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रविवार, 10 सितंबर 2023

समा गये हो सांसों में ।



बस यूं ही बातों बातों में ,

समा गये हो सांसों में ।


तुम चांद को देखा करते थे,

और हम तुम्हारी आंखों में ,

बस यूं ही कुछ रातों में ,

समा गये हो सांसों में ।


बारिश में जब निकला करते ,

छुपाते हम तुम्हें छतरी छातों में ,

बस यूं ही कुछ बरसातों में ,

समा गये हो सांसों में ।


जिन गलियों से कभी गुजरा करते,

हम गुजरा करते उनमें दिन रातों में ,

बस यूं फिर मिलने की आसों में ,

समा गये हो सांसों में ।


वार गये सब कुछ तुम पर अब ,

रहा न कुछ अपने हाथों में ,

बस यूं आने होश हवासों में,

समा गये है सांसों में ।


बस यूं ही बातों बातों में ,

समा गये हो सांसों में ।

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