ऐ आसमां एक अहसान तो कर ,
इनके लिये तुझ तक बना दे तु डगर ।
जो चाहते हैं महबूब संग आसमां में रहना,
चाहते हैं महबूब के लिये चांद तारों का गहना ।
ऐ आसमां एक अहसान तो कर ,
इनके लिये खोल दे तु अपनी बाहों का घर ।
जिन्हें नहीं पसंद बंदिशों में जकड़ना ,
जो चाहते हैं आज़ाद पंछी सा उड़ना ।
ऐ आसमां एक अहसान तो कर ,
इनके लिये तु जमीं पर तो उतर ।
जिन्हें इस जीवन में है कुछ बनना ,
जिनके दिल में है तुझे छूने की तमन्ना ।
ए आसमां तेरे अहसानों का है असर ,
जो हमें यह खूबसूरत कायनात है मयस्सर ।
वो सूरज चांद का दिन रात निकलना,
फिर युं उनका तेरी आगोश में ढलना ।
इससे कायम है कायनात का चलना ,
और बरकरार है रूहों का मचलना ।
*****दी.कु.भानरेे,(दीप)*****
bahut umda sir ji
जवाब देंहटाएंBahut Badhiya Sirji :-)
जवाब देंहटाएं