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गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

काश# समेट# लेता उन पलों# को

काश# समेट# लेता उन पलों# को

काश समेट लेता उन पलों को ,
और बंद करके रख लेता संदूक में।
उत्साह और खुशियों से सरोबार ,
बिताये जो अपनों और दोस्तों संग।
वे पल जो गवाह है आज हकीकत के,
बन जायेंगे किस्से कहानी के अंग।
जब कभी फुरसत से बैठेंगे अकेले में ,
और न होगा दोस्त न अपनों का संग।
चुपके से लवों पर मुस्कराहट लिए ,
जब यादों में आयेंगे वे खूबसूरत प्रसंग।
तब खोलकर भरी संदूक से निकाल
जीवन में भर लूंगा खुशियों के वे सारे रंग।

1 टिप्पणी:

  1. हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

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