आदरणीय
लो अब मुहावरे और लोकोक्तिया पर भी कोरोना
की वक्र दॄष्टि पड गई . जो कोरोना के संक्रमण के प्रभाव से कुछ ऐसी बन गई है . कृपया
गौर फरमाइयेगा .
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क़्वारनटाइन का मारा न घऱ का न घाट
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अब पछ्ताये होत क्या , जब कोरोना से हो गई भेंट
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सौ सर्दी खांसी बुखार की , एक कोरोना वार की .
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सोशल डिस्टेंशिंग परमोधर्मा .
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घर के बाहर तो कोरोना भी शेर होता है .
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बिन मांगे कोरोना मिले , मांगे मिले न तालाबंदी से ब्रेक .
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तालाबंदी में सिर दिया तो कोरोना से क्या डरना .
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अकेला आदमी , कोरोना नही फैला सकता
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आस्तीन का कोरोना .
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हवन करते कोरोना होना .
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कोरोना से छला ,शक्कर भी धो धो कर खाता
है .
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चार दिन की तालाबंदी , फिर खुल जायेंगे कपाट
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घर का बंदी , कोरोना घटावे .
सटीक सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकविता मेम आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
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