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शनिवार, 14 नवंबर 2009

कितना जिम्मेदार विपक्ष है हमारे पास !

कितना जिम्मेदार विपक्ष है हमारे पास !
हमेशा से सत्ता आरूढ़ पार्टी अथवा जन प्रतिनिधि को ही देश मैं चल रही विभिन्न गतिविधियों हेतु जिम्मेदार माना जाता है एवं उसे ही जनता के आक्रोश और आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है । क्या सत्ता से बाहर बैठे विपक्षी जन प्रतिनिधि और पार्टियाँ की भी जिम्मेदारी तय करने भी जहमत उठायी जाती है । क्या हमारे देश की सरकार के गुणदोष बत्ताने और विफलताओं की और ध्यान दिलाने और जनहित के मुद्दों शसक्त और जिम्मेदार तरीके से उठाने वाला विपक्ष मोजूद है ।
इस बात की अनदेखी की जाती है की जितनी जिम्मेदारी और विश्वाश के साथ जनता राजनीतिक पार्टी और जन प्रतिनिधियों को बहुमत से चुनकर सरकार चलाने हेतु भेजती है उतनी जिम्मेदारी और सक्रिय भूमिका की अपेक्षा विपक्ष मैं बैठने वाली पार्टी अथवा जनप्रतिनिधियों से भी की जाती है ।
आमतौर पर विपक्ष हमेशा सत्तापक्ष की किसी भी गतिविधियाँ अथवा नीतियों की आलोचनाओ अवं विरोध कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझता है । फ़िर वह चाहे वह सही हो या ग़लत । संसद मैं हंगामा खड़ा कर संसद की कार्यवाहियों की को बाधित करते हैं और संसद के संचालन मैं होने वाले करोडो रूपये की व्यय को जाया होने देते हैं । देश के राजनीतिक गलियारे मैं मची हलचले और गतिविधियों से तो ऐसा ही जाहिर होता है की सत्ता हासिल किए बिना अथवा मलाईदार और रुतबेदार पदों के अभाव मैं जन सेवा और देश सेवा हो ही नही सकती है । और ऐसी लालसा मैं जनप्रतिनिधि और पार्टियाँ जोड़तोड़ की राजनीति कर जनादेश की उपेक्षा करती नजर आती है ।
वैसे भी सत्ता से दूर और विपक्ष मैं बैठी पार्टी अथवा जनप्रतिनिधि जनसेवा और देश सेवा के नाम पर कार्य करते तो शिफर ही नजर आते है सिवाये खोखले भाषण और आलोचनाओं के । अपने किसी बड़े नेता आगमन पर स्वागत सत्कार हेतु बेनरो , पोस्टरों और प्रचार प्रसारों की सामग्रियों मैं करोड़ों रूपये करते जरूर नजर आयेंगे बजाय यही पैसा जनहित मैं खर्च करने के । कितनी राजनीतिक पार्टी प्राकृतिक आपदाओं अथवा किसी दुर्घट नाओं मैं हताहतों लोगों की आर्थिक सहायता करते नजर आती हैं ।
जन्हा सरकार और सत्तापक्ष के जनप्रतिनिधियों और राजनीतिक पार्टियों की प्राथ मिक्ताओं मैं भूख , भ्रष्टाचार और बेरोजगारी , बढती मंहगाई , जमाखोरी , कालाबाजारी अवं जनसुरक्षा और सुशासन जैसे मुद्दे ओझल नजर आते हैं वन्ही भी चुप्पी साधकर इन मुद्दों से जी चुराकर किनारा करते नजर आते हैं । और यह परिद्रश्य यह संसय पैदा करता है की कंही न कंही पक्ष अवं विपक्ष मैं मौन सहमती और स्वीकृति तो नही है ।
क्या हम एक जनहित और देशहित के प्रति रचनात्मक और सकारात्मक जिम्मेदार विपक्ष की उम्मीद कर सकते हैं । क्या इनके कार्यों के आकलन और निगरानी हेतु कोई युक्ति और व्यवस्था बनायी जा सकती है । क्योंकि इनके चुनाव और सुख सुबिधाओं पर भी तो जनता की खून पसीने की कमाई का पैसा खर्चा किया जाता है ।

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