चित्र गूगल साभार
ये वहम अच्छे हैं !
जब तक अपनों के चेहरे पर मिले मुस्कान ,
और मुँह में मिले हो शहद सी मीठी जुबान ,
भ्रम के बादलों से ढँका है
रिश्तों का असमान ,
तो तब तक जीने के लिये ये
वहम अच्छे हैं .
जब तक जीवन में भरे हुये हैं
खुशियों के बारदान ,
और सुखमय जीवन में मिल रह
सबका योगदान ,
अभी तक हुयी नहीं मुश्किलों
में अपनों की पहचान,
तब तक जीने के लिये ये वहम अच्छे हैं .
अभी तक नहीं दिखा डिगा हुआ ईमान ,
लगता दामन कोरे कपड़े के समान ,
जब तक बंद है दरवाजा ए हमाम ,
तब तक जीने के लिये ये वहम अच्छे हैं .
सब कहते हैं कि झूठ और फरेब है हराम ,
सहूलियतों के हिसाब से चले रहे है सब काम ,
जब तक कामों का मिल रहा है अच्छा परिणाम ,
तब तक जीने के लिये ये वहम अच्छे हैं .
अपनों से परे अपनी दुनिया बना रहा है इंसान ,
जुटा रहा है सुख सुविधाओं के सारे समान ,
दौड रही है “दीप” जीवन की गाड़ी बेलगाम ,
तब तक जीने के लिये ये वहम अच्छे हैं .
सुंदर शब्दों के साथ…. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति….
जवाब देंहटाएंभास्कर जी , आपकी बहुमुल्य टिप्पणी के लिये बहुत शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवर्मा जी आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
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