किस बात से है #गिला ,
#कह दो तो जरा ।
तकलीफ सीने में ,
यूं दबाकर बैठे हो ,
कहते कुछ नहीं ,
बस रूठे और ऐंठे हो ,
किस बात का मसला है ,
कह दो तो जरा ,
मिलेगा सुकून मन को ,
ढहेगा उदासी का किला ।
मचलती है चाहतें ,
करने को पार हदें ,
पर किसी बात पर ,
खिंची है सरहदें ,
वो कौन सा है कायदा ,
कह दो तो जरा ,
तोड़कर बांध सब्र का ,
बह उठेगा दरिया ।
अब यूं रहना खफा ,
नहीं ज्यादा अच्छा ,
मानकर गलतियां ,
निकाले सुलह का रास्ता ,
गर मसला है सुलझा ,
कह दो तो जरा ,
क्योंकि ढूंढती है #खुशियां ,
अपने घर का पता ।
किस बात से है #गिला ,
#कह दो तो जरा ।
****दीपक कुमार भानरे****
गिला मिटाना हो तो कह देंगे
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
आदरणीय विभा मेम,
हटाएंजरूर कहिएगा , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
बहुत बढियां
जवाब देंहटाएंआदरणीय भारती सर, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंआदरणीय यशोदा मेम ,
जवाब देंहटाएंमेरी लिखी रचना ब्लॉग को "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 04 एप्रिल 2023 में साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर ।
अब यूं रहना खफा ,
जवाब देंहटाएंनहीं ज्यादा अच्छा ,
मानकर गलतियां ,
निकाले सुलह का रास्ता ,
गर मसला है सुलझा ,
कह दो तो जरा ,
क्योंकि ढूंढती है #खुशियां ,
अपने घर का पता ।बहुत सुंदर रचना आदरणीय सर।
आदरणीय पटेल मेम, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंसुन्दर, सहज, सरल रचना !
जवाब देंहटाएंआदरणीय मेम, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
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