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शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
कोसी के कहर जैसे त्रासदी के कसूरबार
मंगलवार, 26 अगस्त 2008
कलाकार की नैसर्गिक प्रतिभा का दम न घुटे !
गुरुवार, 21 अगस्त 2008
हर बार पदकों के लाले क्यों ?
एक एक कर ओलंपिक मैं ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने की सभी आशाएं धूमिल होती जा रही है । लगता है हमें मातृ दो तीन पदक से ही संतोष करना पड़ेगा । आख़िर ऐसा क्यों ? इस १०२ करोड़ लोगों के देश मैं जिसकी आबादी पड़ोसी देश चीन से थोडी ही कम है , ओलंपिक मैं पदकों के लाले पड़े हैं । वही चीन पदकों की तालिका मैं प्रथम स्थान बनाकर बढ़त बनाए हुए हैं । क्या हम इन १०२ लोगों मैं १०० - २०० खिलाडी ऐसे नही ढूंढ सकते , जिनमे खेल मैं सिखर तक पहुचने का जज्बा , माद्दा , योग्यता और काबिलियत हो । क्या देश मैं ऐसे दृढ इक्छा शक्ति वाले कुछ अच्छा कर गुजरने की लालसा रखने वाले लोगों की कमी है ।
मेरे से विचार से तो ऐसा नही है । हमारे यंहा ऐसे लोगों की कमी नही है । बस कमी है तो ऐसे लोगों को बिना किसे पूर्वाग्रह के तलाश कर तराशने और उचित अवसर प्रदान करने की । किंतु अभी तक ऐसा नही हो पा रहा है । राजनीती की काली छाया ने खेल की भावना और पवित्रता को धूमिल कर भाई भातीजबाद को बढ़ावा दे योग्यता और काबिलियत को दरकिनार कर दिया है । इसी का ही परिणाम है की हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हर खेल मोर्चे मैं असफल हो जाता है । और देश के खाते मैं पदकों मैं के लाले पड़ जाते है ।
आख़िर क्यों न एक निष्पक्ष खेल नीति बनायी जाए जिसमे बिना किसी आग्रह विग्रह के योग्य और क्षमतावान खेल प्रतिभाओं को अवसर दिया जाए । हर जिला स्तर मैं एवं स्कूल और कॉलेज के माध्यम से खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देकर तराशा जाए । स्कूल और कॉलेज मैं खेल के पाठ्यक्रम मैं अनिवार्य रूप से खेल को एक विषय के रूप मैं शामिल कर उसके प्रायोगिक और व्यवहारिक रूप मैं अपनाया जाना चाहिए । खेल को बढ़ावा देने हेतु इसके लिए आवश्यक इन्फ्रा स्ट्रक्चर और समुचित खेल वातावरण को निर्मित किया जाना चाहिए । खेल प्रतिभाओं हेतु आवश्यक आर्थिक सहायता और छात्रवृत्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए । साथ ही इस बात की व्यवस्था रखा जाना चाहिए की जो खिलाडी खेल मैं अपने जीवन का स्वर्णिम समय अर्पित करता है उनके जीवन के संध्याकाल हेतु अथवा खेल के दौरान होने वाले शारीरिक नुक्सान से भरपाई हेतु जीवनोपयोगी सभी आवश्यक सुख सुविधायों की व्यवस्था की जाना चाना चाहिए । इससे निसंदेह हर खिलाडी जी जान से अपना सारा समय सिर्फ़ खेल और सिर्फ़ खेल हेतु बिताएगा और इससे निश्चित रूप से आशाजनक परिणाम सामने आयेंगे और देश को फिर किसी भी अन्तराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता मैं पदकों के लाले नही पड़ेंगे ।
शुक्रवार, 15 अगस्त 2008
एक लड़ाई नकारात्मक सोच के अपने ही लोगों से !
आजादी की 61 वी वर्षगाँठ मना रहे हैं . न जाने कितने ही लोगों ने अपने सुखों , पारिवारिक हितों और अपनी जान की परवाह किए बगैर बाहरी लोगों से लड़कर आजादी को दिलाने हेतु अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया होगा और इस मंगल कामना के साथ इस देश को आगामी पीढी के हवाले कर इस जन्हा से रुखसत हुए होंगे की , देश के लोग और देश भय , भूख , भ्रष्टाचार और अराजकता जैसी समस्याओं से मुक्त होकर निरंतर सुख , समृद्धि और विकास के नित नए आयाम और सिखर को छुयेगा . किंतु इन सब से इतर देश मैं अपने ही लोगों द्वारा बनायी जा रही भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों मैं जकड़ते जा रहा हैं .
