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चलती है यहां कहां
मन की सरकार
जीना पड़ता है यहां
मन को मार ।
रिश्तों के बंधन है
और ढेरों संस्कार
स्नेह बंधन है जुड़े
और मर्यादा के तार ।
ख्वाब है ढेरों
उम्मीदों की लंबी कतार
चल रही है जिंदगी
लेकर इनके भार ।
परिस्थितियां भी कई ऐसी
करती लाचार
चाहते हुए न मन के भी
करने पड़ते है कई कार ।
चलती है यहां कहां
मन की सरकार
जीना पड़ता है यहां
मन को मार ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 23 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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