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गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

श्री अग्रवाल के गंगा को बचाने के भागीरथी प्रयास के हम भी सहभागी बने .


दिनांक 16-02-09 का दैनिक भास्कर मैं प्रकाशित श्री विकास मिश्रा का लेख पढ़ा जिसमे जिसमे उन्होंने लिखा है कि " श्री जी डी अग्रवाल पिछले डेढ़ महीने से पवित्र गंगा को बचाने के उद्देश्य अनशन पर बैठे हैं । किंतु टी आर पि बढ़ाने वाली मसाला ख़बर न होने के कारण न तो इस ख़बर को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मैं और न ही प्रमुख समाचार पत्रों के मुख्या स्थान दिया गया है । बस दिल्ली के कुछ स्थानीय समाचार पत्रों मैं थोडी बहुत जगह दी गई है । जिसके कारण श्री जी डी अग्रवाल के इस भागीरथी प्रयास को देश के आम लोगों के बीच चर्चा का विषय नही बन पाया है ।


श्री जी डी अग्रवाल एक पर्यावरण विद है और गंगा नदी की दुर्दशा देखकर दुखित है गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक के १२५ कि मी कि दूरी के बीच गंगा जी का प्रवाह संकट के घेरे मैं आ गया है । क्योंकि यंहा टिहरी बाँध बना है । गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा तो दे दिया गया है लेकिन इसके प्रवाह को बचाने के लिए सरकार कुछ नही कह रही है । गंगा कि सफाई और सरक्षण को लेकर बहुत सारी योजनायें चल रही है किंतु सभी कागजों पर । इसमे भरपूर पैसों कि बंदरबांट हो रही है । श्री अग्रवाल के साथ वाराणसी कि गंगा महासभा भी है । सरकार ने श्री अग्रवाल को इस बात का आश्वाशन तो दिया किंतु जिन बांधों के कारण गंगा संकट मैं आ गई है उनका क्या किया जाए । "


कंही श्री जी डी अग्रवाल के इस अनशन का भी वाही अंजाम न हो जाए जो सामान्य तौर इस तरह के अन्य अनशनओं का होता है । अतः जरूरी है कि गंगा नदी जो कि अब राष्ट्रीय नदी भी घोषित कर दी गई है को बचाने के इस भागीरथी प्रयास को जन जन तक पहुचाने का भागीरथी प्रयास हमारे द्वारा भी किया जाए ताकि उनके इस आन्दोलन से अधिक से अधिक लोग जुड़ सकें और उनके इस प्रयास को ज्यादा से ज्यादा लोगों का समर्थन मिले । चारों पीठों के शंकराचार्यों ने भी श्री अग्रवाल के प्रयास मैं अपने स्वर मिलाये हैं । साथ ही श्री अग्रवाल समर्थन मैं भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान के पूर्व छात्रों के संगठन आई आई तियन फॉर होली गंगा द्वारा आयोजित संगोष्ठी मैं पर्यावरण विद और मेगेसस पुरुष्कार विजेता श्री राजेन्द्र सिंह ने भी कहा कि गंगोत्री से उत्तरकाशी तक भागीरथी का नैसर्गिक प्रवाह बनाए रखना चाहिए । जीवनदायी गंगा के संवर्धन और सरक्षण के लिए गंभीर हो इस मुहीम को समाज से जोड़ने कि बनायी जानी चाहिए ।

हम भी श्री अग्रवाल के इस भागीरथी प्रयास के सहभागी बन सके इस हेतु से से प्रयास का अपने ब्लॉग और अपने माध्यम से अधिक से अधिक प्रचार प्रसार करें ताकि उनके इस प्रयास मैं अधिक से अधिक जनसमर्थन जुटा कर उन्हें संबल और बल प्रदान करें ताकि उनका यह भागीरथी प्रयास जरूर सफल हो सके ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. गंगा को बचाने के लिए श्री जी डी अग्रवाल के इस भागीरथी प्रयास को देश के आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बनना ही चाहिए था .... पर आज मीडिया इन सब बातों पर ध्‍यान कहां देती है ... इंटरनेट पर हिन्‍दी के पाठको की सीमित संख्‍या भी उस ढंग से उनको प्रचारित नहीं कर पाएगी ... वैसे आपने अपने ब्‍लाग में इस लेख को डालकर अच्‍छा किया है ... उनकी सफलता के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  2. भानरे साहब, अगर गंगा कहीं मुस्लिमों से जुड़ी होती तो नजारा ही कुछ और होता. बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग पर आ सका.

