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गुरुवार, 21 अगस्त 2025

जीना पड़ता है यहां मन को मार ।

  

 

                                इमेज गूगल साभार

चलती है यहां कहां

मन की सरकार 
जीना पड़ता है यहां
मन को मार ।

रिश्तों के बंधन है 
और ढेरों संस्कार 
स्नेह बंधन है जुड़े 
और मर्यादा के तार ।

ख्वाब है ढेरों 
उम्मीदों की लंबी कतार 
चल रही है जिंदगी 
लेकर इनके भार ।

परिस्थितियां भी कई ऐसी 
करती लाचार 
चाहते हुए न मन के भी 
करने पड़ते है कई कार ।

चलती है यहां कहां
मन की सरकार 
जीना पड़ता है यहां
मन को मार ।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 23 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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जीना पड़ता है यहां मन को मार ।

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