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हाय ये #गुमराह #गरमी ,
न जाने कितना सतायेगी ,
सुबह भी ठीक से गुजरने न देती ,
भर #दुपहरिया आग लगायेगी ।
नदी सुखाये तालाब सूखाये,
पेड़ पौधे भी सब मुरझाये,
पशु पक्षी भी दर दर भटके ,
कितना हाहाकार मचायेगी ।
बच्चे बूढ़े सब घर में दुबके ,
कामकाजी रह गये जल भुन के,
तन पसीने से सबके पिघले ,
कितने को बीमार बनाओगी ।
पेड़ पौधों की दी है बली ,
जलस्रोतों की मिटा दी हस्ती ,
सीमेंट कंक्रीट की है होड़ मची ,
तो गरमी ऐसे ही इतरायेगी ।
प्रकृति से गर करें दोस्ती ,
उससे न करें जबरदस्ती,
जब चलेगी तालमेल की कश्ती ,
तो गर्मी भी ठंडी पड़ जायेगी ।
तब ये गुमराह गरमी ,
फिर न किसी को सतायेगी ,
सुबह भी ठीक से गुजरने देगी ,
और दुपहरिया में कहीं दुबक जायेगी ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
सुंदर और सार्थक चिंतनपरक रचना। कहीं न कहीं मनुष्य स्वयं भी प्रकृति से जुड़ी समस्याओं के लिए स्वयं भी जिम्मेदार है। आपको बहुत-बहुत बधाई। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रकृति से गर करें दोस्ती ,
जवाब देंहटाएंउससे न करें जबरदस्ती,
जब चलेगी तालमेल की कश्ती ,
तो गर्मी भी ठंडी पड़ जायेगी ।
...बिलकुल सही बात
आदरणीय पम्मी मेम इस रचना को "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11 मई 2022 को लिंक
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार ।
सादर ।
आदरणीय बाबा सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनुराधा एवं कविता मेम , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद एवं आभार ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री सर मेरी प्रविष्टि के लिंक की चर्चा चर्चा मंच "जिंदगी कुछ सिखाती रही उम्र भर" (चर्चा अंक 4427) पर सम्मिलित करने के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअद्भुत शब्द चयन :-)मनुष्य द्वारा अनियंत्रित प्रकृति दोहन के फलस्वरूप होने वाले परिणाम पर भी दृष्टिपात। बहुत सुंदर :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवि सर , आपकी सुन्दर और बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
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