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बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

शीशा जब टूटकर है बिखरता !

 


देखा करते थे शीशा जब तब ,

छुपाते थे चेहरे के एब तब तब ,

शीशे ने कहा "लग रहे हो खूबसूरत" , 

फिर दिल कहां संभाले संभलता , 

लो अब हाथ से है उछलता , 

शीशा अब टूटकर है बिखरता । 


शीशा जब टूटकर है बिखरता , 

हर टुकड़ा खुद एक शीशे में है ढलता,

टुकड़े टुकड़े में तस्वीर नजर आती है , 

पर टूटे टुकड़े पर तस्वीर कहां भाती है, 

अब  शीशा दिल से है उतरता ,

शीशा जब टूटकर है बिखरता । 


शीशे को छूने से अब हर कोई है मुकरता , 

चुभ न जाये कोई टुकड़ा हाथों को , 

बह न जाये कोई खून का  कतरा , 

फिर कौन उस पर है सजता संवरता  , 

फेंक आते है  शीशे के टुकड़े बाहर ,  

शीशा जब टूटकर है बिखरता ।


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