जन एवं पर्यावरण को नुक्सान न पहुचाने वाले वाहनों और संसाधनों के उपयोग पर अधिक से अधिक बल दिया जावे । पर्यावरण हितेषी वाहनों और संसाधनों के अनुसन्धान और खोज पर जोर दिया जाए ।
विरोधाभासी बातों को करने एवं एक दूसरों के हितो की अनदेखी करने वाली बातों को छोड़कर कुछ इस तरह की बातों को शामिल कर कम से कम एक सर्व सहमती युक्ता मसोदा तैयार किया जाकर ग्लोबल वार्मिंग को रोकने एवं प्रथ्वी और प्रथ्वी वासी बचाने हेतु एक नेक और सकारात्मक शुरुआत तो की ही जा सकती है ।

नील लगे न पिचकरी, #रंग चोखा आये ,

  नील लगे न #पिचकरी, #रंग चोखा आये , कीचड का गड्डा देखकर , उसमें दियो डुबाये .   ऊंट पर टांग धरन की , फितरत में श्रीमान , मुंह के बल...