कुछ# इस तरह# से जीना# आ गया !
कुछ इस तरह से जीना आ गया , मुस्कुराते हुये ग़मों को पीना आ गया ।
मुश्किलों के दौर के आये जो मंजर , कोई साथ न देगा न थी ऐसी खबर ।
मदद की आस में भटकते दर बदर , परेशानियों से लड़ने का हुनर जो आ गया।
खुद ही अपने जख्मों को सीना आ गया .........
खुद ही अपने जख्मों को सीना आ गया .........
फिजाओं में घुल रहे है कैसे कैसे जहर , बदनाम हो रहे हैं अब तो हर शहर ।
पता नहीं कब कौन मार दे ठोकर , संभल कर चलने का आया जो हुनर।
वक्त से तजुर्बों का नगीना पा गया .........
जूझने का सबब समेटे हुये अंदर , हासिल कर "दीप " जीने का हर हुनर।
कर के सारी दुशवारियों को बेअसर , पार कर लेंगे जीवन का समुन्दर।
लो अब बहाना पसीना जो आ गया .
कुछ इस तरह से जीना आ गया , मुस्कुराते हुये ग़मों को पीना आ गया ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन शुभकामनायें प्रथम अंतरिक्ष यात्री को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंपोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन में सम्मिलित करने हेतु मान्यवर को बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
जवाब देंहटाएंवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
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जवाब देंहटाएंसंजय जी आपकी बेशकीमती प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार।
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