चलो एक कदम और बढाकर तो देखें ,
अपने अंदर के हुनर को आजमाकर तो देखें ।
माना कि खुद के अंदर कभी झाँका नहीं ,
स्वयं को पहचानने की रही जिज्ञासा नहीं,
प्रतिभा को अपनी कभी आँका नहीं ,
क्षमता के अनुरूप खुद को तराशा नहीं।
करते रहे औरों की सुनकर अब तक ,
मन की बात सुनने की न थी फुरसत ,
सफलता ने न दी द्वार पर दस्तक ,
बस दुनिया को कोसा किये अब तक ।
आसमाँ और भी है मन में रख हताशा नहीं ,
जहां चाह वहां राह है अब छोड़ अभिलाषा नहीं ।
निराशा की धूल "दीप" दर्पण से हटाकर तो देखें ,
संभावनाओं के समंदर में गोता लगाकर तो देखें ,
चलो एक कदम और बढाकर तो देखें ,
अपने अंदर के हुनर को आजमाकर तो देखें ।
बहुत सुंदर क्या बात है
जवाब देंहटाएंThx for a valuable comments .
जवाब देंहटाएंक्या बात है
जवाब देंहटाएंभास्कर जी , आपकी बहुमुल्य टिप्पणी के लिये बहुत शुक्रिया .
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