#कम न हो #नये की #चाहत ।।
कुछ अलग और नये की चाहत , पुराने से ऊबने और उबरने की चाहत ।
तो कर गुजरते है कुछ अलग ,मिलती तसल्ली और होती है राहत ।
छूटते है अपने और होते आहत , कुछ टुटता है बिखरती है सहूलियत ।
जब चल पड़ते करने को कुछ अलग ,होती है ख़ुशी हर लम्हा सुखद ।
उड़ती है नींदे होती कड़ी मेहनत ,बढ़ती दुस्बारियाँ बिगड़ती है सेहत ।
तन मन की लगती है लागत ,लगती राहें आसान हर पल खूबसूरत ।
चलते रहें न हो कहीं थकावट , कुछ परेशानी कुछ तो होगी रूकावट ।
कम न हो नये 'दीप' की चाहत ,यही तो जीवन का फलसफा है शायद ।
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