दिनों दिन जनप्रतिनिधियों का आचार और और व्यवहार मैं गिरावट आ रही है . कभी पैसे लेकर संसद मैं प्रश्न पूछना , कभी आय से अधिक धन संपत्ति का पाया जाना , तो कभी भ्रष्टाचार के मामले उजागर होना और मारपीट व हत्या जैसे संगीन आरोप लगना . संसद सत्र के दौरान हंगामा करना और झूमा झाट्की से लेकर मारा पीटी और तोड़फोड़ कर संसद की कार्यवाही को बाधित करना . आये दिन जुलूस और धरना कर आम जीवन को अस्तव्यस्त करना और अशांति का माहोल पैदा करना । किंतु यह जगजाहिर है की अभी तक इनमे से कितने लोगों को सजा या दंड मिला है । संसद की गलियों से लेकर संसद के बाहर तक देश हित और जन हित को भुलाकर , स्व हित और राजनैतिक हितों के मद्देनजर और सिर्फ़ विरोध के लिए एक दूसरे का विरोध करना इनकी नियति बनती जा रही है , बजाय इसके की मिल बैठकर समस्या का हल निकालने का प्रयास करना । यंहा तो समरथ को नही दोष गोसाई की कहावत चरितार्थ होती है ।
जिन्हें जनता की भावना का प्रतिनिधित्व , समस्या के निराकरण और दुःख दर्द मैं सहारे हेतु चुना जाता है , वे अब जनता के समस्या और दुःख का कारण बन रहे है ।
अतः यह यक्ष प्रश्न खड़ा होता है की आख़िर इन जनप्रतिनिधियों के अचार और व्यवहार को नियंत्रित करे तो करे कौन ? क्या जनप्रतिनिधि नियम और कानून से परे है ?
उन्हों ने कानून को पंगु कर दिया है् अपने लिए।
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