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#बारिश का प्रहार ,
रौद्र रूप में #बाढ़ ,
तोड़ कर सारे किवाड़ ,
जो मिला सामने वो उखाड़ ,
कर दिया #उजाड़ ।
इतना हुआ #खिलवाड़ ,
की #प्रकृति गयी है हार ,
अब मचा रही #हाहाकार,
लाकर #अकाल या #बाढ़,
बस बेबस देखता संसार ।
नदी नालों पर #अतिक्रमण ,
अवैध है उत्खनन ,
नष्ट हो रहे हैं वन ,
हुआ नष्ट #पर्यावरण ,
बिगड़ा सारा संतुलन ।
गर अब न किया मनन ,
गर अब न खोले नयन ,
तो यूं प्रकृति का प्रहार ,
होता रहेगा बार बार ,
यूं होता रहेगा संहार ।
***दीपक कुमार भानरे ***
सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज सर ,
हटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।