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शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

शिक्षा प्रणाली की खामियां - बेक़सूर मासूम बच्चे देते कुर्बानियां !

हाल ही मैं देश के कई हिस्सों से बच्चों द्वारा आत्महत्या जैसे अप्रिय और दुखद कदम उठाने की खबर आती रही है । इस तरह की घटनाओं मैं समय दर समय इजाफा होते जा रहा है । पढ़ाई मैं स्वयं की अथवा माता पिताओं की आशा अनुरूप परिणाम न आने अथवा थोपी गई शिक्षा या अधिक नंबर की होड़ वाली शिक्षा के बोझ से तनाव ग्रस्त होने के परिणाम स्वरुप बच्चों द्वारा खुद को नुक्सान पहुचाने वाले आत्महत्या जैसे अप्रिय और दुखद कदम उठाने हेतु बाध्य होना पद रहा है । ऐसी परिसथितियां देश मैं वर्तमान मैं लागू दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली की खामियां और असफलता की कहानी खुद ही बयां करती है ।
1). नैसर्गिक गुणों को अवरुद्ध करती थोपी हुई शिक्षा : - मातापिता अपने बच्चों पर अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के मद्देनजर आशा एवं इक्च्छा को थोपकर अपने बच्चे का बचपन क्षीण कर छोटी उम्र मैं ही नम्बरों की होड़ वाली प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ मैं उतार देते हैं और उनकी स्वाभाविक अभिरुचि एवं मौलिक गुण अथवा कौशल एवं हुनर की अनदेखी कर नैसर्गिक गुणों के विकास को अवरुद्ध करते हैं ।
२)। शिक्षा का व्यवसाई करण :- दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का ही परिणाम है की शिक्षा प्रदान करने वाली संस्था एवं शिक्षकों का एकमात्र उद्देश्य व्यावसाईक हितों के अनुरूप शिक्षा बाजारीकरण करना हो गया है वन्ही शिक्षा को ग्रहण करने वाले शिक्षार्थी का एकमात्र लक्ष्य शिक्षा को ग्रहण कर अधिक अधिक से नंबर लाकर अधिक से अधिक ऊँचे वेतन वाले ऊँचे पदों को प्राप्त करना मात्र रह गया है । फलस्वरूप व्यावसाईक एवं स्वार्थपरक व्यक्तित्व युक्ता युवा पीढ़ी का निर्माण हो रहा है । जो अधिक से अधिक भौतिक सुखों और सुविधाओं को प्राप्त करने हेतु भ्रष्ट्राचार , अनैतिक एवं अवैधानिक तरीकों और रास्तों को अपनी जीवन शैली तरजीह दे रहे हैं ।
३)। देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के प्रतिकूल शिक्षा : - देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं व्यावसाईक व तकनीकी ज्ञान की उपेक्षा कर बनायी गयी शिक्षा प्रणाली का ही परिणाम है की शिक्षा ग्रहण करने के बाद आज के युवा अपनी संस्कृति और परम्परागत व्यवसाय से दूर होते जा रहें हैं । वन्ही किताबी ज्ञान आधारित शिक्षा के अनुरूप पर्याप्त रोजगार के अभाव के चलते बेरोजगारी का दंश झेलने हेतु मजबूर है ।
४)। प्राचीन ज्ञान की उपेक्षा करती शिक्षा प्रणाली : - शिक्षा पाठ्यक्रमो मैं न तो देश के पूर्वजों के ज्ञान और अनुभव को स्थान दिया गया है और न ही पुरातन शिक्षा ग्रंथों को शामिल किया गया है । प्राचीन खगोलशास्त्र , ज्योतिष विज्ञानं , आयुर्वेद ज्ञान , योग एवं अध्यात्म एवं अनेक ऐसे कई विषयों की उपेक्षा की गयी है जिससे की भारत को विश्वगुरु होने का दर्जा प्राप्त था । ऐसे विषयों के ज्ञान को परिष्कृत और परिमार्जित कर देश के सामने लाने का गंभीर प्रयास ही नहीं किया जा रहा है । जबकि विदेशी ज्ञान का अन्धानुकरण कर थोपने का प्रयास किया जा रहा है जो की देश की परिस्थिति के पूरी तरह अनुकूल नहीं है ।
५) । शिक्षा एवं ज्ञान के मूल्यांकन की दोषपूर्ण पद्धति : - आज की शिक्षा प्रणाली मैं ग्रहण किया गया ज्ञान का मूल्यांकन न तो व्यक्ति विशेष के कौशल और हुनर का प्रायोगिक परिक्षण से और न ही जीवन शैली और व्यक्तित्व व्यवहार मैं हुए सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन के आकलन से होता है और न ही समाज और देश के प्रति अपने दायित्वों और कर्तव्यों की समझ और उनके के प्रति संवेदनशीलता से होता है । नंबरों होड़ युक्ता शिक्षा प्रणाली मैं तो बस ग्रहण किये गया ज्ञान के आंकलन हेतु , रटे गए ज्ञान का लिखित परीक्षायों के माध्यम से मूल्याङ्कन से होता है । और इस तरह की मूल्यांकन और परीक्षा प्रणाली बच्चों को तनावग्रस्त करती है और वांछित सफलता न मिलने पर खुद को नुक्सान पहुचाने वाले अप्रिय कदम उठाने हेतु बाध्य करती है ।
अतः आवश्यकता है देश मैं प्राचीन सम्रद्ध ज्ञान के साथ युक्तिसंगत आधुनिक ज्ञान आधारित शिक्षा व्यवस्था की जो देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप हो , जो बच्चों के मौलिक और नैसर्गिक गुणों को परिष्कृत और परिमार्जित करे एवं स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाए , साथ ही सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों के साथ के साथ सामाज और देश के प्रति दायित्वों से जोड़े ।
इस प्रकार हम शिक्षा प्रणाली की खामियां को दूर कर बेकसूर और मासूम बच्चों की कुर्बानियों को रोक पाएंगे ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. त्रस्‍त हैं बेचारे बच्‍चे आज के माहौल से .. खामयां कब दूर होंगी .. इसका इंतजार ही तो बस कर सकते हैं !!

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  2. बिल्कुल ठीक लिख रहे हैं. लेकिन किया क्या जाये जब स्वतन्त्रता मिली तब ही स्टेयरिंग संभालने वालों ने शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया. अंग्रेजों के देश से जाने के बाद पूरा ढ़ांचा ही बदलना चाहिये था जो कि नहीं किया गया, दुष्परिणाम हर क्षेत्र में दिखाई दे रहे हैं.

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