एक एक कर ओलंपिक मैं ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने की सभी आशाएं धूमिल होती जा रही है । लगता है हमें मातृ दो तीन पदक से ही संतोष करना पड़ेगा । आख़िर ऐसा क्यों ? इस १०२ करोड़ लोगों के देश मैं जिसकी आबादी पड़ोसी देश चीन से थोडी ही कम है , ओलंपिक मैं पदकों के लाले पड़े हैं । वही चीन पदकों की तालिका मैं प्रथम स्थान बनाकर बढ़त बनाए हुए हैं । क्या हम इन १०२ लोगों मैं १०० - २०० खिलाडी ऐसे नही ढूंढ सकते , जिनमे खेल मैं सिखर तक पहुचने का जज्बा , माद्दा , योग्यता और काबिलियत हो । क्या देश मैं ऐसे दृढ इक्छा शक्ति वाले कुछ अच्छा कर गुजरने की लालसा रखने वाले लोगों की कमी है ।
मेरे से विचार से तो ऐसा नही है । हमारे यंहा ऐसे लोगों की कमी नही है । बस कमी है तो ऐसे लोगों को बिना किसे पूर्वाग्रह के तलाश कर तराशने और उचित अवसर प्रदान करने की । किंतु अभी तक ऐसा नही हो पा रहा है । राजनीती की काली छाया ने खेल की भावना और पवित्रता को धूमिल कर भाई भातीजबाद को बढ़ावा दे योग्यता और काबिलियत को दरकिनार कर दिया है । इसी का ही परिणाम है की हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हर खेल मोर्चे मैं असफल हो जाता है । और देश के खाते मैं पदकों मैं के लाले पड़ जाते है ।
आख़िर क्यों न एक निष्पक्ष खेल नीति बनायी जाए जिसमे बिना किसी आग्रह विग्रह के योग्य और क्षमतावान खेल प्रतिभाओं को अवसर दिया जाए । हर जिला स्तर मैं एवं स्कूल और कॉलेज के माध्यम से खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देकर तराशा जाए । स्कूल और कॉलेज मैं खेल के पाठ्यक्रम मैं अनिवार्य रूप से खेल को एक विषय के रूप मैं शामिल कर उसके प्रायोगिक और व्यवहारिक रूप मैं अपनाया जाना चाहिए । खेल को बढ़ावा देने हेतु इसके लिए आवश्यक इन्फ्रा स्ट्रक्चर और समुचित खेल वातावरण को निर्मित किया जाना चाहिए । खेल प्रतिभाओं हेतु आवश्यक आर्थिक सहायता और छात्रवृत्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए । साथ ही इस बात की व्यवस्था रखा जाना चाहिए की जो खिलाडी खेल मैं अपने जीवन का स्वर्णिम समय अर्पित करता है उनके जीवन के संध्याकाल हेतु अथवा खेल के दौरान होने वाले शारीरिक नुक्सान से भरपाई हेतु जीवनोपयोगी सभी आवश्यक सुख सुविधायों की व्यवस्था की जाना चाना चाहिए । इससे निसंदेह हर खिलाडी जी जान से अपना सारा समय सिर्फ़ खेल और सिर्फ़ खेल हेतु बिताएगा और इससे निश्चित रूप से आशाजनक परिणाम सामने आयेंगे और देश को फिर किसी भी अन्तराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता मैं पदकों के लाले नही पड़ेंगे ।
achchi post......
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख..आभार.
जवाब देंहटाएंदरअसल हर इंसान छिछोरी राजनीती में व्यस्त है .....हर जगह राजनीती है जहाँ राजनीति है वहां खेल पीछे छूट जाता है ..
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