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मंगलवार, 11 मार्च 2008

वाह क्रिकेट या आह क्रिकेट

समाचार पत्रों एवं टीवी मैं बस क्रिकेट और बस क्रिकेट की खबरें छाई रहती है । कोई खिलाडिओं की परफॉर्मेंस को लेकर बहस कर रहा है तो कोई हार जीत की संभावनाओं को तलाश रहा है । कौन सा खिलाड़ी खेलेगा और कौन सा खिलाड़ी बाहर रहेगा , अट्कलोँ का दौर जारी हैं । ऐसा लगता हैं की देश मैं क्रिकेट के अलावा कोई महत्व की ख़बर ही नही हैं । सारे देश बस क्रिकेट मय हो गया हैं । देश के आम मुद्दें क्रिकेट मैं कहीं गुम हो गए हैं । यदि क्रिकेट जीता देश मैं ईद व दीवाली और हारा तो मातम । इसी की आड़ मैं मीडिया और बीसीसीआई की बल्ले बल्ले हो रही है। मीडिया के लिए भी नई ख़बर ढूँढने की जद्दो जहद नहीं करनी पड़ती हैं। खिलाडिओं की भी कम बल्ले बल्ले नही हो रही हैं।
यह एक अच्छी बात हैं की खेल के प्रति देश मैं रूचि जागी है। इससे देश खेल जगत मैं अपनी एक अलग पहचान बनी हैं । खिलाडिओं को भी अच्छा खासा पैसा मिल रहा है । लोग अपने दुःख दर्द भूलकर क्रिकेट की जीत की खुशी मैं मदमस्त हो रहें है । सभी भेदभाव मिटाकर लोग एक साथ खुशिओं मना रहें हैं । इन सभी बातों से मन वाह क्रिकेट वाह कह उठता हैं ।
किंतु इन सब बातों से इतर कुछ बातों को सोचकर मन आह क्रिकेट कह उठता हैं। क्या क्रिकेट देश की सभी समस्याओं का समाधान कर सकता हैं जैसा की सारा देश बस क्रिकेट की बातें करता नजर आता हैं । क्या क्रिकेट देश के १०० करोड़ से भी अधिक की जनता को भूख , भय और भ्रष्ट्राचार से मुक्ति दिला सकता हैं। क्या क्रिकेट देश नौजवानों के लिए रोजगार का साधन बन सकता हैं। क्या देश की उन सभी प्रतिभाओं जो अपनी पढ़ाई लिखाई और काम धन्द्दे छोड़कर क्रिकेट और बस क्रिकेट खेल रहें हैं को सचिन , सहवाग और धोनी जैसे अवसर मिल सकते हैं। क्या इन सभी लोगों को राष्ट्रीय टीम मैं स्थान मिल सकता है । क्या इतने अवसर हैं। क्या देश के अन्य खेलो के साथ भेदभाव कर किसी एक खेल को इतना बढ़ावा दिया जाना उचित हैं। साथ ही इसका बाजारीकरण करना खेल के लिए कहाँ तक उचित हैं ।
आवश्यकता हैं सभी खेलों को एक समान द्रष्टि से देखने की। सभी खेलों के लिए समान अवसर और संसाधन उपलब्ध कराने की । सभी प्रदेश , जिलों एवं ब्लाक लेवल मैं खेलों के लिए टीम गठित करने की । प्रतिवर्ष खेलों का आयोजन करने की , जिससे सभी खेल प्रतिभाओं को आवश्यक और समान अवसर मिल सकेंगे । इसमें सरकार और आई सी एल एवं आई पी एल जैसी अन्य खेल संस्थाओं की भागीदारी ली जा सकती हैं। मीडिया भी फिल्मी गाने एवं डांस प्रतियोगिता जैसे स्पर्धा आयोजित कराकर खेल प्रतिभाओं को आवश्यक मंच और अवसर उपलब्ध कर सकती हैं।

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