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  3. गंगा की शुद्धि के लिए गंगापुत्रों का सरकार पर निर्भर होना 'राष्ट्रीय शर्म' की बात है. आम आदमी को खुद ही इसकी अहमियत समझनी चाहिए. नहीं तो फिर गंगा को सिर्फ कूड़ा ढोने के लिए जीवित रखने का कोई औचित्य नहीं.

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  4. मित्र दूसरा पहलु भी है। बाँध केवल विनाश का प्रतीक होते तो विश्व भर में उसकी खिलाफत होती लेकिन नॉर्वे जैसे देश भी हैं जिन्होंने अपनी क्षमता का 100% दोहन किया और विकसित हैं। सभी विकसित देश अपनी नदियों की उस क्षमता पर निर्भर हैं जिससे हींग लगे न फिटकिरी, कोयला जले न पट्रोल और बिजली पैदा होती है। आज कल रन-ऑफ-द-रिवर पद्यति से बाँध निर्मित किये जाते हैं और पूरी प्रक्रिया में नदी अविरल बहती रहती है। जल-विद्युत से न तो प्रदूषण होते हैं न ही पानी से बिजली बनाने से पानी की गुणवत्ता को कोई नुकसान। गंगा प्रदूषित है तो बाँधों के कारण नही बल्कि उन उद्योगों के कारण जो मैदानों में हैं।

    पर्यावरण विद होना इस देश में सबसे आसान शगल है। यह भी सत्य है कि बाँध-विरोध को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल है। यह "स्लम डॉग" का देश है बिजली का विरोध करने वालों की जय हो। बाद में नेताओं को गाली दीजियेगा कि बिजली जैसी बुनियादी सिविधा भी भारत में नहीं है। हद दोगलापंथी है।

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  5. इसके विषय में आई आई टी में एक दोस्त ने बताया तो था ..निसंदेह उनके इस प्रयास में जुड़ना चाहिए ..शायद कोई साईट भी है.क्या उसका लिंक दे सकते है ?

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  6. Ganga kee pavitrta aur shuddhta bachane ke liye kisi bhi prayaas ke ham samarthak hain....

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  7. बहुत ही सुंदर जानकारी हम सब को इस मै सहय़ोग करना चाहिये.
    धन्यवाद

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  8. इसमें सारे देश को सहभागी बनने की आवश्‍यकता है।

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  9. ब्लॉग पर आकर बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिये धन्यवाद.
    प्राप्त प्रतिक्रिया पर मैं कुछ बातें कहना चाहूँगा की कोई भी व्यक्ति विकास और मानव हितों मैं प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर आत्राज नहीं करेगा बस जरूरत है सहेजते हुए और उसके अस्तित्व को बनाए रखते हुए उनके दोहन की . क्योंकि इन पर सिर्फ हमारा ही नहीं आने वाली पीढियों का भी अधिकार भी है और हमारे जीवन के लिये इनका होना भी उतना आवश्यक है जितना की हमारा भी . साथ इससे भी सहमत हुआ जा सकता है की अगर गंगा कहीं मुस्लिमों से जुड़ी होती तो नजारा ही कुछ और होता . अन्य सभी प्रतिक्रियायों से भी बहुत सकारात्मक और सराहनीय है . बहुत धन्यवाद.

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  10. इस प्रयास में सारा देश सहभागी बने, हमारी यही कामना है।

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  11. is mr. aggarwal still fighting

    i am with him

    let send this message to everyone

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