०७ तारीख को विश्व स्वास्थ्य दिवस है । फिर वही आयोजन और भाषण । सबको बेहतर स्वास्थ्य स्वास्थ्य सुबिधायें देने की बात की जायेगी । किंतु स्थिति सुधरने की बजाय पहले से भी ख़राब होती जा रही है । महंगी होती इलाज की फीस , महंगी होती दवा और महंगी होती चिकित्सा शिक्षा । न कोई इसे सुधारने की स्पष्ट नीति और न कोई राहत पहुचाने वाली रीति। परेशानी तो आम जनता को होती है - मरता क्या न करता - अपने और अपने परिजनों के इलाज हेतु जोड़ तोड़ कर पैसों का इंतज़ाम करता है । हर सरकार की अपनी पहली प्राथमिकता जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुबिधायें , शिक्षा और सुरक्षा उपलब्ध कराना होता है । किंतु प्राथमिक मुद्दे होने के बाद भी ये व्यवस्थाये दिनों दिन बाद से बदतर होती जा रही है । विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर सभी के स्वस्थ्य जीवन की कामना करते हुए स्वास्थ्य सुबिधाओं की व्यवस्था मैं सुधार हेतु कुछ बातों पर विचार किया जाना लाज़मी है ।
भारतीय परिवेश और प्रकृति के अनुसार भारतीय चिकित्सा पद्धति को विशेष स्थान देते हुए स्वास्थ्य नीति को बनाने की आवश्यकता है । एक सर्वे के अनुसार दुनिया मैं ऐसे ५७ देश हैं जन्हा प्रति १ लाख जनसंख्या पर २.३ से भी कम स्वास्थ्य सेवा प्रदाता है , जिसमे भारत भी शामिल है । सभी को समुचित स्वास्थ्य सुबिधाये उपलब्ध हो सके इसके लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सेवक और चिकित्सक होने चाहिए । इस हेतु हर जिला स्तर पर एवं ब्लाक स्तर पर चिकित्सा शिक्षा आधारित विद्यालयों और महा विद्यालयों को खोला जाना चाहिए , ताकि स्थानीय और ग्रामीण स्तर के छात्र भी शिक्षा ग्रहण कर सके । इनमें १२ स्तर तक और महाविद्यालय स्तर तक डिग्री दी जा सके । चुकी बड़े डिग्री धारी तथा शहरी डॉक्टर ग्रामीण स्तर मैं स्वास्थ्य सेवा देने मैं कतराते हैं , इससे इस समस्या से मुक्ति मिलेगी और स्वास्थ्य सुबिधा प्रदान करने वाले सेवकों की भी संख्या मैं बढोतरी होगी । परंपरागत आयुर्वेदिक चिकित्षा पद्धति को अधिक से अधिक से बढावा देना चाहिए । इसे तथा इसके समकक्ष चिकित्षा पद्धति को प्राथमिक स्तर की शिक्षा मैं शामिल किया जाना चाहिए । देशी दवाएं और उन पर अनुसंधान और शोध पर जोर दिया जाना चाहिए । बहु राष्ट्रीय कम्नियों की मुनाफा खोरी पर रोक लगाकर दवायों की कीमत पर रोक लगाना चाहिए ।
तभी हम सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुबिधाओं की उपलब्धता की कामना कर सकते है।
आपके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ। सरकार की अधिकांश नीतियाँ मूर्खतापूर्ण नकल का नतीजा हैं। उदाहरण के लिये सरकार डाक्तरों के स्नातकोत्तर (पीजी) शिक्षा के लिये अंग्रेजी का टेस्ट लेती है (देसी भाषाओं का नहीं)। अच्छी अंग्रेजी का जानकार पहले तो गाँव में जाना ही नही चाहता; दूसरे वह ग्रामीणों से उनकी भाषा में बात करने में ही अपने को अक्षम पा सकता है; उसे स्थानीय भाषा में रोगों का नाम नहीं पता; वह स्थानीय भाषा में लोगों को समझाने में अक्षम होता है। क्या डाक्टरों के लिये अंग्रेजी के बजाय देसी भाषाओं का टेस्ट नहीं होना चाहिये?
जवाब देंहटाएंanunad ji apne sahi kaha. jaroori hai ki sarkaar ko in baaton ka dhyan main rakhkar nai swasthya neeti banani chahiye. abhivyakti padhne avam pratikriya dene ke liye bahut bahut dhanyabad.
जवाब देंहटाएंDeepak Kumar bhanre