दागों पर सजावटों का लगा पहरा ,
हकीकतों पर डल रहा है परदा ।
कुटिल सी मुस्कुराहटें और अदा ,
पैदा कर रही है संशय और अंदेशा ।
इन मुखोटों को मानकर सही चेहरा ,
बेफिक्र होकर जी रहे है सब नादां ।
सजावटी आवरण में जो दाग था छुपा ,
वो अंदर ही अंदर एक नासूर सा पका ।
छुपा दाग जिंदगी के लिए बना धोखा ,
कारण एक गंभीर बीमारी का बना ।
अच्छा होता जब हमने दाग था देखा ,
उसी समय मर्ज मान, कर देते दवा ।
यूं जिंदगी के आलम न होते खफा ,
बस हर किस्सा होता सच्चा और खरा।
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