ऐ वतन तेरा आगन
महफूज जहां मेरा तन मन ।
न कोई रोके न कोई टोके
ज्यादा करे तो घुस कर ठोके
दुश्मन का होता अब बेड़ा गरक
ऐ वतन तेरा आगन
महफूज जहां मेरा तन मन ।
कौने कौने से करके खोज
बाहर कर रहे बाहरी लोग
बिलों से निकलेंगे अब सारे सर्प
ऐ वतन तेरा आगन
महफूज जहां मेरा तन मन ।
सुनते नहीं अब किसी को व्यर्थ
अपनी ही नीति है अपनी ही शर्त
करेंगे वहीं अब जो वतन से है फर्ज
ऐ वतन तेरा आगन
महफूज जहां मेरा तन मन ।
आसमां पर नजर है पाताल तक हद
वतन के माथे पर है समृद्धि तिलक
चला है देश अपना अब अपनी ही तर्ज
ऐ वतन तेरा आगन
महफूज जहां मेरा तन मन ।
https://youtu.be/-ZRBLElBEYE?si=A7mqZ5kKoVrVWfZE
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार, अगस्त 16 , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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