दीपों की जगमग से है रोशन सारा जहाँ ,
सबके त्याग और सहयोग की है सुन्दर दास्ताँ ।
बिन बाती के तेल भी रौशनी दे कहाँ ,
बिन तेल के बाती में लौ जले कहाँ ,
तेल अपनी आप को समर्पित करता यहाँ ,
स्वयं को जला बाती भी रोशन करें जहाँ।
बिन तेल के बाती में लौ जले कहाँ ,
तेल अपनी आप को समर्पित करता यहाँ ,
स्वयं को जला बाती भी रोशन करें जहाँ।
दीपक के बलिदान का भी है अपना हिस्सा ,
लिये तेल और बाती को अपने अंदर समा ,
स्वयं तले अँधेरा रख रोशन करे जहाँ।
लिये तेल और बाती को अपने अंदर समा ,
स्वयं तले अँधेरा रख रोशन करे जहाँ।
शांत सौम्य लौ का भी है अपना किस्सा ,
अठखेलिया कर हवा संग इठलाती यहाँ वहाँ ,
रौद्र रूप हवा ले, लौ पर बन जाती काल समां।
अठखेलिया कर हवा संग इठलाती यहाँ वहाँ ,
रौद्र रूप हवा ले, लौ पर बन जाती काल समां।
सीधी सादी लौ का भी बढ़ जाता कभी नशा ,
अपने दोनों हाथों से लौ को जो देता सुरक्षा ,
बहक जाये जब हवा संग तो हाथ भी देती जला।
रौशनी के प्रेम में खिचे चले आते नादाँ ,
हो सके न एक दूजे के तो हो जाते क़ुरबाँ ।
किंतना उलझा हुआ है "दीप " सबका यह नाता ,
फिर भी मिलजुलकर सब बनाते खुशनुमा जहाँ।
शुभ और मंगलमय दीपावली ।
अपना अपना दीप मिल के जलना होगा तभी बनेगा ये खुशनुमा जहां ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
बहुत धन्यबाद नासवा सर । आपकी प्रेरणादायक बेसकीमती प्रतिक्रिया देने के लिए ।
जवाब देंहटाएंशुभ और मंगलमय दीवाली ।