खुलकर मुस्कुराने दो हमें ,
न दबे बचपन किताबों के बोझों के तले ।
फूलों की तरह खिलने दो हमें ,
न झुलसे मासूमियत बड़ों के अरमानों के तले ।
बातें करने दो आसमानों से हमें ,
न गुजरे ये बचपन चाहरदीवारों के तले ।
भीग जाने दो बारिश में हमें ,
न रोको लेने दो मौसम के खुलकर मजे ।
न डालो इतनी जिम्मेदारियां हमें ,
कहीँ खो ना जाये बचपन वक्त से पहले ।
जी लेने दो जीभर बचपन हमें ,
फिर तो बीतने ही है संघर्ष से जिंदगी के हर लम्हे ।
सहमत बचपन की मस्ती का अलग मजा होता है ... और बच्चों को वो सब करने देना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंनासवा जी आपकी सकारात्मक अमूल्यवान टिप्पणी के लिए बहुत सुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंबचपन जो अब कभी लौट के आने वाला नहीं
जवाब देंहटाएंसईद जी आपकी सकारात्मक अमूल्यवान टिप्पणी के लिए बहुत सुक्रिया ।
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