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रविवार, 13 जनवरी 2019

कुछ# इस तरह# से जीना# आ गया !

कुछ# इस तरह# से जीना# आ गया !

कुछ इस तरह से जीना आ गया , मुस्कुराते हुये ग़मों को पीना आ गया ।
मुश्किलों के दौर के आये जो मंजर , कोई साथ न देगा न थी ऐसी खबर । 
मदद की आस में भटकते दर बदर , परेशानियों से लड़ने का हुनर जो आ गया। 
खुद ही अपने जख्मों को सीना आ गया .........

फिजाओं में घुल रहे है कैसे कैसे जहर , बदनाम हो रहे हैं अब तो हर शहर ।
पता नहीं कब कौन मार दे ठोकर , संभल कर चलने का आया जो हुनर।
वक्त से तजुर्बों का नगीना पा गया .........

जूझने का सबब समेटे हुये अंदर , हासिल कर "दीप " जीने 
का हर  हुनर।
कर के सारी दुशवारियों को बेअसर , पार कर लेंगे जीवन का समुन्दर।
लो अब बहाना पसीना जो आ गया . 

कुछ इस तरह से जीना आ गया , मुस्कुराते हुये ग़मों को पीना आ गया ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन शुभकामनायें प्रथम अंतरिक्ष यात्री को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    जवाब देंहटाएं
  2. पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन में सम्मिलित करने हेतु मान्यवर को बहुत धन्यवाद एवं आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. संजय जी आपकी बेशकीमती प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार।

    जवाब देंहटाएं

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