कचरों के ढेरों मैं से प्लास्टिक व धातु के टुकड़े बीनते बच्चे
बेपरवाह गंदगी और सडन के दुष्प्रभाव से , सिर्फ कुछ रुपयों की आस मैं
इस बात से बेखबर से की उम्र का अगला पड़ाव हमें कंहा ले जायेगा ||
चाय की दुकानों व होटलों मैं ग्राहक की हर एक आवाज पर दौड़ते बच्चे
बेपरवाह लोगों की डांट डपट और तिरस्कार से , चंद रूपये से के चूल्हा जलने की आस मैं
इस बात से बेखबर की आने वाली जिन्दगी कैसी होगी ||
भवनों और सड़क निर्माण के कार्यों मैं इंट ढोते और पत्थर तोड़ते बच्चे
बेपरवाह चोटों और बारिश व धुप की तपन से, तुरंत के अच्छे कपडे और पेट भरने आस मैं
बेखबर इस बात से की कल फिर उन्हें जोखिम भरा काम करना होगा ||
स्कूल जाते , महँगी गाड़ियों मैं बैठे बच्चों को निहारते बच्चे
परवाह इस बात की क्या स्कूल जा पाएंगे , गाड़ियों मैं घूम पाएंगे
चंद रुपयों और मदद की आस मैं जिससे हमें यह सब मिल जायेगा
इस बात से खबरदार की हमारा आने वाला भविष्य अच्छा होगा ||
जब चंद में रोटी दिखती है, और धूप में उस रोटी को सेंकने के लिए आग तब ऐसा ही होता है बचपन ...सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंnhi janten baten bhavishya ki, aaj m hi jiten h bachche. bepervah hum hain,nhi bepervah ye bachche.suraj ki tapan m karvate hai kam,ghar ki mazburi m krte h bachche.bepervah hum hain.,bepervah nhi ye bachhe.unke bachpan ko rondate,unko rupyon se tolte,aap hi btao kya krain ye nadan bachche.bepervah hum h ,bepervah nhi ye nadan bachche.....@Gaurav rajput
जवाब देंहटाएंemail-gauravrajput157@gmail.com