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वो #मशहूर कर गए ,
मुझे #बदनाम करते करते ।
यूं जुबान पर चढ़ गए ,
उनके हर जिक्र में पलते पलते ।
एक सुकून सा पाते हैं वो ,
जब करते हैं बुराई मेरे नाम की ,
यूं ही मरहम बन गये हम ,
उनकी नफरतों में जलते जलते ।
चमक उठती है आंखें उनकी ,
जब करते हैं तमन्ना मेरे नाकाम की ,
यूं ही चिराग बन गये हम ,
उनकी आंखों में खलते खलते ।
उनको नापसंद कुछ मेरी आदतें ,
बनी जरिया राहत और आराम की ,
शुक्र है हमदर्द हो गये हम ,
उनकी नापसंदगी में पलते पलते ।
वो शुक्र गुजार कर गए ,
मुझे बदनाम करते करते ।
हम जुबान पर चढ़ गए ,
उनके हर जिक्र में पलते पलते ।
वाह! क्या कहने... :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवि सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय सरिता मेम , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।
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