आजादी से लेकर अब तक हर क्षेत्र मैं हुए विकास को नकारा नही जा सकता है . किंतु लगता है की देश ने जन्हा स्रजनात्मक द्रष्टि वाले कड़ी म्हणत और दृढ इक्छा वाले लोगों के योगदान से विकास किया है वन्ही नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों द्वारा पैदा की जा रही नित नई समस्याएं जो लोगों का जीना मुहाल कर रही है और देश मैं अशांति और भय का वातावरण निर्मित कर देश के अब तक हुए विकास को धता बता रही .
देश मैं धधकती कश्मीर की आग जो वोट बैंक और दृढ इक्छा शक्ति के अभाव मैं उन्सुल्झी रहकर सारे देश को झुलसाने को तैयार है , कमर तोड़ मंहगाई जो हर प्रयासों के बाद भी दिनों दिन सुरसा की तरह मुंह फाड़ रही है और आम आदमी के लिए संतुलित भोजन को दूर की कौडी साबित कर पेट भरने के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाने मैं भी उलझाने पैदा कर रही है , आतंकवाद की समस्या जो इतनी सम्रद्धि होने के वाद भी लोगों को असुरक्षा और भय के माहोल मैं जीने को मजबूर कर रही है , देश मैं उत्पन्न राजनीति अराजकता की स्थिति जिसमे नैतिकता , सैधांतिक वैचारिकता और संवेदनशीलता शुन्य हो गई है , जन्हा देश हित और जन हित गौण होकर सत्ता सुख , व्यक्तिगत और राजनैतिक हित महत्वपूर्ण हो गए है , जन प्रतिनिधियों के खरीद फरोख्त से लेकर हर छोटे छोटे कार्यों मैं रुपयों की बोली लगने लगी है , जिससे ऐसा लगता है की भ्रष्टाचार अब समस्या नही अब जीवन के आम दिनचर्या का हिस्सा है . धर्मं और आध्यात्मिकता को व्यापार और वसाय का रूप देकर और छल कपट की नीति को अपनाकर उसकी आड़ मैं नैतिकता की हदें पार की जा रही है . विरोध प्रदर्शन के नाम पर चक्का जाम , जुलुश और बंद के दौरान लूट , आगजनी , हिंसा और तोड़फोड़ कर राष्ट्रीय संपत्ति को नुक्सान पहुचकर और आम आदमी के जीवन की परवाह न कर मानविय संवेदना को टाक पर रखा जा रहा है .
इन समस्यायों के अब तक तो कोई ठोस और सर्वमान्य हल सामने नही आए है . देश की सरकार और प्रशासन की कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता भी नही है इन समस्याओं से देश को मुक्ति मिल सकेगी ।
अतः आवश्यकता है अपने ही बीच के नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों से एक लड़ाई और लड़ने की जो देश को भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों से मुक्ति दिला सके ।
इस आशा और विश्वाश के साथ की यह पर्व देश और देश के सभी लोगों के लिए सुख समृद्दी भरा होगा । सभी को इस राष्ट्रीय पर्व की हार्दिक बधाई ।
एक दूजे के लिये #चांद से !
Image Google saabhar. एक दूजे के लिये #चांद से यह दुआ है ता उम्र , हो पल पल सुकून का और हर पल शुभ #शगुन । हो न कोई गलतफहमी न कोई उलझन, शांत ...
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रोज सुबह आते दैनिक या साप्ताहिक अखबार हो , टीवी मैं चलने वाले नियमित कार्यक्रम हो या फिर रेडियो मैं चलने वाले प्रोग्राम हो या मोबाइल मैं आ...
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गर #लक्ष्य का कर ले #शिकार बिन #आलस्य बिन हिम्मत हार आया वो जब अपने द्वार । गर रहा बेअसर पहला ही वार बढ़ जाती है #प्रतिद्वंदियों की कतार...