#फुर्सत मिली न मुझे
अपने ही काम से
लो बीत गया एक और #साल
फिर मेरे #मकान से ।
सोचा था इस साल
अरमानों की गलेगी
दाल ,
जीवन के
ग्रह #नक्षत्रों
की
हो जायेगी अच्छी
चाल
पर चलती रही
जिदंगी इस साल भी
पुराने ही #इंतजाम से ।
बहलाता रहा मन को
कुछ #सपनों की शाम से
लो बीत गया एक और
साल
फिर मेरे मकान से
।
कुछ #तालमेल कुछ #जुगाड़
कभी उत्साह तो
कभी थक हार
गर न बना काम तो
ज़िम्मेदारी भाग्य
पर डाल
मन में न रख कुछ #मलाल
खेल ली ज़िंदगी
कुछ ऐसी ही समान
से ।
फुर्सत मिली न
मुझे
अपने ही काम से
लो बीत गया एक और साल
Good sir ji🙏🌹👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , देवेश सर, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ।
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