गर्म हवा में #बादलों का असर था,
तब मेरा #बस का एक #सफर था ,
पसीने से तन तमाम तरबतर था ,
मन तड़प और बैचेनी का घर था ।
जब तक चलती थी #बस ,
तब तक कम लगती था उमस,
खिड़कियों में हवा #मचलती थी ,
बैचेन मन में राहत पलती थी ।
यूं बस में जब आया ठहराव ,
गर्मी ने तब दिखाया प्रभाव,
यात्रीगण सब गर्मी से त्रस्त ,
राहत उपायों में सब थे व्यस्त,
बस से बाहर यूं ही रखे कदम ,
निजात ढूंढती नजरों के संग ,
राहत भरा कुछ मिल जाये,
कम हो जिससे गर्मी के सितम ।
लस्सी , शरबत, गन्ने का रस ,
कई #देशी पेय नजरों के समक्ष,
इनमें से जल्दी कुछ गले में उतरे,
सताती गर्मी से तन मन उवरे।
दुविधा में यकायक आया मन,
इनमें से किसका करें सेवन ,
जो हो शुद्धता के निकटतम,
सेहत के लिये न बने जोखिम .
मन ने गन्ने के रस को चुना ,
ताजा ताजा था जो निकला,
अदरक , नीबू और पुदीनापन,
सेहत के लिये लगा अति उत्तम ।
क्या मेरा था यह सही #चयन ,
सोचता रहा सफर मन ही मन ।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय मधुलिका मेम, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
हटाएंसादर ।